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Central Ordinance Issue: अध्यादेश का बहाना 2024 पर निशाना, देश के कोना-कोना घूम रहे केजरीवाल

2024 में देश से भाजपा को हटाने के लिए राजनीतिक तैयारी में जुटे सभी विपक्षी दलों के लिए बिहार के सीएम नीतीश कुमार और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने फाइनल फतेह से पहले सेमीफाइनल में हराने का मसौदा तैयार कर दिया है. विपक्षी एकजुटता का एक मुद्दा लेकर नीतीश मैदान में है तो अध्यादेश का मुद्दा लेकर अरविंद केजरीवाल. दोनों मुद्दे 2024 के सेमीफाइनल के लिए हैं. देश में दोनों नेता दौड़ लगा रहे हैं अब देखना है कि सेमीफाइनल खेलने के लिए विपक्षी दल मुद्दे के किस टीम का हिस्सा बनते हैं.

Central Ordinance Issue
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Published : Jun 1, 2023, 8:59 PM IST

Updated : Jun 1, 2023, 10:55 PM IST

रांची: 2024 के सत्ता के महासमर की राजनीतिक रणभेरी बजने से पहले ही सभी राजनीतिक दल अपने अपने तरीके से अपनी गोलबंदी में लग गए हैं. पूरे देश में भाजपा मुखालफत में दो नेता सेमीफाइनल वाली गोलबंदी में लगे हुए हैं. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल. दोनों नेता अपनी मुहिम पर लगे हुए हैं, जो लगातार इस बात को कह भी रहे हैं कि अगर यह मुहिम सफल होता है तो 2024 के सेमीफाइनल की जंग तो जीत ली जाएगी और यहीं से भाजपा के दिन बिगड़ने लगेंगे.

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नीतीश वाला विपक्ष: 2024 के लिए विपक्ष मुद्दा बनाएगा. इस मुद्दे को लेकर के नीतीश कुमार भाजपा विरोधी सभी राजनीतिक दलों को एकजुट करने में लगे हुए हैं. जबकि 2024 का सेमीफाइनल तैयार हो जाएगा अगर दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल के मुद्दे पर सारा विपक्ष एकजुट हो जाता है. अध्यादेश की जिस सियासत को लेकर के केजरीवाल निकले हैं और विपक्ष की एकजुटता का जो जनादेश नीतीश कुमार जोड़ना चाह रहे हैं, 2024 के सेमीफाइनल का सबसे बड़ा आधार होगा. नीतीश कुमार और अरविन्द केजरीवाल दोनों नेताओं द्वारा कहा जा रहा है. भाजपा विरोध वाले विपक्षी राजनीतिक दलों से की मुलाकातों में इस बात को रखा भी जा रहा है.

केजरीवाल वाला विपक्ष: देश में विपक्षी गोलबंदी में जुटे केजरीवाल के अगली कड़ी में बारी झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की है. शुक्रवार 2 जून को दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान झारखंड के दौरे पर हैं. माना जा रहा है कि झारखंड से भी 2024 के सेमीफाइनल वाले अध्यादेश को जिताने का पूरा राजनीतिक स्वरूप खड़ा किया जाएगा. झारखंड से भी 24 की एकजुटता की रणभेरी का नया रंग भी बताया जाएगा.

नीतीश का नया दांव: 2024 के लिए विपक्षी राजनीतिक दलों को एकजुट करने के लिए नीतीश कुमार भाजपा विरोधी राजनीतिक दलों से मुलाकात करने के लिए कई दौरे किए. महाराष्ट्र में जाकर उन्होंने शरद पवार को 2024 की तैयारी के लिए सब को गोलबंद करने की जिम्मेदारी देकर सब को एक मंच पर करने के लिए नई रणनीति में जुट गए हैं. तैयारी के पार्ट 2 की बात की जाए तो 12 जून को भाजपा विरोधी दलों की बैठक पटना में होने वाली है. बैठक के लिए सब को न्योता भी जा रहा है झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन उसमें शामिल होंगे इसकी पार्टी से सहमति वाला बयान बाहर आ गया है.

