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सोशल मीडिया की याचिका पर सुनवाई से न्यायाधीश ने खुद को किया अलग

दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) के एक न्यायाधीश ने बुधवार को फेसबुक, ट्विटर और गूगल की उन याचिकाओं पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया, जिनमें योग गुरु रामदेव के खिलाफ मानहानिकारक आरोपों वाले वीडियो लिंक वैश्विक स्तर पर हटाने, निष्क्रिय या ब्लॉक (order to remove anti Ramdev links globally) करने के आदेश को चुनौती दी गई है.

Delhi HC
दिल्ली हाईकोर्ट

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Published : Feb 23, 2022, 3:09 PM IST

नई दिल्ली:रामदेव विरोधी लिंक हटाने (anti Ramdev links globally) के आदेश के खिलाफ सोशल मीडिया की याचिका पर सुनवाई से न्यायाधीश ने खुद को अलग कर लिया है. यह मामला न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आया था. पीठ की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति सांघी ने याचिकाओं पर सुनवाई से इनकार कर दिया और कहा कि इन्हें 21 मार्च को एक अन्य पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाए, जिसके वह सदस्य नहीं हैं.

फेसबुक, ट्विटर और गूगल ने एकल न्यायाधीश वाली पीठ के 23 अक्टूबर 2019 के उस आदेश को चुनौती दी है, जिसमें उन्हें और गूगल की अनुषंगी कंपनी यूट्यूब को रामदेव के खिलाफ मानहानिकारक आरोपों वाले वीडियो के लिंक को वैश्विक स्तर पर हटाने, निष्क्रिय या ब्लॉक करने का निर्देश दिया गया है. एकल न्यायाधीश वाली पीठ ने कहा था कि केवल जियो-ब्लॉकिंग या अपमानजनक सामग्री तक भारतीय उपयोगकर्ताओं की पहुंच बाधित करना, जैसा कि सोशल मीडिया कंपनियों द्वारा सहमति जताई गई है, काफी नहीं होगा. क्योंकि यहां रहने वाले यूजर अन्य माध्यमों से उस तक पहुंच हासिल कर सकते हैं.

पीठ ने कहा था कि पहुंच बाधित करना मध्यस्थों (सोशल मीडिया कंपनियों) की जिम्मेदारी है, जिसे पहुंच को पूरी तरह से बाधित करने के रूप में पढ़ा जाना चाहिए, न कि आंशिक रूप से बाधित करने के रूप में. यह देखते हुए कि प्रौद्योगिकी और कानून के बीच की दौड़ को खरगोश और कछुए के बीच की दौड़ करार दिया जा सकता है, क्योंकि प्रौद्योगिकी सरपट दौड़ती है, जबकि कानून गति बनाए रखने की कोशिश करता है. अदालत ने कहा था कि सूचना प्रौद्योगिकी कानून के प्रावधानों की व्याख्या इस तरह से की जानी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि न्यायिक आदेश प्रभावी हैं.

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अदालत ने सोशल मीडिया कंपनियों को निर्देश दिया था कि भारत के भीतर से उनके कंप्यूटर नेटवर्क पर अपलोड की गई सभी आपत्तिजनक सामग्री को वैश्विक स्तर पर निष्क्रिय और ब्लॉक करना होगा. अदालत ने यह निर्देश तब जारी किया जब सोशल मीडिया कंपनियों ने कहा था कि जहां तक ​​भारत में पहुंच का संबंध है, उन्हें यूआरएल को निष्क्रिय या ब्लॉक करने में कोई आपत्ति नहीं है लेकिन वे वैश्विक स्तर पर अपमानजनक सामग्री को हटाने/निष्क्रिय/ब्लॉक करने के खिलाफ हैं. मानहानिकारक वीडियो में रामदेव पर लिखी गई एक किताब के अंश शामिल थे, जिन्हें सितंबर 2018 में उच्च न्यायालय ने हटाने का आदेश दिया था.

(पीटीआई)

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