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दंत चिकित्सा में हो रहा इन आधुनिकतम तकनीक का इस्तेमाल, जिरकोनिया में बने मेटल कैप ज्यादा सुरक्षित - Dr Ranjan Bajpai

दांतों के इलाज में आधुनिकतम तकनीक का इस्तेमाल कर मरीजों को उनकी तकलीफ से मुक्ति दिलायी जा रही है. दांतों को इम्प्लांट करने में जहां पहले तीन महीने लगते थे, अब ये तीन दिन में भी सम्भव है. पढ़िए क्या कहते हैं डॉक्टर रंजन बाजपेयी...

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डॉक्टर रंजन बाजपेयी

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Published : Jul 19, 2022, 8:26 PM IST

प्रयागराज:जिले में दांतों के इलाज में आधुनिकतम तकनीक का इस्तेमाल कर मरीजों को उनकी तकलीफ से मुक्ति दिलवायी जा रही है. दंत चिकित्सा में इस्तेमाल की जाने वाली ये नयी विधियां मरीजों के दांतों के दर्द और तकलीफ से जल्द छुटकारा दिलवा रही हैं. दांतों को इम्प्लांट करने में जहां पहले तीन महीने लगते थे, वहीं अब ये तीन दिन में भी सम्भव है. इसके साथ ही दांतों में मेटल कैप लगवाने की जगह जिरकोनिया का कैप लगाया जा रहा है. मेटल कैप लगवाने से मरीजों को कई बार परेशानियों का सामना करना पड़ता है. लेकिन जिरकोनिया का कैप लगवाने से इस तरह की परेशानियों का भी सामना नहीं करना पड़ेगा.


दांतों के लिए सबसे सुरक्षित है जिरकोनिया कैप
अभी तक दांतों के सड़ने या खराब होने या टूटने पर उसे बदलने के लिए दांतों को इम्प्लांट किया जाता है. तो बहुत से लोग उसमे सफेद या पीली धातु का कैप लगवाते हैं. लेकिन ये मेटल वाले कैप लगने के बाद कई बार मरीजों को नुकसान पहुंचा देते हैं. जिसमें कुछ लोगों के दांत में लगे मेटल कैप के आसपास की स्किन का रंग काला हो जाता है. तो इसी मेटल कैप की वजह से ही बहुत से लोगों के मुंह में अल्सर की शिकायत होने लगती है. जबकि कुछ लोगों में मेटल कैप की वजह से ही कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी की शुरुआत हो जाती है.

डॉक्टर रंजन बाजपेयी, डेंटिस्ट

यही वजह है कि जब से जिरकोनिया में बने मेटल कैप आने लगे हैं. डॉक्टर उसे लगाना ज्यादा सुरक्षित मानते हैं. क्योंकि जिरकोनिया से बने कैप लगाने से उसका साइड इफेक्ट न के बराबर होता है. इसके साथ ही जिरकोनिया से बने कैप देखने में असली दांतों के जैसे रंग के होते हैं. जिस वजह से ये सुरक्षित होने के साथ ही सुंदर भी दिखते हैं. इतना ही नहीं जिरकोनिया कैप का एक और बड़ा फायदा ये होता है कि इस कैप को लगवाने वाले मरीज को सीटी स्कैन या एमआरआई जैसी जांच करवाने के दौरान भी कोई दिक्कत नहीं होती है. जबकि मेटल कैप लगवाने वाले मरीजों को इन जांच के दौरान मेटल कैप निकलवाने की जरूरत भी पड़ती है.

जिरकोनिया एक रासायनिक तत्व है, जिसे दूसरे रासायनिक तत्वों में से निकाला जाता है. जिसके लिए जिरकोनियम सिरेमिक रिडक्टिव क्लोरीनीकरण (Zirconium Ceramic Reductive Chlorination) किया जाता है. जिसके बाद जिरकोनियम ऑक्साइड पाउडर (Zirconium Oxide Powder) के रूप में बनता है. जिसमें कई और तत्व मिलने के बाद वो क्रिस्टल के रूप में तब्दील हो जाता है. जिसके बाद अलग -अलग विधि के साथ उसे डिमांड के अनुसार दांत के आकार में ढाल दिया जाता है. यह शरीर के अंदर किसी तरह का कोई खास नुकसान नहीं पहुंचाता है. जिस वजह से मेटल के दांत की जगह पर अब डॉक्टर भी जिरकोनिया के दांतों को लगाने को वरीयता देते हैं.

डॉक्टर रंजन बाजपेयी.

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प्रयागराज में डॉक्टर रंजन बाजपेयी इन दिनों जिरकोनिया से बने दांतों को लगाने के एक्सपर्ट कहे जाते हैं. उनके क्लीनिक में आने वाले मरीज भी खराब दांतों की जगह जिरकोनिया इम्प्लांट करवाने को पसंद कर रहे हैं. मरीजों का कहना है कि मेटल कैप इम्प्लांट करवाने के बाद उसके रंग उतर जाते हैं. कई बार उस मेटल की वजह से दूसरी दिक्कतें भी होने लगती है. लेकिन जिरकोनिया कैप इम्प्लांट करवाने के कई फायदे हैं, जबकि सबसे बड़ा फायदा तो यह होता है कि ये देखने वाले को पता भी नहीं चल पाता है.

इन दिनों दांतों के इलाज में भी डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है. डिजिटल स्कैनिंग और डिजिटल एक्सरे की मदद से दांतों का इलाज काफी सुविधा जनक हो गया है. दांतों का ऑपरेशन करने में डिजिटल स्कैनिंग का इस्तेमाल करके ऑपरेशन किया जा रहा है. टाइटेनियम इम्प्लांट, स्माइल डिजाइन, एपिको एकटोनॉमी और ओरल और मेक्सिलोफेसियल सर्जरी आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करके ही कि जाती है.

डॉक्टर रंजन बाजपेयी ने यह भी बताया कि पहले इम्प्लांट करने के तीन महीने से लेकर 6 महीने तक का समय लग जाता था. लेकिन अब तकनीक के इस्तेमाल से यह इम्प्लांट तीन दिन में भी करना संभव हो गया है. लेकिन तीन दिन में इम्प्लांट उन्हीं मरीजों में करना सही होता है, जिनके दांतों को इम्प्लांट करने के लिए हड्डियों का बेस नहीं मिलता हैं या हड्डियों में कोई दिक्कत होती है.
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