नई दिल्ली/इस्लामाबाद :इससे ज्यादा विडंबना देखने को नहीं मिल सकती कि जिस समय प्रधानमंत्री इमरान खान पाकिस्तान को आतंक समर्थकों और प्रमोटरों की कुख्यात सूची से बाहर निकालने की पूरी कोशिश कर रहे हैं, उसी वक्त वह अपने देश को अच्छी तरह से विकसित आतंकी दलदल में डूबते हुए पाते हैं.
इस सप्ताह ऐसी रिपोर्ट्स सामने आई है कि अमेरिका और सीरिया ने 29 पाकिस्तानियों को हिरासत में लिया है, जो सीरिया सरकार के खिलाफ खूंखार इस्लामिक स्टेट (आईएस) के लिए लड़ रहे थे. दिलचस्प बात यह है कि इन 29 में से नौ महिलाएं हैं. अब अमेरिका उनसे यह पता लगाने के लिए पूछताछ कर रहा है कि उन्हें सीरिया में लड़ने के लिए किसने भेजा था और क्या वे आईएस में शामिल होने से पहले अन्य आतंकी संगठनों के साथ भी संलिप्त थे.
आतंक के वित्त पोषण (टेरर फाइनेंसिंग) और धन शोधन (मनी लॉन्ड्रिंग) में अहम भूमिका निभाने के लिए पाकिस्तान 2018 से फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की ग्रे लिस्ट में हैं. अगर वह एफएटीएफ को यह साबित नहीं कर पाता है कि उसने अपने देश से आतंकी संगठनों को साफ किया है, तो उसे ब्लैक लिस्ट (काली सूची) में डाल दिया जाएगा.
एफएटीएफ एक अंतर-सरकारी निकाय है, जिसे जी-7 देशों द्वारा 1989 में मनी लॉन्ड्रिंग से लड़ने के लिए स्थापित किया गया था. 2001 में इसने मानव तस्करी और आतंकी वित्त पोषण के मामलों को शामिल करने के साथ अपने दायरे का विस्तार किया. इसने पहली बार 2012 से 2015 तक पाकिस्तान को ग्रे सूची में शामिल किया. इसके बाद पाकिस्तान को 2018 में दूसरी बार इस सूची में डाला गया.
अब वह इस सूची से बाहर आना चाहता है, क्योंकि यह उस समय वित्तीय प्रतिबंधों का सामना कर रहा है, जब उसकी अर्थव्यवस्था चरमरा रही है और उस पर बाहरी ऋण का भी बोझ है, जो लगातार नई ऊंचाई पर पहुंच रहा है. पाकिस्तान बड़े पैमाने पर आतंकी तत्वों का अड्डा होने के बावजूद चीन और तुर्की इसकी मदद करते रहे हैं.
इस साल मार्च में अमेरिकी पत्रकार लिंडसे स्नेल ने अपनी एक खबर में बताया था कि पाकिस्तान तुर्की के समर्थन में सीरियाई संघर्ष में शामिल हो रहा है. सीरिया में 2011 में शुरू हुए गृहयुद्ध में विभिन्न लोग और संप्रदाय एक-दूसरे से लड़ रहे हैं. स्नेल की जानकारी काफी महत्व रखती है, क्योंकि यह पहली बार था, जब पाकिस्तान ने सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल-असद के खिलाफ लड़ने के लिए कदम आगे बढ़ाए हैं.