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मॉब लिचिंग पर कोर्ट के निर्देशों को लागू न करने पर केंद्र और राज्य सरकारों को SC का नोटिस

उच्चतम न्यायालय ने मॉब लिचिंग को रोकने के लिए दिए गए निर्देश को लागू न करने पर केंद्र सरकार सहित कई राज्यों सरकारों को नोटिस जारी किया है.

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Published : Jul 26, 2019, 8:35 PM IST

Updated : Jul 27, 2019, 7:50 AM IST

नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने मॉब लिंचिंग (भीड़ द्वारा की जाने वाली हिंसा) पर रोक लगाने को लेकर दिए गए अपने आदेश को लागू करने के लिए दायर याचिका पर शुक्रवार को नोटिस जारी किया.

शीर्ष अदालत ने यह नोटिस एक याचिका पर सुनवाई के दौरान जारी किया जिसमें देश में अल्पसंख्यकों को निशाना बनाते हुए बढ़ती मॉब लिंचिंग घटनाओं पर रोक लगाने के लिए निर्देश देने की मांग की गई है.

मालूम हो कि सर्वोच्च न्यायालय ने 2018 के अपने एक फैसले में मॉब लिंचिंग पर रोक लगाने के लिए कई निर्देश दिए थे.

याचिका प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ के पास सूचीबद्ध थी. याचिकाकर्ता ने कहा कि देश में खासतौर से गोरक्षा के नाम मॉब लिंचिंग की घटनाएं बढ़ रही हैं और हिंसा के ऐसे कृत्यों से साफ तौर पर मौलिक अधिकारों का हनन किया जा रहा है.

कोर्ट में याचिका दायर करने वाली महिला अधिवक्ता मंजू शर्मा ने ईटीवी भारत से कहा कि देश में मॉब लिंचिगं की घटनाएं रुक ही नहीं रही है. भीड़ एक दम से उग्र हो जाती है और हिंसक घटनाओं को अंजाम दे देती है. उन्होंने कहा यह एक गंभीर मामला है लेकिन किसी को इस बात की चिंता नहीं है.

वहीं अन्य याचिकाकर्ता अशोक कुमार ने कहा कि यह देश के लिए गंभीर समस्या है. हम हर रोज अखबार में और न्यूज में देखते कि मॉब लिंचिंग की घटना लगातार बढ़ रही है. उन्होंने कहा कि इस मामले पर कोर्ट द्वारा जारी किए गए निर्देश को भी लागू नहीं किया गया.

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याचिकाकर्ता ने बढ़ती हिंसा का जिक्र करते हुए कहा कि गोरक्षक समूहों ने गायों की रक्षा का दावा करते हुए महज गोहत्या और पशु-तस्करी के संदेह में कई निर्दोष मुस्लिमों और दलितों की जानें ले ली हैं.

याचिकाकर्ता ने सितंबर 2015 की एक घटना का जिक्र करते हुए कहा कि कृषि मजदूर मोहम्मद अखलाक और उनके बेटे दानिश को लोगों ने कथित तौर पर गाय का मांस खाने व रखने को लेकर पीटा था.

घटना में अखलाक की मौत हो गई थी.अदालत ने शुरुआती दलीलों को सुनने के बाद केंद्र सरकार, मानवाधिकार आयोग और 11 राज्यों की सरकारों को नोटिस जारी किया.

बता दें कि कोर्ट ने 2018 में 11 निर्देश देते हुए कहा था कि-

⦁ राज्य सरकारें मॉब लिंचिग और हिंसा की घटनाओं को रोकने के लिए उपाय करने के लिए प्रत्येक जिले में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी नामित करेंगी.

⦁ राज्य सरकारें उन जिलों और गांवों की तुरंत पहचान करेंगी जहां हाल के दिनों में हिंसा और मॉब लिंचिग की घटनाएं हुई हैं.
⦁ नोडल अधिकारी लिंचिंग और हिंसा संबंधी मुद्दों से निपटने के लिए रणनीति तैयार करने के लिए किसी भी अंतर-जिला समन्वय मुद्दों को डीजीपी के ध्यान में लाएंगे.
⦁ प्रत्येक पुलिस अधिकारी का यह कर्तव्य होगा कि वह भीड़ को तितर-बितर करे, जो उनके अनुसार हिंसक हो सकती है.
⦁ केंद्र और राज्य सरकारों को रेडियो और टेलीविज़न और अन्य मीडिया प्लेटफार्मों जिनमें आधिकारिक वेबसाइटें शामिल हैं इन पर प्रसारण करे कि हिंसा और मॉब लिंचिंग से गंभीर परिणाम हो सकते हैं.
⦁ विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर गैर-जिम्मेदार और विस्फोटक संदेशों, वीडियो और अन्य सामग्री के प्रसार को रोकें और बंद करें.इसके अलावा ऐसे संदेशों का प्रसार करने वाले व्यक्तियों के खिलाफ कानून के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत एफआईआर दर्ज करें.
⦁ सुनिश्चित करें कि पीड़ितों के परिवार के सदस्यों का कोई और उत्पीड़न न हो.
⦁ राज्य सरकारें पीड़ित के लिए मुआवजा योजना तैयार करेंगी.
⦁ प्रत्येक जिले में फास्ट ट्रैक कोर्ट द्वारा लिंचिंग और भीड़ हिंसा के मामलों को विशेष रूप से चलाया जाएगा.
⦁ भीड़ हिंसा और लिंचिंग के मामलों में एक सख्त उदाहरण स्थापित करने के लिए, ट्रायल कोर्ट को आरोपी व्यक्ति के दोषी होने पर अधिकतम सजा का प्रावधान करना चाहिए.
⦁ अगर जांच में यह पाया जाता है कि एक पुलिस अधिकारी या जिला प्रशासन का कोई अधिकारी अपने कर्तव्य को पूरा करने में विफल रहा है, तो इसे जानबूझकर की गई लापरवाही माना जाएगा.

Last Updated : Jul 27, 2019, 7:50 AM IST

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