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प्रस्तावना - संविधान की आशाओं और आकांक्षाओं का प्रतिबिंब

भारतीय संविधान सभा की ओर से 26 नवम्बर 1949 को भारत का संविधान पारित हुआ और 26 जनवरी 1950 को प्रभावी हुआ. 'हम भारत के लोग' इन पंक्तियों के साथ भारतीय संविधान की आत्मा यानी प्रस्तावना शुरू होती है. प्रस्तावना में दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में रहने वाले लोगों को मिले अधिकार, कर्तव्य और हमारी संस्कृति की झलक प्रदर्शित होती है.

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Published : Nov 30, 2019, 12:39 PM IST

प्रस्तावना जोर देती है कि हम भारत के लोग संविधान के निर्माता हैं और वे ही इस शक्ति के स्रोत हैं. इसमें लोगों के अधिकारों और भारत के निर्माण की उसकी गंभीर आकांक्षाओं के बारे में बताया गया है. जवाहरलाल नेहरू ने संविधान सभा के उद्घाटन सत्र में 'संवैधानिक लक्ष्यों और उद्देश्यों' के उद्घाटन सत्र में टिप्पणी की थी. कहा जाता है कि उनकी यही टिप्पणी ने प्रस्तावना लिखने के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में कार्य किया है. कुल मिलाकर प्रस्तावना भारत के संविधान की मूल प्रकृति को दर्शाता है.

प्रस्तावना
हम, भारत के लोगों ने 26 नवंबर, 1949 को भारत के संविधान का मसौदा तैयार किया और उसे प्रस्तुत किया. हम देश को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में घोषित करते हैं.

संविधान के उद्देश्य:

  • देश के सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय प्रदान करना.
  • विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, विश्वास और पूजा की स्वतंत्रता.
  • समान स्थिति और समान अवसर.
  • व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता में वृद्धि.

संप्रभु
'सार्वभौम'का अर्थ है कि भारत का अपना स्वतंत्र अधिकार है और यह किसी अन्य बाहरी शक्ति का प्रभुत्व या निर्भर राज्य नहीं है. विभिन्न अंतरराष्ट्रीय निकायों में इसकी सदस्यता, देशों के गठबंधन हमारे देश पर किसी भी एक प्राधिकरण को प्रवेश नहीं देते हैं.

समाजवादी
आर्थिक न्याय और समानता को प्राप्त करना और सामाजिक उद्देश्यों के लिए संसाधनों का उपयोग करना.

धर्म निरपेक्ष
'धर्मनिरपेक्ष' का अर्थ है 'गैर-धार्मिक'. सरकार सभी धर्मों को समान रूप से मानती है.

गणतंत्र
लोगों या निर्वाचित प्रतिनिधियों के साथ उच्च अधिकार. इसका मतलब लोगों द्वारा सरकार है.

प्रस्तावना में शुरू में 'समाजवादी', 'धर्मनिरपेक्ष' और 'अखंडता' शब्द नहीं थे. उन्हें 1976 में 42 वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया था.

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