चंडीगढ़:पंजाब की राजनीति (Politics of Punjab) में भाजपा-अकाली दल गठबंधन (BJP and SAD Alliance) की सरगर्मियां शुरू हो चुकी हैं. हालांकि दोनों पार्टियों के किसी भी नेता की ओर से अभी कोई खुला बयान नहीं आया है लेकिन कई अकाली और भाजपा नेता इस गठबंधन की ओर इशारा करते दिखाई दे रहे हैं. इस बार पंजाब विधानसभा चुनाव अकाली दल व भाजपा द्वारा अलग-अलग लड़ा गया. अकाली दल ने बसपा के साथ गठबंधन करके सत्ता में आने का दावा किया लेकिन उनकी बुरी तरह से हार हुई. लगातार दूसरी बार सत्ता से बाहर रहने पर अकाली दल के सामने अपना खोया हुआ आधार बनाए रखना बड़ी चुनौती बन गई है.
क्या दोनों का साथ आना मजबूरी है:अभी तक पंजाब में बीजेपी का कोई खास आधार नहीं है. हालांकि केंद्र और देश के अन्य राज्यों में बीजेपी का दबदबा है लेकिन पंजाब में नहीं है. केंद्र सरकार, पंजाब में पैर जमाना चाहती है. इसलिए भाजपा के लिए जरूरी है कि वह किसी तरह पंजाब के लोगों के बीच अपनी पैठ बनाये. अगर पंजाब विधानसभा चुनाव के नतीजों की बात करें तो अकाली दल को सिर्फ 3 सीटें मिली हैं. जबकि बीजेपी को 2 सीटें ही मिलीं. अगर हम वोट-टू-विन के आंकड़ों को देखें तो नौ सीटें ऐसी थीं, जो गठबंधन होने पर जीती जा सकती थीं.
बादल परिवार की हार ने बढ़ाई चिंता:पंजाब विधानसभा चुनाव में अकाली दल की हार में बादल परिवार की हार बड़ी घटना है. पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल को भी अपने गृहनगर में बड़ी हार का सामना करना पड़ा. वहीं शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष और पंजाब के पूर्व उपमुख्यमंत्री को जलालाबाद से करारी हार झेलनी पड़ी. अमृतसर पूर्वी विधानसभा क्षेत्र से पूर्व अकाली मंत्री बिक्रम मजीठिया हार गए. अकाली दल के अन्य दिग्गज नेताओं को भी चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है. इससे यह लग रहा है कि पंजाब की राजनीति में अकालियों ने अपनी जमीन खो दी है.
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क्यों टूटा था गठबंधन:शिरोमणि अकाली दल और बीजेपी के बीच गठबंधन टूटने की वजह कृषि कानून थे. जब केंद्र सरकार द्वारा कृषि कानून पेश किए गए तो अकाली दल ने पहले तो कानूनों का समर्थन किया. लेकिन जैसे-जैसे किसान आंदोलन में बढ़े तो विधानसभा चुनावों को देखते हुए अकाली दल ने भाजपा से गठबंधन तोड़ दिया. वे कृषि कानूनों के खिलाफ खड़े हो गये और बीजेपी से गठबंधन खत्म हो गया. हरसिमरत बादल ने केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. अकाली दल के इस कदम का वोटरों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. अब जबकि लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं और दोनों तरफ हवा चल रही है कि आप की आंधी को रोकना है तो अकाली दल और भाजपा को एक साथ आना पड़ेगा.