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मां को खोना असहनीय: उपभोक्ता अदालत ने चिकित्सकीय लापरवाही के लिए 20 लाख रुपये मुआवजे का आदेश दिया

उपभोक्ता अदालत (Consumer court ) ने एक अस्पताल और उसके डॉक्टर को 20 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया है. अदालत ने टिप्पणी की कि मां को खोना असहनीय है.

उपभोक्ता अदालत
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Published : Nov 13, 2021, 5:58 PM IST

नई दिल्ली : राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) ने 26 साल पहले चिकित्सकीय लापरवाही के कारण बच्चे के जन्म के बाद महिला की मौत होने के मामले में महाराष्ट्र के एक अस्पताल और चिकित्सक को पीड़िता के परिवार को 20 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया है.

फैसले में एनसीडीआरसी के अध्यक्ष आर के अग्रवाल और सदस्य एसएम कांतिकर ने लेखिका सुसान विग्स के कथन का जिक्र करते हुए कहा, 'एक मां को खोना कुछ ऐसा है जो स्थायी और अकथनीय है, ऐसा घाव जो कभी भर नहीं पाएगा. '

'मां के बिना 'मदर्स डे' दर्दनाक होता है'
अस्पताल और डॉक्टर को चिकित्सकीय लापरवाही के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए पीठ ने कहा, 'हम समझते हैं कि मां के बिना 'मदर्स डे' कितना चुनौतीपूर्ण और दर्दनाक होता है.' राष्ट्रीय आयोग महाराष्ट्र राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के फरवरी 2015 के आदेश के खिलाफ अस्पताल और डॉक्टर द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें उन्हें परिवार को 16 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया गया था.

एनसीडीआरसी ने पाया कि घटना ढाई दशक से अधिक समय पहले हुई थी, इसलिए एनसीडीआरसी ने 11 नवंबर के अपने फैसले में अर्जी को खारिज कर दिया और मुआवजे की राशि भी बढ़ा दी.

पीठ ने कहा, 'हम अस्पताल और दो डॉक्टरों को 20,00,000 रुपये का मुआवजा और 1,00,000 रुपये शिकायतकर्ताओं को मुकदमे में आए खर्च के लिए देने का निर्देश देते हैं.'

1995 का है मामला
शिकायतकर्ताओं के अनुसार 20 सितंबर, 1995 को डॉक्टर ने महिला का 'लोअर सेगमेंट सिजेरियन सेक्शन' (एलएससीएस) किया और सुबह साढ़े नौ बजे उसने एक बच्चे को जन्म दिया, जिसके बाद महिला को बहुत अधिक रक्तस्राव होने लगा और दिन में ढाई बजे तक भी डॉक्टर रक्तस्राव को नहीं रोक पाए.

महिला के पति और उसके दो बच्चों ने कहा, 'मरीज को दूसरे अस्पताल ले जाया गया, लेकिन वहां पहुंचने पर शाम करीब साढ़े चार बजे उसकी मौत हो गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कहा गया है कि मौत का कारण सर्जरी के बाद अत्यधिक रक्तस्राव होना था.

आयोग ने कहा कि मरीज को दूसरे अस्पताल में ले जाने से पहले पांच घंटे का अत्यंत महत्वपूर्ण समय बर्बाद हो गया. एनसीडीआरसी ने कहा, 'इलाज करने वाला डॉक्टर उचित कौशल और देखभाल करने में विफल रहा. हमारे विचार में रेफर करने में देरी घातक थी, यह लापरवाही थी.'

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हालांकि अस्पताल और डॉक्टर ने लापरवाही और कमी के आरोपों से इनकार किया. डॉक्टर ने आयोग से कहा कि उन्होंने विशेष रूप से दंपति को ऐसे अस्पताल जाने की सलाह दी थी जहां ब्लड बैंक की सुविधा उपलब्ध हो, लेकिन उन्होंने अपनी असुविधा व्यक्त की। उन्होंने आगे दावा किया कि मरीज का पति समय पर खून की व्यवस्था करने में विफल रहा.
(पीटीआई-भाषा)

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