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भाषाई विविधता की मिसाल बापू : हरिजन सेवक का उर्दू में भी हुआ प्रकाशन

उर्दू भाषा के प्रति गांधीजी के स्नेह के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं. अधिकांश लोग इस तथ्य से अनभिज्ञ हैं कि उर्दू साप्ताहिक गांधीजी के चार प्रकाशनों में से एक था. यह समाचार पत्र गुजरात के अहमदाबाद से प्रकाशित होते थे.

Mahatma Gandhi
महात्मा गांधी

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Published : Oct 2, 2020, 8:24 PM IST

अहमदाबाद : राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को हमेशा उर्दू भाषा पसंद थी और वह इस भाषा के बड़े समर्थक भी थे. गांधीजी ने 1946 में हरिजन सेवक का एक साप्ताहिक उर्दू संस्करण शुरू किया था, ताकि देश के मुस्लिम समुदाय को जोड़ा जा सके.

गांधी जी के चार प्रकाशन

दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद गांधीजी अपने देश और लोगों की दयनीय स्थिति को देखकर निराश हो गए थे. उन्होंने प्रकाशन के माध्यम से अपने राष्ट्र के दमन के खिलाफ आवाज उठाने का फैसला किया. उन्होंने हरिजन सेवक का अंग्रेजी, हिंदी और गुजराती भाषाओं में प्रकाशन शुरू किया. इन प्रकाशनों को शुरू करने के कुछ समय बाद उन्होंने अखबार का उर्दू संस्करण भी शुरू किया. उर्दू प्रकाशन का रिकॉर्ड अभी भी अहमदाबाद के नवजीवन प्रेस में उपलब्ध है, जहां यह समाचार पत्र छपते और प्रकाशित होते थे.

हरिजन सेवक

उर्दू भाषा की सेवा के बारे में बहुत कम लिखा गया
उर्दू हरिजन सेवक को लोग उत्साह के साथ खरीदते थे. उर्दू पत्रकारिता के बारे में एक साहित्यिक विद्वान गुलाम मोहम्मद अंसारी ने उल्लेख किया है कि गांधीजी को उर्दू भाषा से बहुत प्रेम था. उन्होंने अपने लेख में लिखा कि महात्मा गांधी के जीवन और गतिविधियों के बारे में कई किताबें लिखी गई हैं, लेकिन दुर्भाग्य से उर्दू भाषा में उनकी सेवाओं के बारे में बहुत कम लिखा गया है.

हरिजन सेवक

ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ अपनी लड़ाई के दौरान गांधीजी ने अहमदनबाद से हरिजन सेवक के प्रकाशन का उर्दू संस्करण भी शुरू किया. गांधीजी की हत्या के बाद वित्तीय संकट के कारण अखबार को बंद कर दिया गया था.

हरिजन सेवक उर्दू सहित चार भाषाओं में प्रकाशित होता था
हरिजन सेवक उर्दू सहित चार भाषाओं में प्रकाशित होता था. गांधीजी उर्दू भाषा से इस हद तक परिचित थे कि वह उर्दू में भी लिखते थे. उर्दू भाषा के प्रति उनके प्रेम का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह उर्दू भाषा में पत्र लिखते थे. उनके उर्दू हस्ताक्षर के साथ उनके पत्र भी उपलब्ध हैं, जिससे पता चलता है कि उन्होंने भाषा को स्वीकार किया था. स्पष्ट रूप से, गांधीजी के प्रयासों और सेवाओं को उर्दू भाषा के बारे में सामने लाने के लिए बहुत काम करने की आवश्यकता है.

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