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चंपत राय के खिलाफ अयोध्या की सिविल कोर्ट में परिवाद दायर - चंपत राय के खिलाफ अयोध्या की सिविल कोर्ट में परिवाद दायर

राम मंदिर निर्माण के लिए खरीदी गई जमीन को लेकर शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य अविमुक्तेश्वरनंद सरस्वती की तरफ से चंपत राय पर परिवाद दायर किया गया है. वहीं इसको लेकर कोर्ट की तरफ से चंपत राय को नोटिस भेजा गया है. जानिए क्या है पूरा मामला.

सिविल कोर्ट में परिवाद दायर
सिविल कोर्ट में परिवाद दायर

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Published : Jul 16, 2021, 6:18 AM IST

अयोध्या: श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय पर सिविल कोर्ट में परिवाद दायर हुआ है. राम मंदिर निर्माण के लिए खरीदी गई जमीन को लेकर शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य अविमुक्तेश्वरनंद सरस्वती की तरफ से चंपत राय पर परिवाद दायर किया गया है. वहीं इसको लेकर कोर्ट की तरफ से चंपत राय को नोटिस भेजा गया है.

बता दें कि फकीरे राम मंदिर की खरीद-फरोख्त को लेकर शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य अविमुक्तेश्वरनंद सरस्वती की तरफ से सिविल कोर्ट में परिवाद दायर किया गया है. राम मंदिर में परकोटा सीधा करने के लिए फकीरे राम मंदिर को लिया गया था. ट्रस्ट ने फकीरे राम मंदिर के महंत को मंदिर बनाने के लिए दूसरी जगह पर जमीन और पैसा दिया है.

जानिए क्या है मामला

वहीं दायर परिवाद में मांग की गई है कि फकीरे राम मंदिर को तोड़ा न जाए और राग-भोग आरती संचालित की जाती रहे. साथ ही मंदिर से जुड़ी जालौन जिले की संपत्ति पर रिसीवर की नियुक्ती हो. दायर परिवाद में फकीरे राम मंदिर के महंत रघुवर शरण, सदस्य राम किशोर सिंह, मंदिर पर दावा करने वाले कृपा शंकर दास और फकीरे राम मंदिर को खरीदने वाले श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय को पार्टी बनाया गया है.

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स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की तरफ से न्यायालय में अधिवक्ता रणजीत लाल वर्मा और तरुण जीत लाल वर्मा ने अपील की. बता दें कि अधिवक्ता रंजीत लाल वर्मा और तरुणजीत लाल वर्मा ने ही राम मंदिर मामले में निर्मोही अखाड़े के पक्ष में न्यायालय में पैरवी की थी.

विस्तार से जानिए पूरा मामला

श्रीराम जन्मभूमि परिसर में भव्य राम मंदिर निर्माण कार्य इन दिनों तेज गति से चल रहा है. मंदिर निर्माण योजना को विस्तार देने के लिए श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने परिसर के आस-पास के कुछ भवनों और मंदिरों को भी खरीदा है, लेकिन अब इस मामले को लेकर विवाद खड़ा हो गया है. जमीन खरीद में शामिल ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय के खिलाफ न्यायालय में परिवाद दाखिल कर दिया गया है. बयानबाजी के बाद यह पूरा विवाद अब न्यायालय की दहलीज पर पहुंच चुका है. गुरुवार को स्थानीय राम भक्त संतोष दुबे और जगतगुरु स्वरूपानंद के शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की ओर से ट्रस्ट के महासचिव और फकीरे राम मंदिर को बेचने का सौदा करने वाले लोगों के खिलाफ न्यायालय में परिवाद दाखिल किया गया है.
'भगवान की संपत्ति को कैसे बेच सकता है कोई'
वादी के अधिवक्ता तरुणजीत वर्मा ने बताया कि सिविल जज सीनियर डिवीजन के न्यायालय में यह परिवाद दाखिल कराया गया है. हमने अपील की है कि ट्रस्ट द्वारा खरीदे गए फकीरे राम मंदिर में तोड़फोड़ न की जाए. मंदिर में पूर्व की भांति भगवान की सेवा पूजा होती रहे. साथ ही ट्रस्ट और फकीरे राम मंदिर पर अपना दावा करने वाले महंत द्वारा किए गए बैनामे को निरस्त किया जाए. मंदिर की खरीद-फरोख्त गैरकानूनी हैं. अभी तक मंदिर पर मालिकाना हक को लेकर विवाद चल रहा है. वैसे भी परंपरा है कि जिस मंदिर में भगवान विराजमान होते हैं, उसका स्वामित्व भगवान के नाम पर ही होता है. उस मंदिर का महंत या पुजारी एक मैनेजर या सेवक के रूप में होता है. इसलिए उसे कोई अधिकार नहीं है कि वह मंदिर को खरीदे या बेचे.

