राजनांदगांव : गणेश चतुर्थी के मौके पर देश के कोने-कोने में भगवान गणेश की प्रतिमा विराजित की जा रही हैं. गली-मोहल्ले गणपति के जयकारों से गूंज रहे हैं, लेकिन इन सबके बीच छत्तीसगढ़ में एक गांव ऐसा भी है, जहां किसी भी गली, मोहल्ले या घर में गणेश उत्सव की धूम देखने या सुनने नहीं मिलती. इसकी वजह बेहद ही चौंकाने वाली है.
ऐसा नहीं है कि गांव में कोई हिंदू परिवार ही नहीं है. गांव में काफी संख्या में हिंदू रहते हैं और सबकी गणेश भगवान में गहरी आस्था भी है. इतना ही नहीं गांव में भगवान गणेश का ही एक मात्र मंदिर है और इसी मंदिर से जुड़ी है ब्रिटिश काल से लेकर आज तक गांव में मिट्टी के गणेश की प्रतिमा विराजित नहीं होने की कहानी.
क्या है कहानी
- गांव में सालों से चली आ रही इस परंपरा को आज तक किसी ने तोड़ने की कोशिश नहीं की है.
- इसके पीछे एक मान्यता ये है कि सालों पहले राजपरिवार के एक सदस्य ने नियम को तोड़कर गणपति की स्थापना करने की कोशिश की थी, लेकिन उसकी मौत हो गई.
- लोगों का कहना है कि, 'भगवान गणपति ने खुद सपने में आकर अलग से मूर्ति की स्थापना करने से मना किया, लेकिन इसके बावजूद राजपरिवार में गणपति की स्थापना की गई, जिससे राज परिवार के एक व्यक्ति की मौत हो गई'.
पत्थर की मूर्ति को नहीं हिला सका कोई
ETV भारत की टीम ने जब गोपालपुर गांव का दौरा किया तो गांव के बुजुर्ग ग्रामीणों से चर्चा करने पर पता चला कि ब्रिटिश काल में गांव में गणेश भगवान की एक पत्थर की मूर्ति मंगाई गई थी, जो बैलगाड़ी के जरिए गोपालपुर गांव पहुंची थी. रास्ते में एक स्थान पर मूर्ति अचानक गिर गई. इसके बाद से मूर्ति को दूसरी जगह ले जाने के लिए काफी कोशिश की लगई, लेकिन मूर्ति को कोई हिला भी नहीं सका. इसके बाद मूर्ति को गांव के मुख्य मार्ग पर ही स्थापित कर दिया गया. तब से लेकर आज तक अष्टभुज श्री गणेश की मूर्ति उसी स्थान पर स्थापित है. गांव वालों ने अब इस स्थान पर मंदिर का निर्माण भी करवा दिया है.