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ED ने मनी लॉन्ड्रिंग केस में सुपरटेक के चेयरमैन आरके अरोड़ा को गिरफ्तार किया

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने मंगलवार को मनी लॉन्ड्रिंग मामले में रियल एस्टेट कंपनी सुपरटेक के चेयरमैन आरके अरोड़ा को गिरफ्तार कर लिया. मंगलवार को तीसरे दौर की पूछताछ के बाद अरोड़ा को हिरासत में ले लिया गया. उन्हें बुधवार को विशेष पीएमएलए अदालत में पेश किए जाने की उम्मीद है, जहां ईडी उनकी आगे की रिमांड की मांग करेगी.

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प्रतिकात्मक तस्वीर

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Published : Jun 28, 2023, 6:52 AM IST

नई दिल्ली :प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों बताया कि मंगलवार को मनी लॉन्ड्रिंग मामले में रियल एस्टेट कंपनी सुपरटेक के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक आरके अरोड़ा को गिरफ्तार किया गया है. इससे पहले अप्रैल में, ईडी ने धन शोधन निवारण अधिनियम के प्रावधानों के तहत उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में सुपरटेक ग्रुप ऑफ कंपनीज और उनके निदेशकों से संबंधित 40.39 करोड़ रुपये मूल्य की 25 अचल संपत्तियों को अस्थायी रूप से जब्त कर लिया था.

आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने उन्हें बुधवार को यहां एक विशेष पीएमएलए अदालत में पेश कर सकती है. जहां ईडी उनकी आगे की रिमांड की मांग करेगी. सुपरटेक समूह, उसके निदेशकों और प्रमोटरों के खिलाफ मनी-लॉन्ड्रिंग का मामला दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पुलिस विभागों द्वारा दर्ज की गई कई प्राथमिकियों से उपजा है. अप्रैल में एक बयान में, ईडी ने कहा था कि कंपनी और उसके निदेशक अपनी रियल एस्टेट परियोजनाओं में बुक किए गए फ्लैटों के लिए अग्रिम के रूप में संभावित खरीदारों से धन इकट्ठा करके लोगों को धोखा देने की 'आपराधिक साजिश' में शामिल थे.

फर्म समय पर फ्लैटों का कब्जा प्राप्त करने प्रदान करने के सहमत दायित्व का पालन करने में विफल रहे. एफआईआर के अनुसार फर्म ने आम जनता को 'धोखा' दिया. एजेंसी की जांच से पता चला कि सुपरटेक लिमिटेड और समूह की कंपनियों ने घर खरीदारों से धन एकत्र किया था. ईडी ने कहा कि कंपनी ने परियोजनाओं या फ्लैटों के निर्माण के लिए बैंकों और वित्तीय संस्थानों से परियोजना-विशिष्ट सावधि ऋण भी लिया.

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हालांकि, समूह की अन्य कंपनियों के नाम पर जमीन खरीदने के लिए इन धनराशि का 'दुरुपयोग और उपयोग' किया गया. जिसे बैंकों और वित्तीय संस्थानों से धन उधार लेने के लिए संपार्श्विक के रूप में फिर से गिरवी रखा गया था. एजेंसी ने कहा था कि सुपरटेक समूह ने बैंकों और वित्तीय संस्थानों को अपने भुगतान में भी 'डिफॉल्ट' किया है. वर्तमान में, फर्म के लिए हुए ऐसे लगभग 1,500 करोड़ रुपये के ऋण गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) बन गए हैं.

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