भोपाल : देश इस साल गणतंत्र दिवस की 72वीं वर्षगांठ मना रहा है. 26 जनवरी, 1950 को हमारे देश का संविधान लागू हुआ था. भारत के संविधान के बारे में कहा जाता है कि यह विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है. लेकिन इस विस्तृत संविधान की झलक इसकी उद्देश्यिका में देखने को मिल जाती है. आज हम इसी उद्देश्यिका यानी प्रस्तावना के बारे में बात करेंगे. आखिर ये संविधान में शामिल कैसे हुई..? कब हुई..? इसमें समाहित शब्दों का अर्थ क्या है..?
संविधान का हिस्सा कैसे बनी प्रस्तावना ?
संविधान सभा द्वारा संविधान का निर्माण किया गया था. संविधान सभा में जवाहरलाल नेहरू ने 13 दिसंबर, 1946 को एक उद्देशिका पेश की थी. जिसमें बताया गया था कि किस प्रकार का संविधान तैयार किया जाना है. इसी उद्देशिका से जुड़ा हुआ जो प्रस्ताव था वह संविधान निर्माण के अंतिम चरण 'प्रस्तावना' के रूप में संविधान में शामिल किया गया. इसी कारण प्रस्तावना को उद्देशिका के नाम से भी जाना जाता है.
संविधान में प्रस्तावना कहां से ली गई?
भारतीय संविधान में प्रस्तावना का विचार अमेरिका के संविधान से लिया गया है. वहीं, प्रस्तावना की भाषा को ऑस्ट्रेलिया के संविधान से लिया गया है. प्रस्तावना की शुरुआत 'हम भारत के लोग' से होती है और '26 नवंबर, 1949 अंगीकृत' पर समाप्त होती है.
प्रस्तावना में संशोधन
1976 में, 42वें संविधान संशोधन अधिनियम के जरिए प्रस्तावना में संशोधन किया गया था. जिसमें तीन नए शब्द- समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता को जोड़ा गया था. अब तक प्रस्तावना में केवल एक ही बार संसोधन हुआ है.
संविधान के स्रोत
संविधान के स्रोत 'हम भारत के लोग' यानी भारत की जनता. भारत के लोग ही वो शक्ति हैं, जो संविधान को शक्ति प्रदान करती है.
स्वरूप
प्रस्तावना में जो प्रारंभिक पांच शब्द हैं...संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक, गणराज्य .आपको बता दें, ये पांच शब्द हमारे संविधान के स्वरूप को दर्शाते हैं. वहीं प्रस्तावना के अंतिम पांच शब्द इसके उद्देश्य को दर्शाते हैं.
अंतिम पांच शब्द
- न्याय (समाजिक, आर्थिक, राजनीतिक स्तर पर न्याय की बात की गई है)
- स्वतंत्रता
- समता
- व्यक्ति की गरिमा
- राष्ट्र की एकता, अखंडता
- बंधुता
प्रस्तावना में दिए गए शब्दों का मतलब
संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न
इसका मतलब है कि भारत अपने आंतरिक और बाहरी निर्णय लेने के लिए स्वंतत्र है. यानी तब से भारत पर ब्रिटिश सरकार का नियत्रंण नहीं रहा था.
समाजवादी
संविधान वास्तव में समाजवादी समानता की बात करता है. जिसका मतलब है कि भारत में रह रहे हर नागरिक को महसूस हो कि वह एक समान हैं. भारत ने 'लोकतांत्रिक समाजवाद' को अपनाया है. वह महात्मा गांधी और नेहरू के विचारों से प्रेरित है.
पंथनिरपेक्ष
पंथनिरपेक्ष से तात्पर्य है कि राज्य का अपना कोई धर्म नहीं है, जो भी धर्म होगा वह भारत की जनता का होगा. जिसमें सरकार की ओर से कोई रोक-टोक नहीं होगी.
लोकतंत्रात्मक
लोकतंत्रात्मक का अर्थ है ऐसी व्यवस्था जो जनता द्वारा जनता के शासन के लिए जानी जाती है.
