नई दिल्ली : भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) के खिलाफ टिप्पणी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू की है. सर्वोच्च अदालत के निर्देश पर प्रशांत भूषण ने अदालत में हलफनामा दाखिल किया है.
उन्होंने अपने हलफनामे में कहा है कि नागरिक को जनहित में किसी भी संस्था पर प्रामाणिक राय व्यक्त करने या बनाने से रोकने के लिए प्रतिबंध उचित नहीं है. यह उन बुनियादी सिद्धांतों का उल्लंघन करता है, जिन पर हमारा लोकतंत्र स्थापित है. किसी नागरिक को जनहित में किसी भी संस्था (जो संविधान की सृजन है) के प्रदर्शन का मूल्यांकन करना, सूचित करने के लिए उसे पब्लिक डोमेन में लाना, बहस शुरू करना, सुधारों के लिए सार्वजनिक राय बनाना या परिवर्तन करने से रोकना हमारे अधिकार का हनन है.
बता दें कि सर्वोच्च अदालत ने सीजेआई एसए बोबडे के खिलाफ अपमानजनक ट्वीट पर 22 जुलाई को प्रशांत भूषण को नोटिस जारी किया था. प्रशांत भूषण ने एक फोटो भी ट्वीट किया था, जिसमें सीजेआई एसए बोबडे को एक भाजपा नेता की लक्जरी बाइक पर बैठा दिखाया गया था. इसके अलावा उन्होंने चार पूर्व सीजेआई के खिलाफ ट्वीट किया था और आरोप लगाया था कि उन्होंने लोकतंत्र को बर्बाद करने की अनुमति दी.
अपने ट्वीट का बचाव करते हुए भूषण ने दलील दी है कि सीजेआई अदालत नहीं हैं और अदालत की छुट्टियों के दौरान उनके आचरण से संबंधित मुद्दों को उठाना या लोकतंत्र की रक्षा में उनकी विफलता, तानाशाही की अनुमति देना, असहमति जताना आदि 'न्यायालय के अधिकार का हनन या कम करना' नहीं है.
न्यायपालिका के खिलाफ पूर्व न्यायाधीशों की टिप्पणियों का उल्लेख करते हुए और वर्तमान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के अवलोकन के अनुसार नीतियों की आलोचना करने वालों को राष्ट्र विरोधी नहीं कहा जा सकता है. भूषण का कहना है कि अनुच्छेद 129 के तहत अवमानना की शक्ति का उपयोग 'न्याय प्रशासन में सहायता करने के लिए' किया जाना है और न कि उन आवाजों को बंद करने के लिए, जो अदालत से चूक और कमीशन की अपनी त्रुटियों के लिए जवाबदेही चाहते हैं.