हैदराबाद : प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना ने कहा है कि केंद्र सरकार को कुछ मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट के समक्ष जवाब देना बाकी है. उन्होंने कहा कि केंद्र को न्यायिक अवसंरचना निगम की स्थापना, कोरोना महामारी के कारण आजीविका खोने वाले वकीलों को वित्तीय मदद जैसे सवालों के जवाब देने हैं. तेलंगाना दौरे पर सीजेआई रमना (cji Ramana telangana visit) ने एक अदालत परिसर का उद्घाटन किया. इसके बाद न्यायमूर्ति रमना ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में न्यायिक अवसंरचना निगम और मोबाइल इंटरनेट सुविधाओं की स्थापना के प्रस्ताव जून-जुलाई में ही भेजे गए थे, लेकिन प्रस्तावों को अमल में नहीं लाया गया. उन्होंने उम्मीद जताई और कहा, सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में न्यायिक अवसंरचना निगम संबंधी विधेयक ला सकती है.
इसके अलावा उन्होंने कानून की पढ़ाई करने वाले युवाओं के बारे में कहा कि पाठ्यक्रम को प्रैक्टिकल बनाए जाने की जरूरत (practical courses for law students) है. देश में विधि स्नातक कानूनी समस्याओं पर केवल सैद्धांतिक तरीके से विचार करने के अभ्यस्त हैं. न्यायमूर्ति रमना ने ऐसे पाठ्यक्रम शुरू करने की आवश्यकता पर बल दिया, जो अधिक व्यावहारिक हों.
न्यायमूर्ति रमना ने कहा, 'मैं देखता हूं कि छात्र कानूनी समस्याओं पर केवल सैद्धांतिक तरीके से विचार करने के अभ्यस्त हैं. ऐसे पाठ्यक्रम शुरू करने की तत्काल आवश्यकता है, जो अधिक व्यावहारिक हों और छात्र जमीनी स्तर पर लोगों से संवाद करने के साथ ही उनके मुद्दों के बारे में अवगत हो सकें.' उन्होंने कहा, 'ऐसा लगता है कि निचली अदालत के महत्व को पूरी तरह से नजरअंदाज करते हुए केवल उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय में वकालत करने का आकर्षण है.'
पीएम और राष्ट्रपति के समक्ष उठा चुके हैं मुद्दे
रविवार को सीजेआई रमना ने कहा, मैंने केंद्र से उन वकीलों के परिवारों की आर्थिक मदद करने की बात कही है, जिनकी आजीविका कोविड-19 के कारण खो चुकी है. उन्होंने कहा कि सरकार की ओर से अब तक कोई उचित प्रतिक्रिया नहीं मिली है. उन्होंने कहा, बुनियादी ढांचे के निर्माण के संबंध में भी कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है. जब भी प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति में से किसी से मिलने का मौका मिलता है तो मैं इन मुद्दों को उठाता हूं.
गौरतलब है कि लोक सभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में, कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने हाल ही में कहा था कि भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) से अदालतों के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचे की व्यवस्था के लिए भारतीय राष्ट्रीय न्यायिक अवसंरचना प्राधिकरण की स्थापना के लिए एक प्रस्ताव प्राप्त हुआ है.
न्याय तक पहुंच को चरितार्थ करने की जरूरत
सीजेआई रमना ने कहा कि देश की न्यायिक प्रणाली के समक्ष तीन मुख्य मुद्दे हैं. उन्होंने कहा, बुनियादी ढांचे की कमी है, न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाने की जरूरत है और योग्य वकीलों को वित्तीय सहायता दिए जाने की भी जरूरत है. उन्होंने कहा कि जब हम इन समस्याओं को दूर करेंगे केवल तभी हम लोगों तक पहुंच सकेंगे. उन्होंने कहा कि ऐसा होने के बाद ही 'न्याय तक पहुंच' (access to justice) सही मायनों में चरितार्थ होगा.
उन्होंने कहा कि लाखों मामले लंबित होने का कारण न्यायाधीशों की कमी के अलावा, आवश्यक बुनियादी ढांचे का न होना भी है. सीजेआई रमना ने कहा कि आवश्यक आधारभूत संरचना प्रदान किये बिना जर्जर न्यायालय भवनों में बैठे न्यायाधीशों एवं वकीलों से न्याय की अपेक्षा करना उचित नहीं है.
मोबाइल नेटवर्क बनाने की जरूरत
बकौल रमना, सरकारों, खास कर केंद्र को इस पर ध्यान देना चाहिए. न्यायमूर्ति रमना ने कहा कि उन्होंने केंद्र और कानून मंत्री को एक पत्र लिखकर वैन में मोबाइल नेटवर्क स्थापित करने की बात कही है, ताकि ग्रामीण क्षेत्रों में वकीलों को अदालती ड्यूटी में भाग लेने की सुविधा मिल सके. उन्होंने कहा, वकील वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अदालत में उपस्थित हो सकेंगे.
बड़े कॉरपोरेट्स की मदद ले सकती है सरकार
उन्होंने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में अधिवक्ता जो नेटवर्क का खर्च नहीं उठा सकते हैं, वे अंततः अपना पेशा खो देंगे. सीजेआई रमना ने कहा कि यदि जरूरी हो, तो सरकार कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) फंड के तहत नेटवर्क स्टेशन स्थापित करने की दिशा में पहल कर बड़े कॉरपोरेट्स को भी शामिल कर सकती है. उन्होंने कहा कि सुझावों पर अब तक कार्रवाई नहीं हुई है. मैं सरकार के पहल की प्रतीक्षा कर रहा हूं.