नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा समाप्त करने के बाद राज्य में लगाये गये अनेक प्रतिबंधों को लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद से सवाल किये और जानना चाहा कि क्या प्राधिकारियों को दंगा होने का इंतजार करना चाहिए था.
न्यायमूर्ति एन.वी.रमण, न्यायमूर्ति आर. सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति बी.आर. गवई की तीन सदस्यीय पीठ ने आजाद के पार्टी सहयोगी तथा वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से सवाल किया कि इस तरह के मामले में ऐसी आशंका क्यों नहीं हो सकती कि पूरा क्षेत्र या स्थान अशांत हो सकता है?
सिब्बल जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद की याचिका पर उनकी ओर से बहस कर रहे थे. उन्होंने दलील दी थी कि प्राधिकारियों द्वारा संचार और परिवहन व्यवस्था सहित अनेक पाबंदियां लगाना अधिकारों का आभासी इस्तेमाल था.
सिब्बल ने कहा कि सार्वजनिक सद्भाव को किसी प्रकार के खतरे की आशंका के बारे में उचित सामग्री के बगैर ही प्राधिकारी इस तरह की पाबंदियां नहीं लगा सकते.
उन्होंने सवाल किया कि सरकार यह कैसे मान सकती है कि सारी आबादी उसके खिलाफ होगी और इससे कानून व्यवस्था की समस्या पैदा होगी.
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सिब्बल ने कहा, 'घाटी के दस जिलों में 70 लाख की आबादी को इस तरह से पंगु बनाना क्या जरूरी था? उन्हें ऐसा करने के समर्थन में सामग्री दिखानी होगी. इस मामले में हम जम्मू-कश्मीर की जनता के अधिकारों की बात नहीं कर रहे हैं. हम भारत के लोगों के अधिकारों के बारे में बात कर रहे हैं.'