उन्होंने कहा कि मंदिर में जब भगवान की प्रतिमा स्थापित की जाती है, उस समय प्राण प्रतिष्ठा का आध्यात्मिक अर्थ यही है कि भगवान अब यहां से कभी कहीं नहीं जाएंगे और न उन्हें विस्थापित किया जाएगा. ऐसे में राम मंदिर निर्माण योजना के विस्तार के बहाने अयोध्या के अन्य आध्यात्मिक मंदिरों को क्षति पहुंचाना गलत है. इसी प्रकरण को लेकर राम भक्त संतोष दुबे और जगतगुरु स्वरूपानंद के शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की तरफ से न्यायालय में इस जमीन की खरीद-फरोख्त को रद्द करने और मंदिर को न तोड़े जाने की मांग की गई है.

पौराणिक अयोध्या के स्वरूप को बिगाड़ना गलत
याचिकाकर्ता संतोष दुबे ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि 'मैं स्वयं राम मंदिर आंदोलन से जुड़ा रहा हूं. सभी राम भक्तों की प्रबल इच्छा है कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण हो, लेकिन मंदिर निर्माण के नाम पर अयोध्या के पौराणिक मंदिरों को क्षति पहुंचाना और इस आध्यात्मिक नगरी के स्वरूप को बिगाड़ना कतई उचित नहीं है. फकीरे राम मंदिर सैकड़ों वर्षों से राम भक्तों की आस्था का केंद्र रहा है.

आध्यात्मिक मान्यता है कि भगवान राम ने वन गमन से पूर्व एक रात इस मंदिर में अपने राजसी वस्त्र त्याग कर एक सामान्य जीवन व्यतीत किया था. इसलिए इस मंदिर का नाम फकीरे राम मंदिर पड़ा. ऐसे आध्यात्मिक मंदिर को तोड़ना बिल्कुल गलत है. ट्रस्ट में शामिल सदस्य अपनी मनमर्जी के मुताबिक काम कर रहे हैं. इसलिए मजबूर होकर हमें न्यायालय की शरण में जाना पड़ा. हमारी मांग है कि फकीरे राम मंदिर को न तोड़ा जाए और भगवान की सेवा पूजा अनवरत जारी रहे.'

मंदिर निर्माण में परकोटे को सीधा करने के लिए तोड़ा जाना है फकीरे राम मंदिर

आपको बताते चलें कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण की कड़ी में मंदिर के परकोटे को सीधा करने के लिए श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट द्वारा फकीरे राम मंदिर को खरीदा गया है, जिसे तोड़कर मंदिर के परकोटे का निर्माण होगा. लेकिन मंदिर खरीद की इस पूरी प्रक्रिया को लेकर विवाद खड़ा हो गया है. सबसे पहला विवाद मंदिर पर स्वामित्व और उसे बेचने पर है. वहीं दूसरा विवाद मंदिर को तोड़े जाने को लेकर भी है.

फिलहाल इस पूरे मामले में याचिकाकर्ता संतोष दुबे और स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने फकीरे राम मंदिर के महंत रघुवर शरण, फकीरे राम मंदिर के ट्रस्ट के सदस्य राम किशोर सिंह, मंदिर पर दावा करने वाले कृपा शंकर दास, फकीरे राम मंदिर को खरीदने वाले श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चंपत राय को आरोपी बनाया है.

पहले सस्ती जमीन महंगे दाम पर खरीदने को लेकर हुआ विवाद
आपको बताते चलें कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण के साथ ही मंदिर निर्माण की परिधि में आने वाले मंदिरों और भावनाओं से विस्थापित लोगों को जमीन और मकान देने के लिए ट्रस्ट ने कई जमीनों का सौदा किया था. इन जमीनों के सौदे में कम कीमत पर खरीदी गई जमीनों को महंगी कीमत पर खरीदे जाने को लेकर जमकर बवाल हुआ था. कई विपक्षी पार्टियों ने इस मुद्दे को लेकर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को भी कटघरे में खड़ा किया था और ट्रस्ट पर भी गंभीर आरोप लगाए थे. अभी तक जहां यह पूरा मामला जुबानी हमले तक सीमित था. वहीं अब एक और नया विवाद कोर्ट की दहलीज पर पहुंच गया है.

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