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मान्यता - यहां हाथी की कब्र पर जाने से ठीक हो जाता है चर्म रोग

ईटीवी भारत किसी अंध विश्वास का समर्थन नहीं करता, लेकिन हम आपको अपनी सीरीज के माध्यम से ऐसे ही स्थानों से परिचित कराते हैं, जो अपने भीतर कई रहस्य संजोए हुए हैं. इसी कड़ी में हम आपको एक ऐसी जगह ले चलेंगे, जहां लोग चर्म रोग और बुखार से छुटकारा पाने के लिए किसी डॉक्टर के पास नहीं, बल्कि एक हाथी की कब्र पर जाते हैं. पढ़ें पूरी रिपोर्ट...

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हाथी की कब्र

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Published : Feb 9, 2020, 10:41 PM IST

Updated : Feb 29, 2020, 7:33 PM IST

नाहन : हिमाचल अपनी सांस्कृतिक विविधता के लिए विश्वभर में जाना जाता है, यहां की लोक मान्यताएं, देव परम्पराएं और अनुष्ठान कई विचित्र कहानियों से जुड़े हुए हैं. माना जाता है कि इन्हीं कहानियों से जुड़े स्थान अपने भीतर कई रहस्यों को संजोए हुए हैं.

ईटीवी भारत अपनी खास सीरीज रहस्य में आपकों अबतक कई रहस्यमयी स्थानों से परिचित करवा चुका है, इसी कड़ी में हम आपको एक ऐसी जगह ले चलेंगे, जहां लोग चर्म रोग और बुखार से छुटकारा पाने के लिए किसी डॉक्टर के पास नहीं, बल्कि एक हाथी की कब्र पर जाते हैं.

हाथी की यह कब्र नाहन-शिमला मार्ग पर सीजेएम निवास के पास ही स्थित है. मान्यता है कि इस कब्र पर आने से स्किन संबंधी रोग दूर हो जाते हैं, लोगों का मानना है कि इस कब्र पर मन्नत मांगने से संतान की कामना भी पूरी हो जाती है.

नाहन के निवासी कंवर अजय बहादुर सिंह का कहना है कि रियासत कालीन समय में यहां के महाराज सिरमौर हुआ करते थे.

जानें हाथी की कब्र का राज

राजा का ब्रजराज नाम का प्रिय हाथी हुआ करता था, यह हाथी न सिर्फ महाराज का प्रिय था, बल्कि उस समय उनके राज्य के सभी बच्चों को भी बहुत प्रिय हुआ करता था. यह हाथी राज्य के सभी लोगों को प्रिय हुआ करता था.

एक रोज अचानक गजराज की मृत्यु हो गई. जिसके बाद महाराज सिरमौर ने शाही तरीके से गजराज का अंतिम संस्कार करने की घोषणा की और जिसके बाद हाथी की एक पक्की कब्र बनवा दी.

तब से लेकर आज तक यह कब्र लोगों की आस्था का केंद्र बन चुकी है और यहां पर लोगों का आना-जाना लगा रहता है. आज भी यह कब्र लोगों को उनकी बीमारियों से छुटकारा दिलाती है.

पौराणिक कथाओं की बात करें तो भोलेनाथ और भगवान गणेश के प्रथम मिलान में युद्ध हुआ था, जिसमें महादेव ने गणेश जी का सिर धर से अलग कर दिया था.

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इस पूरे घटनाक्रम के बाद गणेश जी को हाथी का सिर लगा दिया था. जिसके बाद महादेव ने उन्हें “गजानन” नाम दिया था.

इस तरह प्राचीनकाल से ही हाथी को भगवान गणेश के साथ जोड़कर हिन्दू समाज अपनी आस्था को प्रकट करता आ रहा है.

नाहन में पिछले 100 सालों से भी अधिक समय से गजराज की यह कब्र एक अराधना स्थल के रूप में आज भी लोगों की धार्मिक आस्थाओं और मान्यताओं का सशक्त प्रतीक बनी हुई है.

आपको बता दें कि ईटीवी भारत किसी तरीके के अंधविश्वास का समर्थन नहीं करता, बल्कि लोगों की मान्यताओं के अनुसार कई रहस्यों से भरी कहानियों और स्थानों से आप को परिचित करवाता है.

Last Updated : Feb 29, 2020, 7:33 PM IST

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