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कांग्रेस का 'हाथ' क्यों थामेंगे सीपीआई के युवा कामरेड कन्हैया

क्या कांग्रेस को युवा वामपंथी नेता कन्हैया कुमार और गुजरात के दलित नेता जिग्नेश मेवानी की जरूरत है या इन दोनों नेताओं ने 5 साल के इंतजार के बाद ऐसी पार्टी से जुड़ने का फैसला किया है, जहां वह सुर्खियों में बने रहे. दोनों युवा नेता कांग्रेस का दामन क्यों थाम रहे हैं. पढ़ें रिपोर्ट

cpi leader kanhaiya kumar and jignesh mewani will join congress
cpi leader kanhaiya kumar and jignesh mewani will join congress

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Published : Sep 27, 2021, 8:58 PM IST

Updated : Sep 28, 2021, 5:54 PM IST

हैदराबाद :लगातार युवा नेतृत्व खो रही कांग्रेस अब तेज-तर्रार छवि गढ़ चुके युवा नेताओं को पार्टी में शामिल कर रही है. चर्चा यह है कि पार्टी के रणनीतिकार प्रशांत किशोर की सलाह पर पार्टी सीपीआई नेता कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) और गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवाणी को कांग्रेस में शामिल कराया जाएगा. न्यूज एजेंसी एएनआई के अनुसार, दोनों युवा नेता 28 सितंबर को शहीद भगत सिंह की जयंती के दिन कांग्रेस में शामिल होंगे.

दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ (JNUSU) के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) सीपीआई के नेशनल एजक्यूटिव काउंसिल के सदस्य हैं. 2016 में कन्हैया कुमार का जेएनयू अवतार काफी पॉपुलर हुआ था. राष्ट्रदोह कानून के खिलाफ आंदोलन, भड़काऊ भाषण, गिरफ्तारी के बाद कन्हैया वामपंथी राजनीति का नया चेहरा बनकर उभरे थे.

2016 में कन्हैया कुमार का जेएनयू अवतार काफी पॉपुलर हुआ था.

जेएनयू से निकलने के बाद कन्हैया कुमार ने सीपीआई जॉइन की थी. 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने बेगूसराय से बीजेपी के गिरिराज के खिलाफ ताल ठोंकी थी मगर करीब 22 प्रतिशत वोट हासिल करने के बावजूद वह हार गए थे. बेगूसराय में भूमिहार जाति के मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है और कन्हैया कुमार भी भूमिहार हैं. अब सीपीआई का फ्रंट रनर कांग्रेस से हाथ मिलाएगा.

लेफ्ट से सेंटर में क्यों चल पड़ा युवा कामरेड

2019 में चुनाव हारने से पहले तक कन्हैया कुमार प्रखर वक्ता के तौर पर देश में पहचाने जाते रहे. उन्होंने अपने भाषण में मोदी सरकार की नीतियों की जमकर बखिया उधेड़ी थी. मगर चुनाव के बाद वह पार्टी के भीतर ही विवादों के कारण निष्क्रिय हो गए. 2021 में बिहार प्रदेश कार्यालय सचिव इंदुभूषण वर्मा के साथ मारपीट के बाद उनकी पार्टी ने ही निंदा की थी. हैदराबाद में हुई नेशनल काउंसिल की बैठक में ये निंदा प्रस्ताव पारित किया गया था. उस बैठक में सीपीआई नेशनल काउंसिल के110 सदस्य मौजूद थे. इनमें से सिर्फ तीन को छोड़कर, बाकी अन्य सभी ने कन्हैया के खिलाफ निंदा प्रस्ताव का समर्थन किया था.

इसके बाद कई मौके आए जब कन्हैया ने सीपीआई को भारतीय कन्फ्यूजन पार्टी बता दिया था. विधानसभा चुनाव में लेफ्ट पार्टियों ने आरजेडी और कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था. विधानसभा चुनाव में कन्हैया स्टार प्रचारक के तौर पर नजर नहीं आए. माना जाता है कि पार्टी में उपेक्षा से दुखी युवा वामपंथी नेता ने कांग्रेस का रुख किया है.

बताया जाता है कि कन्हैया ने कैडर आधारित पार्टी सीपीआई में बने रहने के लिए सचिव का पद और टिकट बांटने का अधिकार मांगा था. हालांकि उन्होंने इसकी पुष्टि नहीं की. मगर पार्टी के केंद्रीय पदाधिकारियों ने उनसे प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कांग्रेस में शामिल होने की चर्चा का खंडन करने को कहा तो वह चुप्पी साध गए.

प्रशांत किशोर की रणनीति कांग्रेस में जुझारू चेहरों को लाने की है.

कन्हैया और राहुल गांधी की दो बार मुलाकात हो चुकी है. कांग्रेस ने कन्हैया को राष्ट्रीय भूमिका में भी लाने का आश्वासन दिया है. हालांकि मार्च में वह जेडी यू नेता नीतीश कुमार से भी मिले थे. तब उनके जेडी-यू में शामिल होने की अटकलें लगाई गई थी.

कांग्रेस को क्या कन्हैया की जरूरत है ?

पिछले तीस साल से कांग्रेस में बिहार में अपना जनाधार तलाश रही है. विधानसभा चुनावों में गठबंधन के बाद पार्टी को सीट तो मिल जाती है मगर व्यापक जन समर्थन की कमी रहती है. पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस राजद के साथ गठबंधन के बाद 70 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, मगर इसे 19 सीटों पर ही कामयाबी मिली थी. पार्टी के केंद्रीय नेताओं का मानना है कि अभी बिहार में नीतीश कुमार और एनडीए पर हमला करने वाला युवा चेहरा नहीं है. इसके अलावा नरेंद्र मोदी के खिलाफ प्रस्तावित महा अभियान के लिए उसे ऐसे युवा नेताओं की जरूरत है, जिसे जनता पहचानती हो. साथ ही वह बेबाकी से अपनी बात रखता हो.

कांग्रेस नेतृत्व को लगता है कि छात्र नेता के तौर पर कन्हैया को संगठन का अनुभव है. आरएसएस की विचारधारा के खिलाफ उनका भाषण नरेंद्र मोदी और बीजेपी के खिलाफ माहौल बनाता है. कन्हैया भूमिहार जाति से आते हैं. कांग्रेस कन्हैया के जरिये इस जाति को दोबारा अपने साथ जोड़ना चाहती है. अभी बिहार का भूमिहार वोटर बीजेपी के साथ माने जाते हैं.

2017 के युवा तुर्क, अल्पेश ठकोर बीजेपी में है. हार्दिक तो पहले ही कांग्रेसी हो गए अब जिग्नेश की बारी है.

2017 के 3 और युवा तुर्क अभी कहां हैं

जब कन्हैया दिल्ली में लाल झंडा उठाकर मोदी सरकार का विरोध कर रहे थे, तब गुजरात में भी तीन युवाओं ने अपने तेवर से सुर्खियां हासिल की थीं. साल 2017 के गुजरात विधानसभा के दौरान जिग्नेश मेवाणी, हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर की तिगड़ी ने कांग्रेस को बीजेपी के टक्कर में ला खड़ा किया था. अब हार्दिक पटेल गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हैं. अल्पेश ठाकोर बीजेपी में चले गए. जिग्नेश मेवाणी अब कन्हैया के साथ कांग्रेस जॉइन कर सकते हैं.

Last Updated : Sep 28, 2021, 5:54 PM IST

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