नई दिल्ली :पूर्वी लद्दाख में सैनिकों के पीछे हटने की प्रक्रिया को लेकर भारत और चीन के बीच कोर कमांडर स्तर की आठवें दौर की वार्ता छह नवंबर को हो सकती है. दोनों पक्ष इस साल अप्रैल-मई से पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में चल रहे सैन्य गतिरोध को दूर करने के तरीकों पर चर्चा करेंगे.
आठवें दौर की सैन्य वार्ता में भारतीय प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई लेफ्टिनेंट जनरल पी जी के मेनन करेंगे जो हाल में लेह की 14वीं कोर के कमांडर नियुक्त किये गये हैं.
बता दें, इससें पहले 13 अक्टूबर को वार्ता की गई थी. 12 घंटे तक चली वार्ता के बाद दोनों सेनाओं द्वारा जारी एक संयुक्त प्रेस बयान में कहा गया कि दोनों पक्ष सैन्य और राजनयिक माध्यम से संवाद और संचार बनाए रखने के लिए सहमत हुए थे. साथ ही दोनों पक्ष जितनी जल्दी हो सके सैनिकों की वापसी के लिए पारस्परिक रूप से स्वीकार्य हल पर पहुंचने को लेकर सहमत हुए थे. बयान दिल्ली और बीजिंग दोनों ही जगह जारी किया गया था.
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने इस बीच, एक बार फिर यह टिप्पणी की थी कि चीन केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख या अरुणाचल प्रदेश को मान्यता नहीं देता है. उन्होंने यह भी दावा किया कि भारत द्वारा बुनियादी ढांचे का निर्माण और चीन के साथ लगती सीमा पर सैन्य तैनाती तनाव का मूल कारण है.
भारत का पुरजोर तरीके से यह कहना है कि अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख दोनों देश के अभिन्न अंग हैं और चीन को उसके आंतरिक मामलों पर टिप्पणी करने से बचना चाहिए. प्रवक्ता झाओ बीजिंग में एक मीडिया ब्रीफिंग में पश्चिमी मीडिया के एक पत्रकार द्वारा लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों में भारत की ओर से कई पुलों के निर्माण को लेकर पूछे गए एक सवाल का जवाब दे रहे थे.
चीनी प्रवक्ता ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच हाल में बनी सहमति के आधार पर, किसी भी पक्ष द्वारा ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए, जिससे सीमाक्षेत्र में स्थिति के जटिल बनने की आशंका है, ताकि तनाव कम करने के द्विपक्षीय प्रयास कमजोर नहीं हों. उन्होंने कहा कुछ समय से भारतीय पक्ष चीन के साथ लगती सीमा पर बुनियादी ढांचे का निर्माण और सैन्य तैनाती बढ़ा रहा है. यह तनाव का मूल कारण है.