गणराज्य
गणराज्य यानी रिपब्लिक. गणतंत्र का तात्पर्य है, ऐसी शासन व्यवस्था जिसका जो संवैधानिक प्रमुख होता है, वो जनता द्वारा चुना जाता है. वंशानुगत नहीं होगा.
प्रस्तावना के आखिरी शब्दों का मतलब
न्याय
समाजिक, आर्थिक, राजनीतिक स्तर पर भारत के संविधान के तहत न्याय दिया जाएगा, लेकिन धार्मिक स्तर पर न्याय नहीं दिया जाएगा. क्योंकि भारत से संविधान में पंथनिरपेक्ष की बात की गई है. जिसमें राज्य का अपना कोई धर्म नहीं है.
स्वतंत्रता
स्वतंत्रता का अर्थ है कि भारत के नागरिक को खुद का विकास करने के लिए स्वतंत्रता दी जाए ताकि उनके माध्यम से देश का विकास हो सके.
समता
समता यहां समाज से जुड़ी हुई है. जिसमें आर्थिक और समाजिक स्तर पर समानता की बात की गई है.
व्यक्ति की गरिमा
इसके तहत भारतीय जनता में गरिमा की बात की जाती है. जिसमें भारतीय जनता को गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार है.
राष्ट्र की एकता, अखंडता
भारत विविधता में एकता वाला देश है, जो भारत की विशेषता है. जिसे बनाए रखने के लिए प्रस्तावना में कहा गया है.
बंधुता
इससे तात्पर्य है कि सभी भारतीय नागरिकों में आपसी जुड़ाव की भावना पैदा होना. इन सभी बातों को प्रस्तावना के माध्यम से संविधान का उद्देश्य बताया गया है.
रिटायर्ड जज अनुराग श्रीवास्तव का बयान तो इसलिए प्रस्तावना को कहते हैं संविधान की आत्मा...
रिटायर्ड जज अनुराग श्रीवास्तव बताते हैं कि पूरे संविधान के सार को कुछ पंक्तियों में उल्लेखित कर दिया गया है. 1976 में जो 42वां संविधान संशोधन हुआ था, तब उस में कुछ संशोधन किए गए थे. अन्यथा जो प्रस्तावना हमने 26 नवंबर, 1949 को अंगीकृत की थी, वही आज तक चली आ रही है. जिसमें हम स्वयं को प्रभु राष्ट्र होना, एक गणराज्य और 42वें संशोधन से स्वयं को समाजवादी, पंथ निरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया गया है. कुल मिलाकर प्रस्तावना में संविधान का पूरा सार है. इसलिए हम कहते हैं कि प्रस्तावना संविधान की आत्मा है.
1960 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था प्रस्तावना संविधान का हिस्सा नहीं...
संविधान में प्रस्तावना को तब जोड़ा गया था, जब बाकी संविधान पहले ही लागू हो गया था. बेरूबाड़ी यूनियन के मामले (1960) में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि प्रस्तावना संविधान का हिस्सा नहीं है. हालांकि, ये स्वीकार किया गया कि यदि संविधान के किसी भी अनुच्छेद में एक शब्द अस्पष्ट है या उसके एक से अधिक अर्थ होते हैं, तो प्रस्तावना को एक मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है.
1973 में पलटा फैसला
केशवानंद भारती मामले (1973) में सुप्रीम कोर्ट ने अपने पहले के फैसले को पलट दिया और यह कहा कि प्रस्तावना संविधान का एक हिस्सा है. इसे संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत संशोधित किया जा सकता है, लेकिन इसके मूल ढांचे में परिवर्तन नहीं किया जा सकता है. यहां से ये भी स्पष्ट हो गया कि प्रस्तावना संविधान के बेसिक स्ट्रक्चर का पार्ट है. एक बार फिर, भारतीय जीवन बीमा निगम के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि प्रस्तावना संविधान का एक हिस्सा है.
इस प्रकार स्वतंत्र भारत के संविधान की प्रस्तावना खूबसूरत शब्दों की भूमिका से बनी हुई है. इसमें बुनियादी आदर्श, उद्देश्य और दार्शनिक भारत के संविधान की अवधारणा शामिल है. ये संवैधानिक प्रावधानों के लिए तर्कसंगतता या निष्पक्षता प्रदान करते हैं.