पटना: नहाय-खाय के साथ शुरू होने वाला छठ पर्व रविवार सुबह समाप्त हो जाएगा. आज शाम श्रद्धालुओं ने डूबते हुए सूरज को अर्घ्य दिया. इसमें वे लोग बांस की टोकरी में फल, फूल, ठेकुआ, चावल के लड्डू आदि से बना हुआ प्रसाद किसी नदी, तलाब या घर में बनाए गए पोखरे पर ले जाते हैं. इस दौरान व्रती अपने परिवार के साथ अर्घ्य देती हैं.
छठ पूजा पर दिया गया डूबते सूर्य को अर्घ्य छठ पूजा तिथि व मुहूर्त
2 नवंबर (संध्या अर्घ्य) सूर्यास्त का समय-17:35:42
अर्घ्य देने की विधि
बांस की टोकरी में सभी सामान रखें. सूर्य को अर्घ्य देते समय सारा प्रसाद सूप में रखें और सूप में ही दीपक जलाएं. फिर नदी में उतरकर सूर्य देव को अर्घ्य दें.
छठ पूजा का महत्व
शाम को अर्ध्य देने के पीछे मान्यता है कि सुबह के समय अर्ध्य देने से स्वास्थ्य ठीक रहता है. दोपहर के समय अर्ध्य देने से नाम और यश होता है और वहीं शाम के समय अर्ध्य देने से आपकी हर मनोकामना पूर्ण होती है. इसके अलावा माना जाता है कि भगवान सूर्य शाम के समय अपनी प्रत्युषा के साथ होते हैं. जिसका फल हर भक्त को मिलता है.
क्यों करते हैं छठ पूजा ?
छठ पूजा को लेकर कई कथाएं हैं. जिनमे से मुख्य कथा के रूप में महर्षि कश्यप और राजा की कथा सुनाई जाती है. इस कथा के अनुसार एक राजा और रानी के कोई संतान नहीं थी. राजा और रानी काफी दुखी थे. एक दिन महर्षि कश्यप के आशीर्वाद से राजा और रानी के घर संतान उत्पन्न हुई. दुर्भ्याग्य से राजा और रानी के यहां जो संतान पैदा हुई थी वो मृत अवस्था में थी और इस घटना से राजा और रानी बहुत दुखी हुए.
इसके बाद राजा और रानी आत्महत्या करने के लिए एक घाट पर पहुंचे और जब वो आत्महत्या करने जा रहे थे तभी वहां ब्रह्मा की मानस पुत्री ने उन्हें दर्शन दिया. राजा और रानी को अपना परिचय देते हुए उस देवी ने अपना नाम छठी बताया और उनकी पूजा अर्चना करने की बात कही. राजा ने वैसा ही किया और उसको संतान का सुख प्राप्त हुआ. कार्तिक मास के शुक्ला पक्ष को यह घटना घटी थी.