आदर्श रूप से, अपराध की प्रकृति जिसे एनसीआरबी की नवीनतम (2019) रिपोर्ट 'क्राइम इन इंडिया' में प्रमुख स्थान मिलना चाहिए था, वह है भीड़ द्वारा की जाने वाली हत्या यानी लिंचिंग. यह 2018 की सबसे बड़ी आपराधिक घटना रही है. लिंचिंग में मुख्यतः मुस्लिमों को निशाना बनाया गया. कथित रूप से इस मामले को गो हत्या या गो मांस के व्यापार से जोड़ते हैं. वाट्सएप जैसी नई पीढ़ी के मैसेजिंग प्लेटफॉर्म इस तरह की नफरत की खबरों के वाहक हैं.
उत्तर भारत के गांवों में जिस तरह से गो हत्या पर प्रतिबंध लगा है, उससे उपजे तनाव और हिंसा पर एनसीआरबी की रिपोर्ट कुछ नहीं कहती है. आवारा मवेशी, जो पहले बूचड़खानों में भेजे जाते थे, अब खेतों और घरों पर हमला करते हैं. रिपोर्ट में इस पर भी कुछ नहीं कहा गया है. धर्म के आधार पर प्रतिक्रिया ना हो जाए, लिहाजा ऐसे आवारा जानवरों पर कार्रवाई को लेकर असमंजस की स्थिति है. इससे खेती की जमीन पर समस्या आ गई है.
आक्रोशित ग्रामीणों के बीच आदर्श रूप से टकराव को ग्रामीण दंगों की श्रेणी में डाल दिया जाना चाहिए था, लेकिन इस रिपोर्ट के फ्रेमरों द्वारा इसे असुविधाजनक पाया गया. एनसीआरबी में 2016 तक 'कृषि दंगों' की एक उप-श्रेणी थी. इसमें 2014 में 628 मामलों की शिकायत की गई थी. लेकिन 2015 में इसकी संख्या बढ़कर 2683 हो गई. 327 फीसदी की वृद्धि देखी गई. इसके बाद इस श्रेणी को एनसीआरबी ने हटा दिया. माना जाता है कि ग्रामीण रोजगार घटने और जमीन विवाद बढ़ने की वजह से इस तरह के दंगों में वृद्धि हुई.
वैसे, एनसीआरबी से किसी भी श्रेणी के लापता होने की सामान्य व्याख्या यह है कि घटनाएं महत्वपूर्ण संख्या में नहीं थीं और इसलिए उन्होंने विशेष जोर नहीं दिया. कृषि संकट बढ़ने और किसानों द्वारा अपनी खेदजनक दुर्दशा का नोटिस लेने के लिए आंदोलन करने के लिए सामने आने के बावजूद आश्चर्यजनक है कि रिपोर्ट ने इसे कैसे खत्म कर दिया.
कृषि क्षेत्र एक संवेदनशील क्षेत्र है. सरकारों ने यह समझाने के लिए संघर्ष किया है कि किसानों को आत्महत्या करने के लिए क्या प्रेरित करता है. 1991 में आर्थिक सुधार और नकद खेती को प्रोत्साहित करने के बाद इस घटना में बढ़ोतरी हुई. किसान उच्च लाभ के मोह में साहूकारों से कर्ज लेते हैं और फिर सिंचाई के अभाव में या पेस्टसाइड या फिर मॉनसून की कमी की वजह से जब उनकी खेती चौपट हो जाती है, तो किसान को आत्महत्या करने की ओर धकेल दिया जाता है.
2018 के आंकड़े बताते हैं कि कृषि आत्महत्याओं की संख्या में गिरावट आई है. इसके विपरीत बेरोजगार युवाओं द्वारा आत्महत्याएं 12,936 तक बढ़ गई हैं, भले ही हम इसकी तुलना पूर्ववर्ती वर्ष 2017 से करें. यह आंकड़ा अधिकांश सरकारों के लिए अप्राप्य है, लेकिन पिछले 42 सालों में सबसे अधिक बेरोजगारी की रिपोर्ट तो सबको झकझोर देती है. क्या सरकार इसे अगली एनसीआरबी रिपोर्ट में दिखाएगी.