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राजस्थानः गहलोत ने छोड़ी कुर्सी तब भी पायलट के लिए आसान नहीं होगी राह!

कांग्रेस के साथ ही पूरे देश की राजनीति का केंद्र इन दिनों राजस्थान बना हुआ है. हर किसी की नजर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट पर है (Gehlot Vs Pilot) कि अगर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने पर राजस्थान की मुख्यमंत्री की कुर्सी खाली होती है तो क्या सचिन पायलट को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिल सकती है? इस सवाल ने बड़े बड़े राजनीतिक पंडितों को पशोपेश में डाल दिया है.

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Published : Sep 22, 2022, 8:09 PM IST

problems on Sachin pilot way, Gehlot leaves CM Seat
गहलोत ने छोड़ी कुर्सी तब भी पायलट के लिए आसान नहीं होगी राह.

जयपुर.कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष की कमान किसे सौंपी जाएगी इसे लेकर फिलहाल कुछ भी पुख्ता तौर पर कहने से पार्टी बच रही है. हालांकि देश के सामने जो तस्वीर पेश हो चुकी है उसमें आशंकाओं की कोई गुंजाइश नहीं है. इस बीच राजस्थान की राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा इसका इंतजार सब कर रहे हैं. क्या गहलोत सीएम पद त्याग देंगे और सचिन पायलट ड्राइविंग सीट पर बैठेंगे (Battle between Gehlot and Sachin)? अगर ऐसा हुआ तो क्या ये पूर्व उप मुख्यमंत्री के लिए कांटों भरा ताज रहेगा? क्या एक व्यक्ति एक पद वाले फॉर्मूले का यहां कोई मतलब होगा?

कोच्ची में तय होगा राजस्थान का भविष्य: बुधवार को राहुल गांधी के साथ भारत जोड़ो यात्रा में पैदल मार्च करने वाले सचिन पायलट दिल्ली लौट चुके हैं. अब अशोक गहलोत आज कोच्ची पहुंच रहे हैं. कोच्ची में सीएम अशोक गहलोत राहुल गांधी के साथ भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होंगे. इस दौरान सबकी नजर गहलोत और राहुल गांधी की उस मुलाकात पर है जो आज रात पैदल मार्च के बाद होनी है. अगर राहुल गांधी ने राष्ट्रीय राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं बनने के अपने फैसले पर अडिग रहे तो तय है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत 26 से 28 सितंबर के बीच कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए नामांकन दाखिल करेंगे.

गहलोत का नाम लगभग फाइनल: अब लगभग फाइनल हो गया है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ही कांग्रेस के अगले राष्ट्रीय अध्यक्ष होंगे. तो ऐसे में सबसे बड़ा सवाल राजस्थान के साथ ही देश के जेहन में भी ये है कि क्या मुख्यमंत्री अशोक गहलोत राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ मुख्यमंत्री भी रह सकेंगे या फिर उन्हें राजस्थान के मुख्यमंत्री पद को छोड़ना पड़ेगा.

एक व्यक्ति एक पद फॉर्मूला और गहलोत: वैसे तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जो फार्मूला दिया है, उसके अनुसार वो अगर इलेक्शन लड़ कर राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते हैं तो ऐसे में उन पर एक पद एक व्यक्ति सिद्धांत लागू नहीं होगा, लेकिन ये एक अजीबोगरीब तर्क है जो किसी के गले नहीं उतर रहा है .ऐसे में कहा जा रहा है कि देर सबेर उन्हें राजस्थान के मुख्यमंत्री का पद छोड़ना होगा. ऐसे में हर किसी की नजर इस बात पर है कि अगर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत मुख्यमंत्री पद छोड़ते हैं तो क्या सचिन पायलट राजस्थान के अगले मुख्यमंत्री होंगे?

पायलट के लिए आसान नहीं राह: मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच कड़वाहट जग जाहिर है. हर कोई जानता है कि दोनों नेताओं के बीच बातचीत के रिश्ते भी नहीं है, और दोनों को आपस में बात करने के लिए बीच में किसी नेता की आवश्यकता होती ह . ऐसे में ये स्वभाविक है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पहले तो मुख्यमंत्री रहते हुए ही राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने का प्रयास करेंगे. अगर गहलोत को देर सवेर कांग्रेस आलाकमान और अन्य नेताओं के दबाव में मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी तो ये बिल्कुल साफ है कि वह सचिन पायलट को राजस्थान का मुख्यमंत्री बनने से रोकने का हर संभव प्रयास करेंगे.

यही कारण है कि गहलोत के मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने के बाद राजस्थान का मुख्यमंत्री कौन होगा इस पर हर किसी की नजर है, या फिर यूं कहा जाए कि क्या इस बार सचिन पायलट उस मुख्यमंत्री की कुर्सी को पाने में कामयाब होंगे जो साढ़े 3 साल पहले उनसे दूर हो गई थी. हालांकि राजस्थान में मुख्यमंत्री पद की रेस तब ही शुरू होगी जबकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का नामांकन दाखिल कर देंगे.

