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बीएचयू में बढ़ रहे आत्महत्या के केस, मानसिक तनाव में धैर्य खो रहे छात्र, चिकित्सक की इन बातों का रखें ध्यान - मानसिक तनाव में जान दे रहे छात्र

वाराणसी के बीएचयू में छात्र और छात्राओं में आत्महत्या (Varanasi BHU suicide case) की प्रवृत्ति बढ़ रही है. साल दर साल बढ़ रहे ये आंकड़े चौंकाने वाले हैं. चिकित्सक ऐसे हालात से बचाव के लिए कई बातों पर अमल करने पर जोर दे रहे हैं.

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 15, 2023, 6:26 PM IST

Updated : Sep 15, 2023, 7:18 PM IST

मानसिक तनाव के कारण जान दे रहे छात्र और छात्राएं.

वाराणसी :राजस्थान के कोटा, दिल्ली और यूपी में छात्र-छात्राओं में आत्महत्या के केस लगातार बढ़ रहे हैं. कोटा में आठ माह में 24 विद्यार्थियों ने सुसाइड कर लिया. NCRB के मुताबिक 2021 में 13,000 से अधिक छात्रों की मृत्यु आत्महत्या करने से हुई है. एशिया की टॉप यूनिवर्सिटी वाराणसी के काशी हिंदू विश्वविद्यालय भी इससे अछूता नहीं रह गया है. यहां बीते 11 माह में अब तक 9 से ज्यादा विद्यार्थियों ने आत्महत्या की है. चिकित्सक ऐसे हालात से बच्चों को बचाने के लिए उनसे दोस्ताना व्यवहार करने और उनके मनोभाव को समझने पर जोर दे रहे हैं.

साल दर साल आत्महत्या के मामले बढ़ते जा रहे हैं.

मुझे नहीं आ रही थी नींद :छात्रा विशाखा साहू ने बताया कि 'मुझे नींद नहीं आ रही थी, बहुत ज्यादा सोचती भी थी. कुछ समय से दिमाग परेशान चल रहा था. कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं. इसके बाद मैं मनोचिकित्सक से मिली. उन्होंने कुछ दवाइयां दीं. डॉक्टर ने बताया कि अपने आप को डेली रूटीन में थोड़ा व्यस्त रखो. ऐसा वक्त न दो कि सोचने का समय मिले. सकारात्मक सोचो, जो होगा अच्छा होगा. पढ़ाई के रिजल्ट को लेकर सबसे अधिक परेशानी रहती थी.

संवाद स्थापित करना है सबसे जरूरी : बीएचयू के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉक्टर संजय गुप्ता कहते हैं कि 'आज के यूथ का जो 15 से 29 साल का एज ग्रुप है. उसमें बहुत इनसिक्योरिटी है. हालांकि पॉसिबिलिटीज बहुत सारी हैं. हम इनके संवाद सुनें. इनको सिखाएं नहीं और न ही इनको जज करें. उन्हें सुनिए और सिर्फ प्रेम भाव दीजिए. बच्चों के साथ जज मत बनिए कि तुमने ये सही किया और ये गलत किया. बच्चे से गलती हो जाए तो उसे समझाइए. उसे गले लगाइए. उन्हें प्रेम दीजिए और कहिए कि सब ठीक हो जाएगा. यह समझ में आ जाए कि बच्चा स्ट्रेस में है तो उसे चेक कीजिए. 20 मिनट में एसएसजीक्यू स्केल पर पूरे स्ट्रेस लोडिंग की जानकारी हो जाएगी.

अभिभावकों को बच्चों से दोस्ताना व्यवहार करना होगा.

आत्महत्या करने वाले छात्रों में 70 फीसदी वृद्धि :लगातार बढ़ रही आत्महत्या की घटनाओं को लेकर एनसीआरबी की एडी एसआई 2021 की रिपोर्ट भी आई है. इसमें साल 2020 के मुकाबले आत्महत्या के मामले में बढ़ोतरी हुई है. 2021 में 13,000 से अधिक छात्रों की मृत्यु हुई है. यानी हर दिन औसतन 35 से अधिक विद्यार्थियों की जान गई है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2021 में 13,089 छात्रों की आत्महत्या से मौत हो गई, जबकि साल 2011 में दर्ज हुए छात्रों की आत्महत्या के मामले थे 7,696. साल 2011 से 2021 के बीच भारत में आत्महत्या करने वाले छात्रों की संख्या में 70 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

मनोचिकित्सक से लोग सलाह लेने के लिए पहुंच रहे हैं.

