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...यही वजह थी कि गांधी आश्रम व्यवस्था पर जोर देते थे

इस साल महात्मा गांधी की 150वीं जयन्ती मनाई जा रही है. इस अवसर पर ईटीवी भारत दो अक्टूबर तक हर दिन उनके जीवन से जुड़े अलग-अलग पहलुओं पर चर्चा कर रहा है. हम हर दिन एक विशेषज्ञ से उनकी राय शामिल कर रहे हैं. साथ ही प्रतिदिन उनके जीवन से जुड़े रोचक तथ्यों की प्रस्तुति दे रहे हैं. प्रस्तुत है आज पांचवीं कड़ी.

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Published : Aug 20, 2019, 7:01 AM IST

Updated : Sep 27, 2019, 2:52 PM IST

महात्मा गांधी

बात 1925 की है. गांधी ने अचानक ही अपने आश्रम में एक सप्ताह के अनशन की घोषणा कर दी. आश्रम में रहने वाले सभी युवाओं के बीच यह चर्चा का विषय बन गया. गांधी ने कहा कि आपलोग मेरी मृत्यु का कारण ना बनें. उनके ऐसा कहते ही आश्रम में रहने वाले युवाओं ने अनैतिक कार्य छोड़ दिए. उन्होंने गांधी से माफी मांगी. ऐसी थी गांधी की नैतिक शक्ति.

गांधी ने द. अफ्रीका और भारत में कुल चार आश्रम बनाए थे. द. अफ्रीका में फोनिक्स और डरबन तथा साबरमती और वर्धा सेवाग्राम भारत में. यह आश्रम से ज्यादा सामाजिक प्रयोगशाला की तरह था.

बहुत सारे लोग गांधी को सिर्फ स्वतंत्रता सेनानी के तौर पर जानते हैं. वे उन्हें राष्ट्रपिता कहते हैं. लेकिन वास्तव में वह ईश्वरदूत जैसे थे, जिन्होंने समाज और जीवन में वैकल्पिक शैली के साथ-साथ अलग सिद्धान्तों को प्रतिपादित किया. उन्होंने इसे लागू भी किया. हमने इतिहास में बहुत सारे ऐसे लोगों को देखा है, जो बड़ी-बड़ी बातें करते थे, लेकिन व्यवहार में उसे उतारते नहीं थे. पर, गांधी एक ऐसे व्यक्ति थे, जो जितना कहते थे, उससे भी अधिक करते थे. सबसे बड़ी बात ये है कि गांधी साध्य के साथ-साथ साधन की पवित्रता पर भी उतना ही जोर देते थे. यही वजह थी कि उनका आश्रम एक सामाजिक प्रयोग शाला जैसा था और वहां से उच्च आदर्श वाले व्यक्ति निकलते थे.

आश्रम की व्यवस्था पहले भी थी, लेकिन तब वहां लोग मोक्ष की प्राप्ति के लिए जाया करते थे. गांधी उन ऋषियों से हटकर थे. उनके लिए आश्रम का अर्थ था...नए समाज का निर्माण करना, नई पीढ़ी को विकसित करना जो अहिंसा के मार्ग पर चलकर संघर्ष कर सके. आश्रम में हर व्यक्ति समान था. जाति, धर्म, लिंग, देश, भाषा किसी भी स्तर पर कोई भेदभाव नहीं था. वहां रहने वाला हर व्यक्ति हर काम करता था, ट्वॉइलेट सफाई से लेकर खाना बनाने तक का कार्य. बल्कि उन्होंने आश्रम वासियों के लिए 11 सिद्धान्तों का पालन अनिवार्य कर दिया था.

ये सिद्धान्त हैं...सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अस्तेय, अपरिग्रह, शारीरिक श्रम, अस्वद, अभय, सर्वधर्म समभाव, स्वदेशी और अस्पृश्यतानिर्वाण.

आप कह सकते हैं धरना, हड़ताल, नागरिक अवज्ञा, टैक्स जमा नहीं करने वगैरह-वगैरह से हमको आजादी मिल जाती. लेकिन इसके लिए आश्रम की जिंदगी क्यों जरूरी है. क्यों कसमें खाएं और सिद्धान्तों का पालन करें. ऐसा इसलिए क्योंकि गांधी सिर्फ आजादी नहीं चाहते थे, बल्कि वह चाहते थे कि हर व्यक्ति आजादी से जी सके. वह अपने तरीके से चीजों को तय कर सके. जिंदगी में उसका भी उद्देश्य होना चाहिए और वह प्रकृति के विरुद्ध ना हो. बल्कि उससे सामंजस्य बिठाकर चले.

