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लॉकडाउन में जहां प्रशासन नहीं पहुंच पाया, वहां नाव से पहुंचा ईटीवी भारत

डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया और सांसद गौतम गंभीर के इलाके में पड़ने वाले यमुना खादर के चिल्ला गांव में ईटीवी भारत की टीम नाव से पहुंची. हालात देखा तो पता चला कि वहां रह रहे 40 लोगों तक सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं पहुंची है. पढे़ं खबर विस्तार से...

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स्पेशल रिपोर्ट

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Published : Apr 14, 2020, 3:00 PM IST

नई दिल्लीःकोरोना के चलते लगाए गए इस लॉकडाउन में सरकार ने जरूरतमंदों तक मदद पहुंचाने का आश्वासन दिया. लाखों लोगों तक मदद पहुंचाई जा रही है, लेकिन कुछ इलाके ऐसे भी हैं, जहां सरकारी तंत्र की तरफ से कोई सहायता नहीं पहुंच पाई है. ऐसा ही इलाका है यमुना खादर का चिल्ला गांव, जहां ईटीवी भारत की टीम नाव से पहुंची और हालात का जायजा लिया.

दरअसल ये इलाका एक टापू है. यमुना के बीच स्थित इस टापू पर करीब 10 परिवारों के 40 सदस्य रहते हैं. यह लोग सब्जियां उगाकर या फिर दिहाड़ी/मजदूरी करके गुजर-बसर कर रहे हैं. लॉकडाउन के बाद से इनकी आमदनी बिल्कुल बंद है. सब्जियां भी नहीं उगा पा रहे, क्योंकि बीज नहीं हैं और दुकानें बंद हैं.

देखिए स्पेशल रिपोर्ट

'नहीं मिली सरकारी मदद'

इन परिवारों का कहना है कि उन्हें अभी तक कोई सरकारी मदद नहीं मिली है. सरकार की तरफ से ना खाना पहुंचा है और ना ही राशन. आरएसएस की सेवा भारती संस्था ही इन लोगों का एकमात्र सहारा है. यह संस्था इन्हें खाना और राशन मुहैया करा रही है.

'बड़े नेताओं' का इलाका है यमुना खादर

यह जानना बेहद जरूरी है कि ये इलाका किन नेताओं के अंतर्गत आता है. बता दें कि यमुना खादर, दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के विधानसभा क्षेत्र पटपड़गंज में पड़ता है. यह पूर्वी दिल्ली संसदीय क्षेत्र में आता है, इसलिए यहां की जिम्मेदारी सांसद गौतम गंभीर की भी है. इस क्षेत्र के निगम पार्षद बिपिन बिहारी सिंह, पूर्वी दिल्ली नगर निगम के मेयर रह चुके हैं.

नाव ही है एकमात्र जरिया

यह लोग काफी मुश्किल में हैं. इन्हें जरूरत का कोई भी समान लेने के लिए नाव के सहारे जाना पड़ता है. सभी परिवार मजदूरी करने वाले हैं, तो इतने पैसे नहीं हैं कि वह किराए पर कमरा ले सकें. मजबूरन यमुना किनारे झोपड़ियां बनाकर रह रहे हैं. सेवा भारती संस्था मदद कर रही है, इसलिए दो वक्त का खाना नसीब हो रहा है.

'सिर्फ वोट मांगने आते हैं जनप्रतिनिधि'

यहां रह रहे लोगों ने बताया कि जनप्रतिनिधि वोट मांगने के वक्त यहां पहुंचना कभी नहीं भूलते. आज जब जरूरत है तो ना तो कोई नेता पहुंचा है और ना ही सराकरी मदद.

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