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स्त्री सिर्फ हाड़-मांस की मूर्ति नहीं : बीनापानी मोहंती - ओडिशा की लेखिका

ओडिशा की लेखिका बीनापानी मोहंती ने कहा कि हम तब वास्तविक स्वराज हासिल करेंगे, जब हमारी लड़कियां बिना डर के आधी रात को सड़क पर चल सकेंगी.

बीनापानी मोहंती
बीनापानी मोहंती

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Published : Mar 3, 2020, 7:42 AM IST

भुवनेश्वर: ओडिशा की लेखिका बीनापानी मोहंती को साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में पद्म श्री के लिए चुना गया है. बीनापानी महिला केंन्द्रित लेखनी के लिए जानी जाती हैं. वह कहती हैं कि जीवन में उन्होंने जो भी हासिल किया है, अपनी मां की वजह से हासिल किया है. पद्म श्री पाने का श्रेय भी वह अपनी मां को देती हैं.

बीनापानी मोहंती कहती हैं कि महिला दिवस के अवसर पर महिलाओं को एकजुट होना चाहिए और उन्हें समाज में नया सुधार लाने का संकल्प लेना चाहिए, जिससे एक नया सवेरा हो. वह कहती हैं कि महिला को खुद को सशक्त समझना चाहिए और उसे खुद अपनी विपरीत परिस्थितियों पर काबू पाना चाहिए.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

'85 साल की उम्र तक लिखती रही'

बीनापानी मोहंती ने बताया कि 85 साल की उम्र में भी उन्होंने लिखना नहीं छोड़ा. उनकी रचनाओं में समाज की झलक मिलती है. मोहंती कहती हैं कि वह अपनी आखिरी सांस तक लिखती रहेंगी. इस वक्त बीनापानी की शारीरिक स्थिति ठीक नहीं हैं. वह कहती हैं कि ईश्वर की कृपा जब तक उन पर रहेगी, वह समाज के लिए लिखती रहेंगी.

स्त्री सिर्फ मांस और हड्डियों की मूर्ति नहीं

बीनापानी ने बताया कि उन्होंने हर उपन्यास में यह दिखाने की कोशिश की है कि एक स्त्री सिर्फ मांस और हड्डियों की मूर्ति नहीं है. वह किसी पुरुष से कम नहीं है. जरूरत पड़ने पर वह अपनी शक्ति का प्रदर्शन करके कुछ भी कर सकती है. हमारे इतिहास और पौराणिक कथाओं में ऐसे कई उदाहरण हैं.

'मां ने हमेशा की मदद'

बीनापानी कहती हैं कि उनके संघर्ष को जानना इतनी जरूरी नहीं है फिर भी उन्होंने ईटीवी भारत को बताया कि वह आठ किलोमीटर दूर पढ़ने जाया करती हैं. वह कहती हैं कि न तो उन्हें किसी ने प्रोत्साहित किया और न ही हतोत्साहित लेकिन मां ने हमेशा दुनिया को बेहतर तरीके से जानने में मदद की. वह कहती हैं कि उनकी मां ही उनकी प्रेरणा हैं. बीनापानी कहती हैं कि अगर आप शिक्षित होंगे तब ही आप महिलाओं के मुद्दों को उठा सकते हैं.

'महिलाएं अपनी आतंरिक क्षमता का एहसास करें'

वह कहती हैं कि महिलाएं बहुत प्रगतिशील हो रही हैं, लेकिन प्रगतिशील का मतलब यह नहीं है कि वह विज्ञापनों तक सीमित हो जाएं. सशक्तिकरण के लिए महिलाएं अपनी आतंरिक क्षमता का एहसास करें, वह तभी आगे बढ़ सकती हैं और आत्मनिर्भर हो सकती हैं.

'लड़किया बिना डरे सड़कों पर निकले'

बीनापानी कहती हैं कि महात्मा गांधी ने कहा है कि हम तब वास्तविक स्वराज हासिल करेंगे, जब हमारी लड़कियां बिना डर के आधी रात को सड़क पर चल सकेंगी. लेकिन हर रोज बलात्कार के मामले सामने आ रहे हैं. निर्भया केस उदाहरण है, उसकी इंसाफ की लड़ाई 7 साल से जारी हैं. अपराधियों को फांसी क्यों नहीं दी जा रही है, यह समझ में नहीं आ रहा है.

'समाज के लिए सोचना और जीना चाहिए'

बीनापानी कहती हैं कि महिलाओं को समाज के लिए सोचना और जीना चाहिए. इससे वह समाज को आगे ले जा सकती हैं. अगर सभी महिलाएं एकजुट होकर अन्याय के खिलाफ विरोध करेंगी, तो ही वह कुछ चीजें हासिल कर सकती हैं.

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