दिल्ली का पावर: भाजपा मुखालफत की देश में घूम कर सबको एक मंच पर लाने की दूसरी गोलबंदी दिल्ली में सरकार कैसे चले और अधिकार किसका हो. इसके लिए केंद्र सरकार के लाए गए अध्यादेश को राज्यसभा में रोक दिया जाए इसके लिए अरविंद केजरीवाल सभी विपक्षी दलों से मिल रहे हैं. तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, कर्नाटक के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के अलावा सीताराम येचुरी, उद्धव ठाकरे और शरद पवार से अपने लिए समर्थन मांग चुके हैं. 2 जून को झारखंड में हेमंत सोरेन से भी इस मुद्दे पर समर्थन मांगने के लिए अरविंद केजरीवाल आ रहे हैं.

हेमंत-कांग्रेस और केजरीवाल: झारखंड में चल रही हेमंत सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा की बात करें राज्यसभा में दो सांसद झामुमो के हैं. 2 सांसदों को अपने पक्ष में करने के लिए अरविंद केजरीवाल का जो राजनीतिक दौरा हो रहा है वह कई मामलों में राजनीतिक चर्चा के विषय में भी है. नई राजनीतिक सियासत गोलबंदी का एक आधार भी कहने के लिए अध्यादेश वाली राजनीति पर हेमंत सोरेन को अपने साथ जोड़ना है, लेकिन हेमंत सोरेन के साथ जो चीजें जुड़ी हैं वह हेमंत सोरेन को अलग लाइन पर ले जाएंगे यह थोड़ा सा मुश्किल दिख रहा है.

अपनी राजनीति अपनी ही बात: झारखंड में हेमंत सोरेन और कांग्रेस के समर्थन की सरकार चल रही है. कांग्रेस पहले ही आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल के किसी भी मामले में साथ नहीं होने की बात कह चुकी है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कह दिया था कि आम आदमी पार्टी के किसी मुद्दे के साथ जाने का या उसके साथ खड़े होने का कोई सवाल ही नहीं पैदा होता है. जबकि झारखंड में कांग्रेस पार्टी हेमंत के साथ सरकार चला रही है. ऐसे में हेमंत सोरेन को अपने पक्ष में करने की किस राजनैतिक कवायद के साथ केजरीवाल झारखंड जा रहे हैं, वह राजनीति बीजेपी पर दबाव तो देगी ही, साथ ही कांग्रेस पर भी एक अप्रत्यक्ष दबाव है. केजरीवाल जो दबाव हेमंत सोरेन के माध्यम से कांग्रेस पर डलवाना चाह रहे हैं वह राजनीति में साफ साफ सबको नजर आ रहा है.

वरिष्ठ पत्रकार रवि रंजन कश्यप कहते हैं कि देश में राजनीतिक विरोध की अपनी-अपनी लड़ाई पर अपना-अपना चलन हो गया है. बीजेपी की मुखालफत के लिए जिस मुद्दे को लेकर राजनीतिक दल जा रहे हैं उसमें उनका फायदा ज्यादा है लोगों का फायदा कम है. देश में अगर कांग्रेस के विरोध वाली राजनीति की बात करें तो देश में जितने फ्रंट बने थे उनमें राजनीतिक एकजुटता की लड़ाई बड़ी साफ थी. कांग्रेस के विरोध में जब देश में फ्रंट खड़ा हुआ तो उसमें चाहे जी पी रहे हो या लोहिया वाली सियासत इन लोगों के एजेंडे बड़े साफ है. लेकिन आज वाली राजनीति में जिस एजेंडे को लेकर राजनीतिक दल चल रहे हैं और जिस एजेंडे के आधार पर वो राजनीतिक दल बने थे उसका पूरा आधार ही उन लोगों ने छोड़ दिया है.

