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'तुलसी' के किरदार से लेकर राहुल को मात देने तक की स्मृति की संघर्ष भरी कहानी - amethi

2019 में चुनाव जीत कर लोकसभा पहुंचने वाली स्मृति इरानी ने सच में आसमान में 'सुराख' कर दिया. उन्होंने कांग्रेस का गढ़ कही जाने वाली अमेठी सीट पर विजय पताका फहराते हुए राहुत गांधी को पराजित किया है. उन्हें महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय के साथ-साथ कपड़ा मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई है.

स्मृति इरानी शपथ ग्रहण करते हुए.

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Published : May 31, 2019, 3:16 PM IST

नई दिल्ली: 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी की जीत के बाद एचआरडी मंत्री बनी स्मृति इरानी एक ऐसी हस्ती हैं, जो कभी हार नहीं मानती हैं. इसी का नतीजा है कि वे अमेठी से चुनाव जीत कर लोकसभा की पहली बार सदस्य बनीं. इसके साथ ही उन्हें महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय के साथ-साथ कपड़ा मंत्रालय सौंपा गया है.

2014 में राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ने के बाद मिली हार के बाद भी वो अमेठी में डंटी रहीं. बीते पांच सालों में जनता के बीच जनसंपर्क, जनसभा और नुक्कड सभाओं के माध्यम से वे लोगों से जुड़ी रहीं. इसका ही नतीजा है कि वो राहुल गांधी को हरा कर 2019 लोकसभा चुनाव में अमेठी सीट पर कब्जा जमा बैठीं.

फूल माला पहने स्मृति इरानी. (IANS photo)

43 साल की स्मृति इरानी ने एक टीवी कलाकार के रूप में शुरुआत की थी. एकता कपूर के सीरियल क्योंकि सास भी कभी बहू थी, में उन्होंने तुलसी का सशक्त किरदार निभाया था. उनका यह किरदार काफी पोपुलर हुआ था. बल्कि टीवी के इतिहास में यह किरदार अविस्मरणीय माना जाता है. उसके बाद उन्होंने राजनीति में आने का फैसला लिया. बहुत लोगों को लगा था कि रूपहले पर्दे को छोड़ना उनके लिए अच्छा नहीं होगा, लेकिन स्मृति ने सभी पंडितों को धता बता दिया.

स्मृति ने वो कर दिखाया, जिसके बारे में दूसरे नेता सोचते रह जाते हैं. उन्होंने कांग्रेस के सबसे मजबूत किले को ध्वस्त कर दिया, 2014 में उन्होंने राहुल को कड़ी टक्कर दी और मात्र 1.07 लाख वोट से हारीं. उन्होंने कुल 3.7 लाख वोट हासिल किए थे. हार के बाद भी पाच साल तक कड़ी मेहनत का फल मतदाताओं ने उन्हे 2019 में दिया.

चुनाव प्रचार के दौरान लगातार स्मृति ने इस बात पर जोर दिया किया कि अमेठी की जनता बदलाव चाहती है और इसलिए वो पीएम मोदी को वोट करे.

स्मृति इरानी शपथ ग्रहण से पहले. (IANS photo)

23 मई को चुनाव परिणाम आने के साथ ही साफ हो गया कि राहुल गांधी को हरा कर स्मृति ने विजय पताका फहराया है. जीत मिलने के बाद राहुल ने उन्हें जीत की बधाई भी दी. इसके बाद ही स्मृति ने दुश्यंत कुमार कि कविता की कुछ पंक्तियां ट्वीट कर लिखा, 'कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं हो सकता.'

अपनी जीत के बाद 26 मई को वो फिर अमेठी पहुंचीं. इस बार वे चुनाव प्रचार के लिए नहीं, बल्कि बीजेपी कार्यकर्ता सुरेंद्र कुमार की अर्थी को कांधा देने के लिए.

सहयोगी का अर्थी को कंधा देती स्मृति. (IANS photo)

सबसे पहली बार स्मृति ने 2004 में दिल्ली की चांदनी चौक लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था, लेकिन बुरी तरह कपिल सिब्बल से हार गईं थी.

राज्यसभा सदस्य के रूप में वे पहली बार 2011 में चुनी गईं और 2017 में दोबारा राज्यसभा में वापसी की.

फायर ब्रांड कलाकार के रूप में मशहूर स्मृति ने पहली बार मानव संसाधन मंत्रालय संभाला. इसके बाद उन्हें कपड़ा मंत्रालय और सूचना और प्रसारण मंत्रालय का जिम्मा दिया गया था. 2014 से 2019 के बीच बखूबी उन्होंने इन पदों को संभाला.

कई बार स्मृति कॉन्ट्रोवर्सी का भी शिकार हुई और उन्हे आलोचनाएं झेलनी पड़ी. लगातार उनकी पढ़ाई और शिक्षा को लेकर सवाल खड़े किए गए.

चुनाव प्रचार के दौरान स्मृति और प्रियंका गांधी के बीच जुबानी जंग का दौर देखा गया. कभी प्रियंका ने उन पर अटैक करते हुए बाहरी कहा, तो कभी स्मृति ने विकास न होने के लिए राहुल को जिम्मेदार ठहराया. इसके साथ ही प्रियंका ने पिछले महीने स्मृति पर आरोप लगाया कि राहुल की बेइज्जती करने के लिए स्मृति जूते बांट रही हैं और अमेठी के लोग भिखारी नहीं हैं.

जनसभा को संबोधित करती स्मृति. (IANS photo)

2019 में नामांकन दाखिल करते हुए स्मृति ने कहा कि उन्होंने 10वीं की पढ़ाई 1991 में पूरी की और 12 वीं की 1993 में. साथी ही बताया कि ग्रैजुएशन की पढ़ाई उन्होंने पूरी नहीं की. पहले साल की पढ़ाई के दौरान ही कॉलेज छोड़ दिया. यह तीन साल का दिल्ली विश्वविद्यालय में कोर्स है, जो उन्होंने ओपन लर्निग के माध्यम से शुरू किया था.

2014 में स्मृति सबसे युवा मंत्री बनी थी. इस बार भी वे सबसे युवा मंत्री हैं. उनकी उम्र 43 साल है. पिछली बार दो साल तक एचआरडी मंत्री रहने के बाद उन्हे कपड़ा मंत्री बनाया गया था.

कई अन्य मामलों के लिए भी स्मृति की आलोचना हुई. एक बार सूचना प्रसारण मंत्रालय के आधीन आने वाले प्रसार भारती ने गलत खबर प्रसारित कर दी, जिसे बाद में हटा भी दिया गया. ये मंत्रालय स्मृति संभाल रही थी, जिसके चलते उन्हे काफी आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा.

स्मृति एक अच्छी वक्ता हैं और इसी के चलते वे कई मामलों में पार्टी की पहली पसंद रही हैं. बात करें प्रेस वार्ता के लिए उनका चुना जाना या किसी बहस में पार्टी का प्रतिनिधित्व करने के लिए पर्टी उन्हें चुनती रही है. संसद में भी वे अपने भाषणों के लिए जानी जाती हैं.

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