देहरादून: खटीमा से युवा बीजेपी विधायक पुष्कर सिंह धामी को उत्तराखंड नया मुख्यमंत्री चुन लिया गया है और इसके साथ ही राज्य में सियासी संकट खत्म हो चुका है. राज्य में पूर्ण बहुमत वाली बीजेपी सरकार ने 5 वर्ष के भीतर ही उत्तराखंड को 3 मुख्यमंत्री दे दिए हैं. माना जा रहा है कि बीजेपी ने 2022 विधानसभा चुनाव के मद्देनजर क्षेत्रीय समीकरण साधने के लिए यह कदम उठाया है.
- प्रत्येक 5 वर्षों में बदली हैं राज्य में सरकारें
उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से यहां प्रत्येक 5 साल में सरकारें बदली हैं और राज्य में 2 मंडल होने के मद्देनजर राजनीतिक पार्टियों ने भी पार्टी कार्यकर्ताओं को संतुष्ट करने और चुनावी समीकरण साधने के लिए सीएम और पार्टी प्रदेश अध्यक्ष के पद में संतुलन बनाया है. प्रदेश में हमेशा देखा गया है कि मुख्यमंत्री गढ़वाल मंडल का होने पर पार्टी प्रदेश अध्यक्ष कुमाऊं का बनाया जाता है. वहीं, अगर सीएम कुमाऊं मंडल का हो तो पार्टी अध्यक्ष गढ़वाल का रहता है.
- बीजेपी का क्षेत्रीय समीकरण
उत्तराखंड में इस वक्त बीजेपी की सरकार है. बीजेपी-कांग्रेस दोनों ने उत्तराखंड में हमेशा से क्षेत्रीय और जातीय समीकरण साधने की कोशिश की है. उत्तराखंड में बीजेपी की सरकार रहते ऐसा सिर्फ 2 ही बार ऐसा हुआ है जब राज्य के दो बड़े पद (मुख्यमंत्री-पार्टी प्रदेश अध्यक्ष) एक मंडल के नेताओं के पास रहे हों. ऐसा पहली बार तब हुआ था, जब भगत सिंह कोश्यारी उत्तराखंड के मुख्यमंत्री थे, उस वक्त पूरन चंद्र शर्मा बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष थे. यह दोनों नेता कुमाऊं मंडल से थे, लेकिन यहां पर भी बीजेपी ने जातीय समीकरण साधने की कोशिश की थी. वर्तमान में उत्तराखंड में दूसरी बार 2 दो बड़े पद एक मंडल के नेताओं के पास हैं.
- कोश्यारी से धामी तक बीजेपी का जातीय और क्षेत्रीय समीकरण
2007 में भुवन चंद्र खंडूरी उत्तराखंड के सीएम बने तो तब कुमाऊं के बची सिंह रावत को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया. जातीय और क्षेत्रीय समीकरण साधने का यह सिलसिला रमेश पोखिरियाल निशंक, त्रिवेंद्र सिंह रावत, तीरथ सिंह रावत और अब पुष्कर सिंह धामी के मुख्यमंत्री बनने तक बरकरार है. निशंक के समय में कुमाऊं से बिशन सिंह चुफाल पार्टी अध्यक्ष रहे और उसके बाद क्रमशः अजय भट्ट, बंशीधर भगत और अब मदन कौशिक पार्टी अध्यक्ष बनाए गए. इसके अलावा बीजेपी ने हमेशा से इन पदों पर राजपूत-ब्राह्मण का संतुलन भी बनाए रखा है.