हैदराबाद : रिलायंस इंडस्ट्रीज़ देश की सबसे बड़ी कंपनी है और आज इसका मालिकाना हक रखने वाले मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं. इस कंपनी की बदौलत मुकेश अंबानी की गिनती दुनिया के सबसे अमीर उद्योगपतियों में होती है. लेकिन रिलायंस इंडस्ट्रीज़ को इस मुकाम तक पहुंचाने का श्रेय उनके पिता धीरूभाई अंबानी को जाता है. जिन्होंने इस कंपनी का सपना देखा और उसे साकार भी किया. आज धीरूभाई अंबानी की पुण्यतिथि है. 6 जलाई 2002 को 69 साल की उम्र में उनका निधन हुआ था. उनके निधन के करीब 20 साल बाद उनका सपना आज बुलंदियों पर पहुंच चुका है और इस बुलंदी का श्रेय सिर्फ और सिर्फ धीरूभाई अंबानी को ही जाता है.
कहानी धीरूभाई हीराचंद अंबानी की
बिल्कुल सही पढ़ा आपने, धीरूभाई का पूरा नाम धीरूभाई हीराचंद अंबानी था. उनका जन्म 28 दिसंबर 1932 को गुजरात के जूनागढ़ जिले के चोरवाड़ गांव में हुआ था. चार भाई बहनों के लालन पालन का पूरा जिम्मा उनके शिक्षक पिता पर था. आर्थिक परेशानियों के कारण उन्हें पढ़ाई भी छोड़नी पड़ी. जिस रिलायंस इंडस्ट्रीज का सितारा आद बुलंदियों पर है उसकी स्थापना करने वाले धीरूभाई अंबानी सिर्फ 10वीं तक पढ़े थे. लेकिन अपने हौसले और दृढ निश्चय की बदौलत वो देश के जाने-माने उद्योगपति बने.
300 रुपये की सैलरी से 62 हजार करोड़ की संपत्ति का सफर
-पढ़ाई छोड़ने के बाद उन्होंने फल या नाश्ता बेचने जैसे छोटे-मोटे काम करने शुरू किए. ज्यादा फायदा नहीं हुआ तो उन्होंने गांव के पास एक धार्मिक पर्यटन स्थल के पास पकौड़े बेचने का काम शुरु किया. उनका काम पूरी तरह से पर्यटकों पर निर्भर था, ज्यादातर वक्त कमाई नहीं होने पर ये काम भी छोड़ दिया.
-मैट्रिक की पढ़ाई खत्म करने के बाद धीरूभाई छोटे-मोटे काम शुरु किए. 1949 में 17 साल की उम्र में वो अपने भाई के साथ नौकरी के लिए यमन चले गए. जहां उन्होंने एक पेट्रोल पंप पर नौकरी की, जिसके लिए उन्हें 300 रुपये का मासिक वेतन मिलता था. कुछ ही वक्त में वो पेट्रोल पंप के मैनेजर बन गए लेकिन उनका दिमाग हमेशा नौकरी के बजाय बिजनेस के आइडिया तलाशता था.
-यमन में आजादी के लिए चल रहे आंदोलन के चलते वहां जिंदगी आसान नहीं रही जिसके बाद वो 1954 में भारत लौट आए. एक बिजनेस बनने का सपना उनके दिल में बैठ चुका था. कहते हैं कि यमन से घर लौटने के बाद 500 रुपये लेकर वो मुंबई रवाना हो गए.
-व्यवसाय शुरू करने के लिए उनके पास रकम नहीं थी इसलिये अपने मामा के साथ मसालों और शक्कर का व्यापार शुरू किया. यहीं पर रिलायंस कमर्शियल कॉरपोरेशन की नींव पड़ी.
-इसके बाद उनकी रिलायंस कंपनी ने सूत का करोबार शुरू किया. जल्द ही वो बम्बई में सूत व्यापार के सिरमौर बन गए. इस बिजनेस में जोखिम को देखते हुए उनके मामा ने उनका साथ छोड़ दिया. लेकिन कंपनी पर कोई फर्क नहीं पड़ा
-धीरूभाई अब बाजार की नब्ज पहचान चुके थे. उन्होंने देखा कि भारत में बाहर से पॉलिएस्टर और विदेशों में भारत के मसालों की बहुत मांग थी और यहां से उन्हें बिजनेस का आइडिया आया.
-1966 में रिलायंस टैक्सटाइल्स की शुरुआत हुई. इसी साल कंपनी ने अहमदाबाद में एक टेक्सटाइल मिल लगाई. जहां कपड़े बनाने में पॉलिएस्टर के धागों का इस्तेमाल हुआ. धीरूभाई अंबानी ने कपड़ों के ब्रांड विमल की शुरुआत की.
-विमल कंपनी का नाम उनके बड़े भाई रमणीकलाल अंबानी के बेटे विमल अंबाना के नाम पर रखा गया था. बड़े पैमाने पर कंपनी का प्रचार किया और जल्द ही विमल ब्रांड ने लोगों के बीच अपनी पहचान बना ली.