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अमेरिकी सीनेट ने तिब्बत को लेकर पेश किया ऐतिहासिक बिल, जानें भारत पर क्या होगा असर

अमेरिकी सीनेट द्वारा सोमवार को एक बिल पारित किया गया है, जो तिब्बतियों के मानवाधिकारों को बढ़ावा देने, उनकी विशिष्ट ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई पहचान को बढ़ावा देने और पर्यावरण और जल संसाधनों को संरक्षित करने के लिए गतिविधियों को बढ़ावा देना का समर्थन करता है. पढ़िए वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट.

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Published : Dec 22, 2020, 9:38 PM IST

Updated : Dec 22, 2020, 9:44 PM IST

नई दिल्ली : अमेरिकी निर्वासित सरकार द्वारा अमेरिकी सीनेट से सोमवार रात सर्वसम्मति से तिब्बती नीति और सहायता अधिनियम (TPSA) 2020 को पारित कर दिया, जो मई से सीनेट की विदेश संबंध समिति में अटका हुआ था. हालांकि, इसे पहले ही प्रतिनिधि सभा द्वारा पारित कर दिया गया है. इसे लागू करने के लिए जो बाइडेन की अनुमति की प्रतीक्षा रहेगी.

विधेयक को निवर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की विरासत को बनाए रखने के प्रयास के रूप में देखा जा सकता है, जिसका उद्देश्य रणनीति रूप से चीन पर अंकुश लगाना और त्संगपो नदी के तटीय निवासियों के अधिकारों की रक्षा करना है.

वर्तमान बिल उत्तराधिकार के मुद्दे पर निर्णय लेने की लिए दलाई लामा और तिब्बती लोगों को अहमियत देता है.

भारतीय दृष्टिकोण से इसका क्या महत्व है, तिब्बती पठार से बहने वाले नदी के पानी के संबंध में अधिनियमन क्या कहता है?

बिल में इस बात का प्रावधान है कि सभी तटवर्तीय राष्ट्रों के बीच सहकारी समझौतों को सुविधाजनक बनाने के लिए, अमेरिकी विदेश मंत्री को जल सुरक्षा पर एक क्षेत्रीय ढांचे को प्रोत्साहित करना होगा, ताकि तिब्बती पठार पर उत्पन्न होने वाले पानी की गहनता और विचलन पर पारदर्शिता, सूचना के आदान-प्रदान, प्रदूषण विनियमन और व्यवस्था को बढ़ावा मिल सके.

चीन द्वारा यारलुंग त्संगपो नदी पर मेगा बांध बनाने की रिपोर्ट सामने आने के बाद इस बिल को विशेष रूप से भारतीय स्थिति के साथ जोड़ दिया गया है. उल्लेखनीय है कि बांग्लादेश में पद्मा में बंगाल की खाड़ी में बहने से पहले त्सांगपो अरुणाचल प्रदेश में सियांग और असम में ब्रह्मपुत्र में प्रवेश करती है.

दिलचस्प बात यह है कि इससे पहले उसी दिन चीन ने 'चीन के नए युग में ऊर्जा' नामक एक श्वेत पत्र निकाला, जहां उसने दक्षिण-पश्चिम में अपनी प्रमुख नदियों पर विशाल जल विद्युत बेस बांध नेटवर्क के निर्माण की बात स्वीकार की.

यारलुंग-त्संगपो या तिब्बत का नाम लिए बिना श्वेत पत्र में कहा गया था कि दक्षिण-पश्चिम में प्रमुख नदियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए चीन बड़े जल विद्युत अड्डों का निर्माण कर रहा है और बेसिन क्षेत्रों में छोटे और मध्यम आकार के पनबिजली स्टेशनों के निर्माण को नियंत्रित कर रहा है.

निचले तटीय क्षेत्रों पर त्संगपो पर डैम बनाने के नुकसान होने के नकारात्मक प्रभावों के बीच यह घटनाक्रम सामने आया है. नदी पर बांध बनने से भारत और बांग्लादेश विशेष रूप से असम और अरुणाचल प्रदेश में निचले इलाकों में नुकसान पहुंचने के मौके बढ़ जाएंगे.

ढ़ें - बिजली संयंत्रों को बौना बना देगी चीन की त्संग्पो-ब्रह्मपुत्र बांध परियोजना

ईटीवी भारत ने पहले बताया था कि त्संगपो नदी के पानी को लगभग 3,000 मीटर की ऊंचाई पर रोका जाना है, जहां सुरंगें और फिर 850 मीटर (मोटूओ) और 560 मीटर (दादुओ या दादुक्विया में) में टरबाइन मौजूद हैं.

यहां मेटोक बांध में बिजली उत्पादन क्षमता 38,000 मेगावाट है, वहीं दादुकिया बांध में 43,800 मेगावाट उत्पादन क्षमता होने की संभावना है. वहीं दूसरी ओर दुनिया का सबसे बड़ा थ्री गोरजेस बांध जहां से चीन 18,600 मेगावाट का उत्पादन करता है.

चीन के बांध बनाने के एकतरफा फैसले ने जहां तक उसके दक्षिण-पश्चिम में नदियों को नुकसान पहुंचा सकता है. हालांकि, चीन के इस फैसले को लेकर अमेरिका कोई दबाव बनाए इसकी संभावना नहीं के बराबर है.

दलाई लामा और तिब्बती लोगों पर विशाल शक्तियों की मांग करने के अलावा, बिल तिब्बतियों के मानवाधिकारों को बढ़ावा देने, उनकी विशिष्ट ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई पहचान को बढ़ावा देने और पर्यावरण और जल संसाधनों को संरक्षित करने के लिए गतिविधियों को बढ़ावा देने की बात करता है.

वास्तव में यह बिल अमेरिका की मंशा के मुकाबले कुछ और प्रतीत होता है.

Last Updated : Dec 22, 2020, 9:44 PM IST

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