जातिगत भावना, धार्मिक घृणा, खुदगर्जी, भौतिक भोगविलास के प्रति लालच, हिंसक प्रवृत्ति, लिंग भेद..ये सभी कुरीतियां तब भी थीं और आज भी हैं. इसलिए गांधी ने लोगों में नैतिक सुधार पर जोर दिया. वह एक उच्च आदर्श वाले व्यक्ति के रूप में तब्दील कर सके. गांधी का आश्रम इस लिहाज से सफल प्रयोगशाला था. वे लोग अपना-अपना प्रयोग कर सकते थे. असहयोग, अहिंसा एक व्यक्ति के अंदर बड़ा परिवर्तन लाता है. वे प्रयोगों के लिए सत्याग्रही को तैयार करते हैं और सच्चाई के साथ प्रयोग करने के लिए तैयार करते हैं. वे नैतिक और वित्तीय मदद देते हैं. अहम बात ये है कि सभी आंदोलनकारी रचनात्मक कार्यों में भागीदारी करने के लिए तैयार रहते हैं.

भारती की जाति व्यवस्था ने हर सामाजिक स्तर पर सोपाननुमा समाज बना दिया है. इसने पीढ़ियों से दलितों को अछूत बना दिया. अछूत व्यवस्था को खत्म करना गांधी के रचनात्मक कार्य का प्रमुख उद्देश्य था. जब आश्रम में एक दलित दंपती का प्रवेश हुआ, शुरू में उनके खिलाफ आक्रोश था. यहां तक कि कस्तूरबा भी खुश नहीं थीं. नाई ने उनके बाल काटने से मना कर दिया. कस्तूरबा ने जो पैसे दिए थे, उसे रोक लिया गया. इसके बावजूद गांधी झुके नहीं. उन दिनों दलितों को हरिजन कहा जाता था. यह एक क्रांतिकारी कदम था.

शासक वर्ग हमेशा दो अलग-अलग वर्गों के बीच परस्पर दुश्मनी को बढ़ावा देता है. ब्रिटिश ने यही किया था. इस तरह की सोच के खिलाफ गांधी ने सभी धर्मों के साथ सह अस्तित्व को बढ़ावा दिया. उसे प्रचारित किया. हर दिन सर्वधर्म प्रार्थना का आयोजन किया करते थे. उसके बाद गांधी हर दिन संवाद करते थे. टॉल्सटाय फार्म हो या साबरमती आश्रम, वहां रहने वाले हर व्यक्ति को भौतिक कार्य करना होता था.

ये लोग आश्रम में सब्जी और फल उगाते थे. सूत उद्योग से जुड़ा काम करते थे. जूता बनाना, लकड़ी का काम करना, गुड़ बनाते ते. वहां आने वाले बौद्धिक व्यक्ति भी भौतिक कार्य किया करते थे. सिर्फ इसलिए कि हर व्यक्ति बराबर है. हर व्यक्ति को काम के बराबर पैसे दिए जाते थे. गांधी जी कहा करते थे... चरखा चलाकर हर व्यक्ति वित्तीय स्वतंत्रता हासिल कर सकता है. उन्होंने प्रतियोगिता की घोषणा की और सामान्य चरखा की डिजाइनिंग करने वालों को एक लाख रुपये के इनाम की घोषणा की थी.

द. अफ्रीका में गांधी आश्रम में रहने वाले एक युवा को लंदन में पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप हासिल हुई थी. गांधी के बड़े लड़के हरिलाल लंदन में पढ़ाई करना चाहते थे. लेकिन गांधी ने यह अवसर आश्रम में रहने वाले को प्रदान किया था. इस वजह से हरिलाल अपने पिता से लंबे समय तक असंतोष पाले रहे. गांधीजी का सिद्धान्त भाई भतीजावाद के खिलाफ था. उन्होंने आजीवन इस सिद्धान्त का पालन किया.

