नई दिल्ली: भारत के 11 जिले नक्सल प्रभावित हैं. इन जिलों में करीब 39 संसदीय सीटें हैं. एक अनुमान के मुताबिक इनमें से करीब 40 प्रतिशत सीटों पर क्षेत्रीय दलों का दबदबा है. छत्तीसगढ़ एवं पश्चिम बंगाल को छोड़कर इन इलाकों में क्षेत्रीय दल अब राष्ट्रीय दलों के लिये चुनौती हैं.
छत्तीसगढ़ की नक्सल प्रभावित सीटों पर पिछले छह लोकसभा चुनावों में भाजपा और कांग्रेस के बीच टक्कर रही है. जबकि पश्चिम बंगाल में माकपा और तृणमूल कांग्रेस का कब्जा बना रहा.
भाजपा का कब्जा बरकरार
अगर बात करें पिछले छह चुनावों की तो, छत्तीसगढ़ में राजनंदगांव, महासमुंद, बस्तर, कांकेर सीटें नक्सल प्रभावित रही हैं. बस्तर एवं कांकेर सीट पर 1998 के चुनाव के बाद से भाजपा का कब्जा बरकरार है.
कांग्रेस का गढ़ थी
सीटें पहले कांग्रेस का गढ़ हुआ करती थी. जबकि 1998 एवं 2007 उपचुनाव को छोड़कर यह सीटें भाजपा के कब्जे में रही जबकि महासमुंद सीट पर भाजपा एवं कांग्रेस में टक्कर रही.
तृणमूल कांग्रेस और माकपा का दबदबा
वहीं, पश्चिम बंगाल की नक्सल प्रभावित झाड़ग्राम सीट 2014 में तृणमूल कांग्रेस और 2009 में माकपा जीती थी. मिदनापुर और बांकुरा सीट 1996 से 2009 तक माकपा के कब्जे में थी और 2014 के चुनाव में दोनों सीट तृणमूल कांग्रेस जीती.पुरूलिया 2014 में तृणमूल कांग्रेस जीती.
तिहाई सीटों पर भाजपा का प्रभाव
2014 में भाजपा नक्सल प्रभावित क्षेत्रों की सीटों में एक तिहाई सीटों पर भाजपा अपना प्रभाव डालने में सफल रही थी. झारखंड के चतरा, पलामू जैसी नक्सल प्रभावित सीटों पर झामुमो, राजद जैसे क्षेत्रीय दलों का प्रभाव रहा. खूंटी, गिरिडीह, धनबाद और रांची सीट पर भाजपा ने अपना प्रभाव बनाये रखा हालांकि इन सीटों पर क्षेत्रीय दलों से उसे कड़ी चुनौती मिली जबकि लोहरदगा सीट पर भाजपा और कांग्रेस के बीच टक्कर रही.