राहुल पर नजर:मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अगर कुर्सी छोड़ते हैं तो इस कुर्सी का सबसे स्वभाविक उम्मीदवार सचिन पायलट ही होंगे. कहा जा रहा है कि अब सचिन पायलट राहुल गांधी के साथ अपने पुराने रिश्ते फिर से कायम करने में कामयाब हो गए हैं. राहुल गांधी और सचिन पायलट के बीच रिश्ते पहले जैसे हो गए हैं. इसका पता इसी बात से लगता है कि पहले राहुल गांधी ने सचिन पायलट की तुलना खुद से करते हुए उन्हें धैर्य रखने वाला नेता बताया और अब सचिन पायलट राहुल संग भारत जोड़ो यात्रा में अग्रिम पंक्ति में दिखाई दे रहे हैं. इतना ही नहीं राजस्थान में सचिन पायलट के अलावा दूर-दूर तक ऐसा कोई नेता नहीं है जो लोकप्रियता या संगठन को चलाने में सक्षम हो और जिसका गांधी परिवार के इतना नजदीकी रिश्ता भी हो.

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पायलट की चुनौती महज गहलोत ही नहीं!:सचिन पायलट वैसे तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बाद मुख्यमंत्री पद के संभावित उम्मीदवार हैं लेकिन विरोधी भी उनके कम नहीं. सबसे बड़े तो खुद गहलोत हैं, जो उन्हें 2020 में हुए राजनैतिक उठापटक का अगुवा मानते हैं. कई मौकों पर अपने मन की बात जाहिर कर चुके हैं. दोहराते रहे हैं कि पायलट की नासमझी से उनकी कुर्सी खतरे में पड़ी.

सचिन पायलट के लिए चुनौती वह 80 विधायक भी हैं जो खुलकर उनके खिलाफ खड़े हो सकते हैं. इसका उदाहरण कुछ दिन पहले गहलोत के मंत्री अशोक चांदना दे भी चुके हैं. जिन पर गुर्जर महासभा में जूता लहराया गया तो उन्होंने सीधे सीधे सचिन पायलट को आंखे दिखाईं. सोशल प्लेटफॉर्म पर सीधी चुनौती दे डाली. कहा जा रहा है कि अब साल 2020 में हुई राजनीतिक उठापटक के समय मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ खड़े इक्का-दुक्का विधायकों को छोड़ बाकी सब विधायक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ हैं.

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80-20 का फेर: अब भले ही सचिन पायलट के पास 20 से ज्यादा विधायकों का खुला समर्थन हो, लेकिन ये बात साफ है कि जो दूरियां 2020 के बाद सचिन पायलट और राजस्थान के विधायकों के बीच आ गई थीं वो अभी भी दूर नहीं हुई हैं. आज भी राजस्थान में विधायक गहलोत और पायलट गुट में 80 और 20 के अनुपात में बंटे हुए हैं. ऐसे में विधायक पहले तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को ही राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाए रखने के लिए कांग्रेस आलाकमान के सामने दरखास्त रखेंगे. अगर ऐसा नहीं होता है तो संभव है कि सचिन पायलट के अलावा विधायक आलाकमान से किसी और चेहरे को मुख्यमंत्री बनाने की अपील करें.

नामांकन तो बहाना है!: बात उस न्योते की जो सीएम ने रात्रि भोज के बाद मंगलवार को अपने विधायकों को दिया. उन्होंने विधायकों को संबोधित कर दिल्ली आने का न्योता दिया. कहा जा रहा है कि सीएम नामांकन के बहाने कुछ और ही हित साधना चाहते थे. दरअसल वो दिल्ली में नामांकन के बहाने कांग्रेस के विधायकों की परेड कराएंगे. ध्येय होगा बगैर कहे आलाकमान को बहुत कुछ कह देना! विधायकों का ये जमावड़ा कांग्रेस आलाकमान को बिन बोले गहलोत की शक्ति का प्रदर्शन करेगा.

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पायलट क्या करें!:वैसे तो सचिन पायलट अगर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पद छोड़ते हैं तो गांधी परिवार की नजदीकियों के चलते और अपनी लोकप्रियता के कारण मुख्यमंत्री पद के स्वाभाविक दावेदार हैं ,लेकिन लोकतंत्र में विधायकों के बहुमत को ही सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. जिसके साथ विधायक होते हैं वही सत्ता की सर्वोच्च कुर्सी पर वही बैठता है. ऐसे में सचिन पायलट को राहुल गांधी ,प्रियंका गांधी और सोनिया गांधी के विश्वासपात्र तो बन चुके हैं लेकिन अब उन्हें अगले कुछ दिनों में राजस्थान के विधायकों को भी साधना होगा तभी मंजिल करीब होगी नहीं तो ये आग का दरिया होगा जिसे पार करना बेहद मुश्किल होगा.

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