नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में कहा है कि 28 मई, 2021 की अधिसूचना जिसमें पड़ोसी देशों के गैर-मुस्लिम प्रवासियों से नागरिकता के लिए आवेदन मांगे थे, का नागरिकता संशोधन अधिनियम (Citizenship Amendment Act) 2019 से कोई लेना-देना नहीं है.
केंद्र का जवाब इंडियन यूनियन ऑफ मुस्लिम लीग की उस याचिका के जवाब में आया है जिसमें गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और पंजाब में गैर मुस्लिम प्रवासियों से आवेदन आमंत्रित करने वाली गृह मंत्रालय की अधिसूचना को चुनौती दी गई थी.
'सीएए लागू करने की कोशिश'
याचिकाकर्ता ने कहा था कि सरकार सीएए 2019 को लागू करने की कोशिश कर रही है, जबकि उसने अदालत से कहा था कि इसमें नियम नहीं बनाए गए हैं और अदालत मामले को अपने कब्जे में ले रही है.
सरकार ने ये दिया तर्क
केंद्र ने कहा है कि नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 16, केंद्र सरकार को अपनी कुछ नागरिकता-अनुदान शक्तियों को ऐसे अधिकारियों या प्राधिकरण को सौंपने की शक्ति प्रदान करती है जो निर्दिष्ट किए जा सकते हैं.
वर्ष 2016 में केंद्र सरकार ने नागरिकता अधिनियम की धारा 16 के तहत अपने अधिकार का इस्तेमाल किया और अनुदान देने के लिए अपनी शक्ति का प्रत्यायोजन किया.
धारा 16 के तहत अपने अधिकार का किया था इस्तेमाल
वर्ष 2016 में केंद्र सरकार ने नागरिकता अधिनियम की धारा 16 के तहत अपने अधिकार का इस्तेमाल किया. सरकार ने 16 जिलों के कलेक्टरों और 7 राज्यों की सरकारों के गृह सचिवों को छह निर्दिष्ट अल्पसंख्यकों से संबंधित प्रवासियों के संबंध में पंजीकरण या प्राकृतिककरण द्वारा नागरिकता प्रदान करने की अपनी शक्ति सौंप दी. दो साल की अवधि के लिए अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों के लिए ऐसा किया गया था.
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