हैदराबाद :बिहार में विधानसभा चुनाव का पहला चरण समाप्त हो गया. 243 विधानसभा सीटों में से 71 सीटों पर जनता का फैसला ईवीएम में कैद हो चुका है. मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुनील अरोड़ा ने बताया कि पहले चरण के चुनाव में शाम 6 बजे तक 53.46 फीसदी मतदान हुआ है. यह आंकड़ा कुल मिलाकर 2010 और 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव के आसपास ही है. इन आंकड़ों के आधार पर स्पष्ट रूप से तो कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन एक बात तय है कि एंटी इनकमबेंसी बिहार के पहले चरण में नहीं है.
2010 वाली ही है स्थिति
2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में 52 फीसदी मतदान हुआ था. अगर बात करें पहले चरण के आंकड़ों की तो यह 54 फीसदी था. 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में सत्ता में रहते हुए नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड और भाजपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था और जीत दर्ज की थी. लालू यादव की पार्टी को पराजय का सामना करना पड़ा था. 2010 के आंकड़ों के नजरिए से देखें तो इस बार भी पहले चरण में मतदान के आंकड़े लगभग बराबर हैं.
गठबंधन बदला, आंकड़े नहीं
2015 में नीतीश कुमार भाजपा से अलग हो चुके थे और लालू यादव के साथ मिलकर चुनाव में उतरे. इस बार भी नीतीश कुमार सत्ता में थे और भाजपा विपक्ष में. 2015 के पहले चरण में 54.94 फीसदी मतदान हुआ था. 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव 56.8 फीसदी मतदान हुआ था. इसमें भी नीतीश कुमार जीते थे. लालू यादव की पार्टी नीतीश कुमार के आने के बाद सबसे बड़ी पार्टी विधानसभा में बन गई. वहीं भाजपा और उसकी सहयोगी लोजपा को हार का सामना करना पड़ा. 2015 के आंकड़ों के नजरिए से भी देखें तो इस बार भी पहले चरण के मतदान के आंकड़ों में कोई खास अंतर नहीं है.
नीतीश कुमार के प्रति नाराजगी नहीं
2010 और 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव के आंकड़ों को देखने से लगता है कि नीतीश कुमार के प्रति नाराजगी की जो बात कही या फैलाई जा रही थी, वह शायद सही साबित नहीं हुई. अगर लोग नीतीश कुमार से नाराज होते तो जाहिर तौर पर मतदान प्रतिशत में कम से कम पांच प्रतिशत का अंतर होना चाहिए था. पांच प्रतिशत इसलिए की अगर लोग नाराज होते तो या तो ज्यादा संख्या में वोट डालने निकलते या फिर मतदान से दूरी बना लेते.
मतदाता इधर से उधर गया या नहीं?
सभी आंकड़ों पर गौर करें तो साफ हो जाता है कि अगर बिहार का मतदाता इधर से उधर नहीं गया है तो नीतीश कुमार की वापसी हो सकती है. बिहार की राजनीतिक और सामाजिक पृष्ठभूमि को याद रखा जाए तो यह मानना बहुत मुश्किल है कि भाजपा का वोटर राजद या कांग्रेस को वोट करेगा. ऐसे ही नीतीश कुमार के वोटर भी राजद या कांग्रेस को वोट नहीं करेंगे. राजद या कांग्रेस के वोटर भी बंधे बंधाए हैं. अगर मतदान का आंकड़ा इसी तरह अगले दो चरणों में जारी रहता है तो किसी बदलाव का दावा दूर की कौड़ी लगती है. हालांकि, जनता के मूड को लेकर कोई दावा करना बेमानी ही है.