कोरोना संक्रमण के चलते एक बार फिर ताजनगरी में स्थित शीरोज हैंगऑउट कैफे 'लॉक' हो गया है. कोरोना के कारण इंटरनेशनल फ्लाइट अभी बंद हैं. इस वजह से विदेशी मेहमानों का आना-जाना भी बंद है. वहीं अब दोबारा से कोरोना संक्रमण तेजी से बढ़ रह रहा है. विदेशी और देशी मेहमान भी कैफे नहीं पहुंच रहे हैं. इससे कैफे का खर्चा और किराया भी निकालना मुश्किल हो गया है. यही वजह रही है कि, छह माह में दीपावली और होली पर ही एसिड अटैक फाइटर्स सहित अन्य स्टाॅफ को 15-15 हजार रुपये सैलरी के रूप में मिले हैं. कैफे अस्थायी तौर पर बंद होने से एसिड अटैक फाइटर्स एक बार फिर बेरोजगार हो गईं. जबकि, कोरोना से पहले हर रोज यहां कई देशों के आने वाले विदेशी पर्यटक की मेहमानवाजी एसिड अटैक सर्वाइवर्स करती थीं.
बता दें कि, शीरोज कैफे को संचालित करने वाली संस्था छांव फाउंडेशन ने कैफे बंद करने का फैसला रविवार को लिया. सोमवार सुबह शीरोज हैंगआउट कैफे पर अस्थायी तौर पर बंद करने का नोटिस चस्पा कर दिया गया. इससे इस कैफे में कार्य करने वाली दस एसिड अटैक सर्वाइवर्स सहित 14 लोग बेरोजगार हो गए हैं.
घर का खर्च कैसे चलेगा पता नहीं
एसिड अटैक फाइटर मधु कश्यप का कहना है कि यहां पर पर्यटक या मेहमान आते थे. उनसे होने वाली आय से ही हमारी सैलरी निकली थी. उससे ही यहां का किराया और अन्य खर्च भी उससे ही पूरे हो जाते थे. मधु ने बताया कि पहले हमें कोई नौकरी पर नहीं रखता था. मगर, जब ये कैफे यहां पर खुला तो हमें नौकरी मिली. अब इसके बंद होने से बहुत दिक्कत आ गई है घर का खर्चा चलाना भी मुश्किल हो गया है. बच्चों की फीस भी नहीं जमा हो पा रही है. मकान का किराए भी कैसे देंगे. यह समझ नहीं आ रहा है.
छह माह में मिले महज 15 हजार रुपये
एसिड अटैक फाइटर बाला ने बताया कि लाॅकडाउन के बाद 20 अक्टूबर को कैफे खुला था. उसके बाद दीपावली पर सभी को पांच- पांच हजार रुपये सैलरी मिली थी. इसके बाद होली पर सभी को दस-दस हजार रुपए सैलरी मिली. इतने लंबे समय में इतने कम पैसे मिले हैं. जबकि, हमारे खर्चे पूरे हैं. खर्चे कम नहीं हो रहे हैं. लाॅकडाउन और कोरोना संक्रमण के बाद मंहगाई भी बढी है. सैलरी मिल नहीं रही है. इन दिनों बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड रहा है. क्योंकि, यह कैफे चल ही नहीं रहा है.
खर्चा भी नहीं निकल रहा था
शीरोज कैफे के पीआरओ अजय तोमर ने बताया कि कोरोना के बाद 20 अक्टूबर को जब कैफे खुला था. तभी से ऐसी स्थिति बन रही थी. पहले यहां विदेशी पर्यटक आते थे. मगर, इंटरनेशनल फ्लाइट बंद होने से विदेशी टूरिस्ट आ नहीं रहे हैं. अब रैवेन्यू ही नहीं मिल रहा था. यहां का किराया और खर्चे नहीं निकल पा रहा था. फंडिंग नहीं मिल रही है. अभी फिर कोरोना की लहर है. अभी एक साल तक यह कैफे अस्थाई तौर पर बंद हो सकता है.
लाॅकडाउन में हो गया था 'लाॅक'
कोरोना महामारी और लॉकडाउन की वजह से 19 मार्च 2020 को कैफे को बंद कर दिया गया था. तब एसिड अटैक फाइटर्स को कैफे बंद होने पर भी वेतन समय से दिया गया था. इसके बाद 20 अक्टूबर 2020 को कैफे को अनलाॅक किया गया. इससे एसिड अटैक फाइटर्स को कुछ उम्मीद लगी थी. मगर, विदेशी पर्यटकों को आना अभी बंद है. इससे परेशानी बढती चली गई.
यहां आ चुके हैं विदेशी मेहमान
आगरा में ताजमहल देखने आने वाले तमाम विदेशी पर्यटक शिरोज हैंगऑउट कैफे में भी जाते हैं. विश्व के कई बड़े नेताओं से लेकर बॉलीवुड और हॉलीवुड की हस्तियां शिरोज कैफे आ चुकी हैं. यहां पर इटली के पूर्व प्रधानमंत्री पाओले जेंटिलोनी के अलावा इटली के ही रहने वाले सोनी वर्ल्ड फोटोग्राफर ऑफ द इयर फेड्रिको बोरेला, जर्मनी की प्रथम लेडी, मिस वर्ल्ड ग्रेट ब्रिटेन, और फेसबुक की गोबल टीम के अहम लोग भी आए हैं. इसके अलावा अन्य विदेशी पर्यटक आकर इस कैफे के मेहमान बन चुके हैं.
10 दिसंबर 2014 को खुला था कैफे
छांव फाउंडेशन ने 10 दिसंबर 2014 को फतेहाबाद रोड पर कैफे शीरोज हैंगआउट की शुरूआत की थी. यह विश्व का एकमात्र ऐसा कैफे बना, जिसे एसिड अटैक सर्वाइवर संचालित करती थीं. यहां शुरुआत में पांच एसिड अटैक सर्वाइवर्स काम करती थीं. इस कैफे की विश्व में अपनी अलग पहचान बनी. फिलहाल इस कैफे को दस एसिड अटैक फाइटर्स संचालित करती हैं.
छपाक में दिखा एसिड अटैक फाइटर्स का संघर्ष
फिल्म अभिनेत्री दीपिका पादुकोण स्टारर फिल्म छपाक के जरिए फाउंडेशन के अभियान और लक्ष्मी के संघर्ष की कहानी को बड़े पर्दे पर दिखाया गया है. जिसकी खूब सराहना हुई है. इससे एसिड अटैक फाइटर्स की कहानी घर पहुंची.