जरूरत वाली राजनीति:जरूरत की राजनीति को करना आज का सबसे बड़ा राजनीतिक आधार मान लिया गया है. यही वजह है कि किसी एक मुद्दे पर राजनीतिक दल विरोध वाली उस राजनीति को भी जगह नहीं दे पाते हैं जो देश स्तर के लिए बदलाव की बात करें. अरविंद केजरीवाल का मुद्दा सिर्फ दिल्ली के लिए है, और उनके अपने राजनीतिक फायदे के लिए अन्ना आंदोलन के बाद जिस तरह की स्थिति अरविंद केजरीवाल ने राजनीति में लाकर कि वह सभी राजनीतिक दलों के सामने है. जिस कांग्रेस की मुखालफत करते अरविंद केजरीवाल नहीं थकते थे आज उस से समर्थन मांगने जा रहे हैं. मामला साफ है कि राजनीति में आने के लिए अरविंद केजरीवाल के बयान कुछ अलग थे, अब राजनीति में आने के बाद अरविंद केजरीवाल की जरूरतें अलग हैं. और यही अवसरवादी राजनीति का सबसे बड़ा उदाहरण है.

दौरे से क्या मिलेगा: अरविंद केजरीवाल और भगवंत मान के झारखंड दौरे का कोई बड़ा राजनीतिक फलाफल होना है यह तय नहीं हो पा रहा है. बड़ी बात यह है कि झारखंड में किस तैयारी पर आम आदमी पार्टी जाएगी खुद आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं और पार्टी के नेताओं को पता नहीं है. ऐसे में इस बात को तो गौण जरूर रखा जा रहा है कि अरविंद केजरीवाल सिर्फ अध्यादेश पर एक जुटता करने के लिए सभी राजनीतिक दलों से मिल रहे हैं. अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक पार्टी राजनीति के लिए एक बड़ा दल खड़ा करेगी इसकी बुनियाद भी झारखंड में डालने की पूरी कोशिश हो रही है. राजनीति में विपक्ष एकजुटता का आधार खड़ा करने की कोशिश तो बड़ी हो रही है. हालांकि विभेद इस बात का भी है कि कांग्रेस इस बात को बेहतर जान चुकी है और दिल्ली में बदली सत्ता को भुगतनी रही है इसमें अरविंद केजरीवाल की भूमिका भी बड़ी रही है.

भाजपा मुखालफत के हर रंग: अब देखने वाली बात यह होगी कि हेमंत सोरेन से मिलने आ रहे केजरीवाल अध्यादेश से सेमीफाइनल को 2024 के लिए जिस तरीके से राजनीतिक मुहिम को रंग दे रहे हैं, वह अध्यादेश 2024 में विपक्षी एकजुटता के लिए जनादेश का कोई स्वरूप खड़ा कर पाएगा. फिलहाल इसकी बानगी सवालों में है . जिस सवाल को लेकर केजरीवाल आ रहे हैं उसका क्या फला फल होता है यह तो आने वाले समय में ही पता चलेगा, लेकिन एक बात तो साफ है कि भाजपा से लड़ाई और 2024 के लिए विपक्ष को सेमीफाइनल का मंच देना यह सभी राजनीतिक दलों के लिए किसी लोकलुभावन नारों से कम नहीं है जो भाजपा मुखालफत की राजनीति कर रहे हैं.

अध्यादेश से एकजुटता कितनी कहानी कितना सच: कर्नाटक के सीएम एम के स्टालिन से मुलाकात के बाद दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा राज्यसभा में दिल्ली के लिए लाया गया अध्यादेश अगर रुक जाता है तो इसका मतलब साफ है कि विपक्ष ने 2024 का सेमीफाइनल जीत लिया. सवाल यह है कि केजरीवाल की राजनीति के लिए कांग्रेस केजरीवाल को साथ देकर भाजपा को हरा दे और केजरीवाल से मिली हार को साथ लेकर चलती रहे. जरूरत वाली राजनीति में मोदी और भाजपा के मुखालफत वाली राजनीति का पूरा पुट केजरीवाल भर रहे हैं और नीतीश एक जुट कर रहें हैं भले ही दोनों के मुद्दों वाली राजनीति में सभी राजनीतिक दलों का फायदा न हो लेकिन एकजुटता दिखानी है. ऐसे में दिल्ली और बिहार वाली राजनीति विपक्ष की एकजुटता के लिए जितना जोर पकड़े हुए हैं देखना है कि इन दोनों मुद्दों पर विपक्ष एकजुट होता कितना है मजबूती के कितने बड़े अध्यादेश को दिखा पाती है.

Last Updated : Jun 1, 2023, 10:55 PM IST

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