नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने आज कांग्रेस नेता जीवन रेड्डी द्वारा दायर एक याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया. इन्होंने तेलंगाना में सचिवालय भवन को तोड़ने पर कोर्ट में चुनौती दी थी. न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय में वह हस्तक्षेप नहीं कर सकती है. न्यायमूर्ति भूषण ने कहा कि उच्च न्यायालय ने इस बात को रेखांकित किया था कि सचिवालय की इमारतों में कई कमियां हैं.
इससे पहले गुरुवार को तेलंगाना उच्च न्यायालय ने राज्य सचिवालय भवन को ध्वस्त किये जाने पर अस्थायी रोक की अवधि 17 जुलाई तक बढ़ा दी थी. मुख्य न्यायाधीश राघवेंद्र सिंह चौहान और न्यायमूर्ति बी विजयसेन रेड्डी की खंडपीठ ने यह फैसला किया था.
बता दें कि तेलंगाना सचिवालय भवन को ध्वस्त किए जाने से रोकने के लिए प्रोफेसर पी एल विश्वेश्वर राव और डॉ चेरूकु सुधाकर ने याचिका दायर की है. याचिकाकर्ताओं ने आरेाप लगाया है कि मौजूदा सचिवालय परिसर को ध्वस्त करने का कार्य समुचित कानूनी प्रक्रिया के बगैर किया जा रहा है.
आरोपों पर राज्य सरकार की सफाई
याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि मौजूदा ढांचे को ध्वस्त किया जाना महामारी के समय में एक मनमाना कार्य है और इससे आसपास के इलाके के पांच लाख लोग स्वच्छ हवा से वंचित हो जाएंगे. हालांकि, तेलंगाना के महाधिवक्ता ने अदालत से कहा कि राज्य सरकार ने भवन को ध्वस्त करने के लिए ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम से आवश्यक अनुमति ली है.
हाईकोर्ट के स्थगन आदेश
इस याचिका पर हाईकोर्ट ने विगत 10 जुलाई को भी सुनवाई की थी. कोर्ट ने सचिवालय भवन को ध्वस्त किये जाने पर 13 जुलाई तक के लिए स्थगन आदेश जारी किया था. बाद में कोर्ट ने इस मामले में स्थगन आदेश 15 जुलाई तक बढ़ा दिया था. कोर्ट ने सचिवालय भवन ध्वस्त किये जाने के मामले में केसी राव की सरकार को निर्देश जारी किया था. हाईकोर्ट ने राज्य मंत्रिमंडल का एक प्रस्ताव सीलबंद लिफाफे में सौंपने का निर्देश दिया था.