अफ्रीका और भारत में सत्याग्रह चलाने में गांधीजी के आश्रम ने बड़ी भूमिका निभाई थी. उन्होंने आंदोलनकारियों को प्रेरित किया और हर संभव मदद दिया. आश्रम में रहने वाले हर उत्सव मनाते थे. गांधी से प्रेरणा लेकर बहुत सारे मुस्लिम भी सत्याग्रही बने. खान अब्दुल गफ्फार खान उनमें से एक थे. उन्हें सीमांतर गांधी के नाम से भी जाना जाता था.

गांधी बाल विवाह के खिलाफ थे. पर्दा धारन करने वाली महिलाओं को भी गांधी ने बड़ी संख्या में राष्ट्रीय आंदोलन का हिस्सा बनने के लिए प्रेरित किया. उन्हें मातृभाषा के लिए चलाए जा रहे आंदोलन का हिस्सा बनाया. उन्होंने नई शिक्षा नीति को लागू करने पर बल दिया, जिसमें व्यक्तित्व निर्माण और मातृभाषा के विकास पर मुख्य जोर दिया जाना था. वह आश्रम में सह शिक्षा को बढ़ावा दिया.

ब्रह्मचर्य और आधुनिकता के सिद्धान्तों को लेकर कई लोगों ने गांधी को उन्मादी या हठी करार दिया. पर यह सच नहीं है. उन्होंने तो अपने आश्रम में कुछ शिक्षक परिवारों को पढ़ाने के लिए आमंत्रित किया. उन्हें ब्रह्मचर्य पालन करने को नहीं कहा गया. इसी प्रकार से बीमार जानवरों को मृत्यु देने पर भी सहमति दी थी. यह अपने आप में क्रांतिकारी कदम था. वह ऐसे काम पर जोर देते थे, जिसमें भौतिक कार्य शामिल हो, बजाए इसके कि मानव मशीन का गुलाम हो जाए. उन्होंने सहभागिता वित्तीय सामाजिक व्यवस्था का स्वागत किया. पूंजीवादी शोषण नीतियों का विरोध किया.

आश्रम को वह जनता की संपत्ति मानते थे. वहां कोई भी व्यक्ति जा सकता था. वह रह सकता था. ब्रिटिश सैन्य अधिकारी की बेटी मैडेलीन स्लेड वहां आई, और आगे चलकर वह मीरा बेन के नाम से मशहूर हुई. आश्रम में साझा रसोई की व्यवस्था थी. सबको एक जैसा भोजन मिलता था. आश्रम में रहने वालों की कोई निजी संपत्ति नहीं थी. वह अलग-अलग जातियों के बीच शादी के पक्षधर थे. वह सिर्फ ऐसी ही शादी में जाते थे. उन्होंने सात पापों का जिक्र किया. सिद्धान्तविहीन राजनीति, उद्योग के बिना धन, विवेक के बिना सुख, चरित्र के बिना ज्ञान, नैतिक मूल्यों के बिना व्यापार, मानवता के बिना वैज्ञानिक ज्ञान, बलिदान के बिना पूजा. उसने खुद को किसी भी पद से अलग कर दिया. आजीवन त्याग की जिंदगी जी.

आज के समाज में हर स्तर पर हम पाते हैं... असीम स्वार्थ, चौतरफा हिंसा, प्रचंड उपयोगितावाद, मनुष्यों के बीच अत्यधिक प्रतिस्पर्धा, पद, धन के प्रति लालच, समाज में कमजोर और लड़कियों पर अत्याचार सर्वव्यापी है.

आज के आधुनिक स्वार्थ भरे समाज में हमारे बीच अब भी गांधी जिंदा हैं..एक सामाजिक सुधार की प्रतिमूर्ति के तौर पर. सादगी, अहिंसा, बिना शोषण के सेवा, देश के प्रति समर्पण, त्याग की भावना और मानवता के प्रति उच्च मूल्य. उनके द्वारा दिखाए गए आश्रम की जिंदगी हमारे लिए एक आदर्श जैसा है.
(लेखक- वरिष्ठ पत्रकार भास्कर)

आलेख में लिखे विचार लेखक के निजी हैं. इससे ईटीवी भारत का कोई संबंध नहीं है.

Last Updated : Sep 27, 2019, 2:52 PM IST

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