नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय एक मई को स्थापना के 100वें वर्ष का जश्न शताब्दी समाराेह के रूप में मनाने जा रहा है. 100 वर्ष के इस सफर को पूरा करने के दौरान दिल्ली विश्वविद्यालय ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं. विश्वविद्यालय ने देश की आजादी से लेकर आधुनिक भारत के कई आयाम को देखा है. डीयू की शुरुआत तीन कॉलेज और 750 छात्रों के साथ वर्ष 1922 में हुई थी. अब इसकी संख्या बढ़कर 90 कॉलेज 6 लाख से अधिक छात्र और 86 डिपार्टमेंट की हो चुकी है.
दिल्ली विश्वविद्यालय के 100 वर्ष के सफर को लेकर ईटीवी भारत ने डीयू के पूर्व छात्र, प्रोफेसर और राज्यसभा सांसद प्रोफेसर मनोज झा से खास बात की. उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से जुड़ी कई यादें और मौजूदा परिप्रेक्ष्य में अपनी बात रखी. इस दौरान उन्होंने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय की एक विशालता है और इसमें बहुलता है. जिसमें कॉलेज और डिपार्टमेंट हैं. विश्वविद्यालय में अलग-अलग विचारधाराएं है लेकिन विचारधाराओं के बीच संवाद की कभी कमी देखने को नहीं मिली है. 100 वर्ष के जश्न के मौके पर दिल्ली विश्वविद्यालय से जुड़े सभी कर्मचारियों छात्रों को शुभकामनाएं दी.
प्रोफेसर मनोज झा ने कहा कि आज जिस भी मुकाम पर पहुंचे हैं, वह दिल्ली विश्वविद्यालय की बदौलत ही है. उन्होंने कहा कि संवाद निरंतर हो और धाराओं के बीच संवाद किस तरीके से निरंतर चलते रहना चाहिए यह विश्वविद्यालय ने सिखाया है. डीयू को खूबसूरत इमारत से नहीं बल्कि इसके इबादत से भी देखने की जरूरत है. इसके अलावा उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय ने हमें मजबूत होना भी सिखाया है. इस दौरान उन्होंने छात्र जीवन के यादों के बारे में बताते हुए कहा कि 90 के दशक में जब सड़कों पर प्रतिरोध के लिए निकलते थे तो हमें देशद्रोह की धाराओं में बंद नहीं किया जाता था. अगर पुलिस हिरासत में लेती थी तो शाम तक छोड़ देती थी.
1990 के दशक से लेकर 2022 में काफी कुछ बदला है. महज अगर कोई एक कविता पढ़ देता है तो उस पर मुकदमा दर्ज हो जाता है. कुछ लिखने पर देशद्रोह का चार्ज लग जाता है. इस सबसे ना ही हमारे देश को और ना ही विश्वविद्यालय को कोई फायदा पहुंच रहा है. इसके अलावा उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय का दर्शन वैश्विक होना चाहिए. साथ ही कहा कि देश से मोहब्बत करते हैं लेकिन जरूरी नहीं है कि सरकार से मोहब्बत करें सरकार से सवाल पूछेंगे. यह इन दिनों बिल्कुल उल्टा हो गया है जो की चिंता का विषय है.