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OIC Meet Islamabad: चीन का कश्मीर पर नरम रूख, जानें क्या है इसका कारण और रणनीति

इस्लामाबाद में आयोजित इस्लामिक सहयोग संगठन (Organisation of Islamic Cooperation) की बैठक के दौरान चीनी विदेश मंत्री वांग यी के संबोधन में कश्मीर मुद्दे पर ज्यादा बात नहीं की गई. इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं. यह भारत के लिए राहत की बात तो वहीं पाकिस्तान के लिए चिंता का कारण हो सकता है. ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरूआ की रिपोर्ट.

In Islamabad
इस्लामाबाद में आयोजित आईओसी मीट

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Published : Mar 23, 2022, 10:46 PM IST

नई दिल्ली: इस्लामाबाद में आयोजित इस्लामिक सहयोग संगठन (Organisation of Islamic Cooperation) के एक सत्र में चीनी विदेश मंत्री और राज्य सलाहकार वांग यी (Chinese Foreign Minister and State Advisor Wang Yi) के पास जटिल कश्मीर मुद्दे पर कहने के लिए बहुत कुछ नहीं था. यह पाकिस्तान की चिंता बढ़ा सकता है. साथ ही भारत के लिए यह राहत की बात है.

चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने अपने संबोधन में केवल एक बार ही कश्मीर का उल्लेख किया. हालांकि मेजबान देश के प्रधानमंत्री इमरान खान और विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने ही फिलिस्तीन के साथ कश्मीर मुद्दे को उठाने की कोशिश की. कश्मीर पर बहुत आक्रामक नहीं होते हुए, चीनी विदेश मंत्री वांग ने कहा कि कश्मीर मुद्दे पर हमने एक बार फिर कई इस्लामी दोस्तों की बातें सुनी हैं. चीन, सभी की समान आकांक्षा को साझा करता है.

OIC का 48वां सत्र
इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) एक ऐसी संस्था है जिसमें 57 मुस्लिम राष्ट्र सदस्य हैं. इसे लगभग 1.5 बिलियन मुसलमानों की सामूहिक आवाज के रूप में जाना जाता है. पाकिस्तान की राजधानी में बीते मंगलवार से दो दिवसीय कार्यक्रम के रूप में ओआईसी का 48वां सत्र आयोजित किया गया. जिसकी थीम 'पार्टनरिंग फॉर यूनिटी, जस्टिस एंड डेवलपमेंट' रखी गई थी.

पाक पीएम ने उठाया कश्मीर मुद्दा
पाक पीएम ने भाषण में कहा कि हमने फिलिस्तीन और कश्मीर दोनों को विफल कर दिया है. मुझे यह कहते हुए दुख हो रहा है कि हम कोई प्रभाव नहीं डाल पाए हैं. वे हमें गंभीरता से नहीं लेते हैं. हम बंटे हुए हैं और वे (इजरायल और भारत) इसे जानते हैं. विदेश मंत्री कुरैशी ने भी जोड़ा कि फिलिस्तीन के मुसलमान और भारतीय अवैध रूप से कब्जे वाले जम्मू और कश्मीर में दूसरों की अधीनता में हैं. पिछले सात दशकों से वे आत्मनिर्णय के अपरिहार्य अधिकार को पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

चीन के दबे स्वर के कई कारण
पाकिस्तान यात्रा के ठीक बाद चीन के मंत्री वांग के गुरुवार और शुक्रवार को नई दिल्ली की दो दिवसीय यात्रा पर जाने की संभावना है. एलएसी के पार चल रहे सैन्य टकराव की पृष्ठभूमि में चीन खराब नोट के साथ इसकी शुरुआत नहीं करना चाहेगा. खासकर तब, जब दो एशियाई दिग्गज पहले से ही सुलह के रास्ते पर चल रहे हैं. दूसरा यह कि कश्मीर पर चीन की पारंपरिक स्थिति यही है कि यह भारत-पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय मुद्दा है. इसे बहुत अधिक मुखर करने से स्थिति का अंतरराष्ट्रीयकरण हो जाएगा, जो चीनी हितों को नुकसान पहुंचा सकता है. क्योंकि मध्यस्थता के लिए कई वैकल्पिक मंच उभर सकते हैं. कश्मीर का द्विपक्षीय दायरे में रहना चीन के लिए बेहतर है.

इस्लामाबाद में आयोजित आईओसी मीट

लेनदेन की वैकल्पिक प्रणाली
तीसरा, अमेरिकी नेतृत्व वाले प्रतिबंधों और इसे खत्म करने की आवश्यकता का सामना करते हुए रूस और चीन ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार व वाणिज्यिक लेनदेन में डॉलर आधारित विनिमय मोड से हटने के प्रयास शुरू कर दिए हैं. अंतरराष्ट्रीय लेनदेन की एक सफल वैकल्पिक प्रणाली पेश करने के लिए उन्हें अधिक से अधिक देशों को शामिल करने की जरूरत है. चूंकि भारत ने यूक्रेन में रूस की सैन्य कार्रवाई की निंदा नहीं की है. इसलिए भारत को इस प्रयास के संभावित उम्मीदवार के रूप में देखा जा रहा है.

भारत-चीन एक राह पर
चौथा यह कि भारत ने पहले ही रूस से हथियारों और प्लेटफार्मों से एस-400 वायु रक्षा प्रणाली खरीदने, यहां तक ​​कि तेल खरीदने सहित व्यापार संबंधों को बनाए रखने के लिए कड़े अमेरिकी आर्थिक प्रतिबंधों के खतरे का सामना किया है. जो कि समान और सक्रिय रूप से चीन द्वारा भी किया गया है. पांचवां यह कि भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के बहुपक्षीय मंच क्वाड को अमेरिकी सत्ता परिवर्तन के बाद कमजोर किया गया है.

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यह चीन के लिए भारत के साथ संबंधों में सुधार करने और दोनों देशों द्वारा अपनी सीमाओं पर भारी तैनाती से पीछे हटने का उपयुक्त समय हो सकता है. यह ऐसा प्रयास है जो कोविड से त्रस्त दुनिया में आर्थिक रूप से बेकार साबित हुआ है. यह अलग बात है कि ओआईसी बैठक में चीन की उपस्थिति ने शिनजियांग प्रांत में उइगर मुस्लिम आबादी के खिलाफ कथित रूप से दमनकारी उपायों के बावजूद इस्लामी दुनिया में उसके बढ़ते प्रभाव को रेखांकित करता है.

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