नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में एक और हिन्दू वादी को अपना लिखित नोट दाखिल करने की गुरुवार को इजाजत दी. इस वादी ने न्यायालय से अनुरोध किया है कि यदि शीर्ष अदालत यह व्यवस्था देती है कि हिन्दू और मुस्लिम पक्ष में से किसी का भी 2.77 एकड़ विवादित भूमि पर मालिकाना हक साबित नहीं पाया तो इसे सरकारी जमीन घोषित किया जाये.
उमेश चन्द्र पाण्डे ने, जिन्हें 1961 में दायर वाद में उप्र सुन्नी केन्द्रीय वक्फ बोर्ड ने प्रतिवादी बनाया था, प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष अयोध्या मामले का उल्लेख किया और राहत में बदलाव के बारे में लिखित नोट दाखिल करने की अनुमति चाही.
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितम्बर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर 16 अक्टूबर को सुनवाई पूरी की थी.
संविधान पीठ ने सभी पक्षों से कहा था कि सुनवाई के दौरान उठे मुद्दों के परिप्रेक्ष्य में वे राहत में बदलाव के बारे में 19 अक्टूबर तक लिखित नोट दाखिल करें ताकि न्यायालय निर्णय के योग्य मुद्दों को सीमित कर सके.
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पाण्डे की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता वी. शेखर ने जब गुरुवार को लिखित नोट दाखिल करने की अनुमति मांगी तो प्रधान न्यायाधीश ने टिप्पणी की, 'हम समझ रहे थे कि अयोध्या प्रकरण पूरा हो गया.'