अंबाला: 'तेरा वैभव अमर रहे मां, हम दिन चार रहे ना रहे मां' ये हमारे लिए सिर्फ एक नारा हो सकता है, लेकिन ये सच्चाई है उन वीर सपूतों की जिन्होंने मां भारती की आन, बान और शान के लिए अपने प्राणों का बलिदान हंसते-हंसते कर दिया. कारगिल विजय दिवस के मौके पर ईटीवी भारत ऐसे शूरवीरों की बहादुरी की गाथा आपको सुना रहा है. जिन्होंने 26 जुलाई 1999 को पाकिस्तान के नापाक इरादों को चकनाचूर कर उन्हें वापस खदेड़ दिया था.
आज हम आपको कारगिल युद्ध में शहीद हुए सबसे छोटी उम्र के सिपाही मंजीत सिंह के बारे में बता रहे हैं. जिन्होंने महज साढ़े 18 साल की उम्र में ना सिर्फ सीमा पर मोर्चा संभाला बल्कि दुश्मनों के दांत भी खट्टे किए.शहीद मंजीत सिंह अंबाला की मुलाना विधानसभा के कांसा पुर गांव के रहने वाले थे, जो 8 सिख रेजीमेंट में भर्ती हुए थे. आज भी जब शहीद मंजीत सिंह का जिक्र होता है तो उनकीं मां सुरजीत कौर की आंखों से आंसू बहने लगते हैं.
सुरजीत कौर बताती हैं कि मेरा बेटा हमारी गरीबी दूर करने सेना में भर्ती हुआ था. आज हमारे पास सबकुछ है, लेकिन इस पत्थर के मकान में रहने वाला कोई नहीं है. शहीद मंजीत सिंह की मां ने बताया कि उनका बेटा हमेशा यही कहता था कि अपना पक्का मकान बनाना है.
10वीं के बाद सेना में भर्ती हुए थे शहीद मंजीत सिंह
सुरजीत कौर ने बताया कि शहीद मंजीत सिंह हालांकि 10वीं पास थे और 11वीं में दाखिला लेने जा ही रहे थे कि इस दौरान उनका भर्ती का लेटर आ गया, जिसे देख वो बेहद खुश हुए थे. उसकी टीचर ने भी उन्हें 11वीं की परीक्षा देने के लिए कहा था, लेकिन वो फिर भी सेना में भर्ती होने चले गए.
शहीद मंजीत कौर की मां ने बताया कि रंगरूटी की छुट्टी काटने के बाद मेरा बच्चा घर आया था. उसके बाद जब उसके पिता का एक्सीडेंट हुआ तब भी आया था, लेकिन उसके बाद वो नहीं उसका सामान और....(ये कहकर सुरजीत कौर रोने लगीं)
तीन भाइयों में दूसरे नंबर के बेटे थे मंजीत