हैदराबाद :भारत सहित पूरी दुनिया के बारिश के पैटर्न में बदलाव आ रहा है. भारत की अर्थव्यवस्था काफी हद तक कृषि पर निर्भर है, और हमारा कृषि क्षेत्र, वर्षा पर निर्भर करता है. यही वजह है कि नदियों के प्रवाह, बर्फ के क्षरण के अलावा पहाड़ों के झरनों पर इसका असर पड़ रहा है. इस कारण लोगों की आजीविका में विशेष रूप से कृषि और मछली पकड़ने, वनस्पति विकास के अलावा पशु और पक्षियों के आवास पर इसका व्यापक प्रभाव पड़ता है.
इस सिलसिले में भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने दक्षिण पश्चिम मानसून के मौसम के दौरान हाल के 30 वर्षों (1989- 2018) आंकड़ों के आधार पर राज्य और जिला स्तर पर 29 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में जून-जुलाई-अगस्त-सितंबर के दौरान मानसूनी वर्षा की परिवर्तनशीलता और परिवर्तनों का विश्लेषण किया है.
इस रिपोर्ट के मुताबिक पांच राज्यों, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, मेघालय और नागालैंड ने हाल के 30 वर्षों की अवधि (1989-2018) के दौरान दक्षिण-पश्चिम मानसून की वर्षा में काफी कमी देखी गई है. इसके अलावा अरुणाचल प्रदेश और हिमाचल प्रदेश राज्यों में भी होने वाली वार्षिक वर्षा में कमी आई है. हालांकि अन्य राज्यों में इसी अवधि के दौरान दक्षिण-पश्चिम मानसून की वर्षा में कोई विशेष परिवर्तन नहीं दिखाई दिया.
वहीं जिलेवार बारिश में 30 वर्षों की अवधि के दौरान दक्षिण-पश्चिम मानसून और वार्षिक वर्षा में भी कई महत्वपूर्ण परिवर्तन देखने को मिले हैं. इसमें भारी वर्षा के दिनों में सौराष्ट्र और कच्छ, राजस्थान के दक्षिण-पूर्वी भागों, तमिलनाडु के उत्तरी भागों, आंध्र प्रदेश के उत्तरी भागों और दक्षिण-पश्चिम ओडिशा के आसपास के क्षेत्रों, छत्तीसगढ़ के कई हिस्सों के अलावा दक्षिण पश्चिम मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, मणिपुर और मिजोरम, कोंकण और गोवा और उत्तराखंड में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई.
बारिश का बदलता स्वरूप
भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के द्वारा 1961-2010 की अवधि में उस अंतराल के लिए औसत वर्षा के साथ तुलना करके किसी भी अंतराल में वर्षा को मापा जाता है. इसे लॉन्ग पीरियड एवरेज (LPA) भी कहा जाता है. मानसून सीजन के पहले महीने (जून-सितंबर) के बाद इस साल वर्षा सामान्य श्रेणी पर आकर स्थिर है. भारत मौसम विज्ञान विभाग सामान्य से 20 फीसदी अधिक बारिश होने पर अधिक और 20 फीसदी से कम बारिश होने पर उसे कम बारिश मानता है. हालांकि बारिश का सीजन खत्म होने में सिर्फ एक महीना बचा है, ऐसे में इस साल मॉनसून के सामान्य रहने की संभावना है. वहीं वैज्ञानिकों का कहना है कि औसत उतार-चढ़ाव के आंकड़े की प्रवृत्ति के जलवायु संकट की वजह से और स्पष्ट हो जाएगी.
बताया जाता है कि मानसून के 92 दिनों में 31 अगस्त तक, 34 दिनों में वर्षा कम हुई थी, जिसमें ये कमीं कहीं 20 फीसदी तो कहीं पर 61 फीसदी तक थी. हालांकि भारत के भारत के अधिकांश राज्यों में 50 फीसदी से कम बारिश हुई है. हालांकि बारिश का सीजन खत्म होने में सिर्फ एक महीना बचा है, ऐसे में इस साल मॉनसून के सामान्य रहने की संभावना है. वहीं वैज्ञानिकों का कहना है कि औसत उतार-चढ़ाव के आंकड़े की प्रवृत्ति के जलवायु संकट की वजह से और स्पष्ट हो जाएगी.
बताया जाता है कि मानसून के 92 दिनों में 31 अगस्त तक, 34 दिनों में वर्षा कम हुई थी, जिसमें ये कमीं कहीं 20 फीसदी तो कहीं पर 61 फीसदी तक थी. हालांकि भारत के भारत के अधिकांश राज्यों में 50 फीसदी से कम बारिश हुई है. इस वजह से कई स्थानों पर सूखे की स्थिति भी हो सकती है. वहीं असम, बिहार, झारखंड पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में भारी बारिश में वृद्धि नहीं देखी गई है.