नई दिल्ली : राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े संगठन आम तौर पर केंद्र की मोदी सरकार के नीतियों का समर्थन और निर्णयों का स्वागत करते देखे जाते रहे थे. लेकिन बीते कुछ समय से संघ की मजदूर इकाई और देश से सबसे बड़े मजदूर संगठनों में शुमार भारतीय मजदूर संघ लगातार सरकार के नीतियों के विरोध कर रही है.
भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) ने श्रम कानून में राज्य सरकारों द्वारा किये जा रहे बदलावों का मुखर हो कर विरोध किया है. साथ ही वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा घोषित आर्थिक सुधार के कई कदमों के विरोध में भी खड़ा हो गया है.
बीएमएस सार्वजनिक क्षेत्र में मुनाफे में चल रहे उपक्रमों के निजीकरण का भी विरोध कर रही है. साथ ही मजदूर संघ रेलवे और डिफेंस ऑर्डिनेन्स फैक्ट्रीज बोर्ड के कॉरपोरेटाईजेशन के भी खिलाफ है.
मजदूर संघ ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा आत्मनिर्भर पैकेज के चौथे चरण की घोषणाओं के बाद व्यक्तव्य जारी किया था. जिसमें उन्होंने सरकार द्वारा संकट के समय का फायदा उठा कर 8 सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के निजीकरण और कॉरपोरेटीकरण के विरोध की बात कही थी.
संघ ने सरकार को नसीहत देते हुए कहा था कि वो अर्थव्यवस्था को उबारने के लिये ऐसे उपाय न अपनाएं जो पहले असफल हो चुके हैं.
हालांकि बीएमएस ने पैकेज में मनरेगा, स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र को अधिक महत्व दिये जाने का स्वागत भी किया था लेकिन विनिवेश नीति पर लगातार गतिरोध जारी रखा.
20 मई को देश के 14 राज्यों द्वारा श्रम कानून में किये जा रहे बदलाव के विरोध में भारतीय मजदूर संघ ने देशव्यापी प्रदर्शन का आवाहन किया.जिसके बाद कई भाजपा शाषित राज्यों पर श्रम कानून से संबंधित बदलाव के निर्णय वापस लेने का दबाव बना.