युवा पीढ़ी का मानसिक रूप से स्वस्थ होना जरूरी :मनोचिकित्सक ने बताया कि अगर बच्चे का स्ट्रेस टेस्ट होता है तो यह भी पता लग जाएगा कि बच्चे को किस लेवल पर स्ट्रेस है. क्या परिवार के लेवल पर स्ट्रेस है, क्या उसके व्यक्तिगत स्ट्रेस हैं, या कोई पढ़ाई से संबंधित स्ट्रेस है. कहीं पर बच्चा बुली हो रहा है या किसी बात का उस पर प्रेशर दिया जा रहा है. उस स्ट्रेस को समझना पड़ेगा. प्रो गुप्ता का ये भी कहना है मनोचिकित्सक सलाहकार भी बनेगा और गुरु भी बनेगा. आज यंग एज ग्रुप के बच्चों को मदद चाहिए. वो मदद ली जाए. अगर यंग एज ग्रुप मानसिक रूप से हेल्दी होगा तो उसकी प्रोडक्टिवी बढ़ेगी. अगर बच्चे में स्ट्रेस की स्थिति आती है तो सिर्फ संवाद किए जाने की जरूरत है.

बीएचयू में भी आत्महत्या के मामले बढ़े हैं.
भारत में छात्रों की आत्महत्या के मामले सबसे ज्यादा :NCRB के आंकड़े बताते हैं कि साल 2011 के बाद से भारत में छात्रों द्वारा आत्महत्याओं की संख्या आम तौर पर हर साल बढ़ी है. भारत के कुल आत्महत्या के मामलों में सबसे ज्यादा मामले छात्रों की आत्महत्या के हैं. भारत में छात्रों की आत्महत्या का आंकड़ा साल 2021 में कुल आत्महत्याओं का 8 फीसदी था. इन मामलों में 2011 के मुकाबले 2.3 फीसदी अंकों की वृद्धि देखी गई है. 2021 में 1,673 मामलों में परीक्षा में विफलता को आत्महत्या का कारण बताया गया. सिर्फ राजस्थाना के कोटा शहर में ही साल 2019 में 8 छात्रों ने आत्महत्या की थी. वहीं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में बीते एक साल में 9 विद्यार्थियों ने आत्महत्या की है, अभी बीते लगभग 10 दिन पहले एक शोध छात्रा ने हाथ काटकर आत्महत्या का प्रयास किए था.

इन तरीकों से समझें बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य :BHU के प्रो. संजय गुप्ता कहते हैं कि बच्चों में स्ट्रेस है तो लोग उन्हें समझें. परिवार और मित्र समझें. स्ट्रेस में अगर कोई है तो उसे कैसे समझेंगे. हमको देखना होगा कि वह जल्दी चिड़चिड़ा हो जा रहा है, नींद में उसको दिक्कतें आ रहीं हैं, उसके खान-पान में कमी हो रही है या फिर ज्यादा खाने लगा है, पेट में गैस बन रही है, लोगों से अलग-थलग रहने लगा है. ये चार-पांच चीजें हैं जो संकेत देती हैं कि वह बच्चा टेंशन में है. वह टेंशन में जब है तो उसके साथ सबसे पहले संवाद शुरू करें. संवाद के बाद मेंटल हेल्थ काउंसिलिंग के प्रोसेस में उसको लेकर आएं. मेंटर हेल्थ साइकोथेरेपी है कि जिस चीज में कमी है उसी को बढ़ाना होगा.

अगर बच्चों में दिखे ऐसे लक्षण तो अभिभावक हो जाएं सावधान :दो महीने से अधिक समय से चीजों में इंटरेस्ट कम हो रहा है, कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा है जो चीजें पहले बहुत अच्छी लगती थी, घूमना-फिरना, दोस्तों से बातचीत करने में कमी आ गई है. बंद कमरे में बैठे रहना और किसी से बात करने में चिड़चिड़ा महसूस करना, खाना खाने में मन न लगना या अधिक खाना खाते रहना, शरीर में ताकत का पता न लगना और कमजोरी महसूस होना, चीजों को लेकर हमेशा नकारात्मक विचार आते रहना.

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Last Updated : Sep 15, 2023, 7:18 PM IST

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