हैदराबाद :भारत की शिक्षा प्रणाली कई तरह की गलत धारणओं से ग्रसित है. इन गलत धारणाओं को कोविड 19 के बाद के समय में चुनौती दी जाएगी. पहली गलत धारणा है कि जनता कि भलाई के लिए शिक्षा सरकार द्वारा दी जानी चाहिए इसलिए निजी स्कूलों के संचालन पर सरकार इसलिए नजर रखती है कि वह मुनाफाखोरी न कर सके और दूसरा राज्य सरकार लाइसेंस राज के तहत प्राइवेट स्कूलों को काबू में रख सके.
एक गलत धारणा यह भी है कि विकसित देशों में शिक्षा सिर्फ वहां की सरकार द्वारा दी जाती है जबकि हकीकत यह है कि यूएस, यूके यहां तक कि समाजवादी देश भी निजी शिक्षा को बढ़ावा देते हैं. कई विकसित देशों में शिक्षा का निजीकरण तथा पब्लिक फंडेड मॉडल को बढ़ावा दे रही है.
गलत धारणाओं को बढ़ाते हुए भारत ने सरकारी स्कूलों में भारी निवेश किया है लेकिन इसका परिणाम दयनीय है. अंतरराष्ट्रीय पीआईएसए टेस्ट में 74 देशों ने भाग लिया था, जिसमें भारत के बच्चों ने 73वां स्थान प्राप्त किया. पांचवीं कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे कक्षा दो के अंकगणित के सवाल हल नहीं कर पाए. कुछ राज्यों में दस प्रतिशत से कम शिक्षक टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट पास कर पाते हैं. यूपी और बिहार में तो चार में से तीन शिक्षक कक्षा पांच के प्रतिशत के सवाल हल नहीं कर पाते. एक सामान्य सरकारी स्कूल में चार में से एक टीचर ड्यूटी पर नहीं मिलते और उपस्थित दो में से एक शिक्षक पढ़ाते हुए पाए नहीं गए.
इस दयनीय स्थिति की वजह से 2.4 करोड़ बच्चों ने साल 2010-11 और 2017-18 के बीच सरकारी स्कूल छोड़कर निजी स्कूलों में एडमिशन ले लिया. यहा आंकड़ा सरकार के डीआईएसई डेटा से लिया गया है. आज भारत के 47% बच्चे निजी स्कूल में हैं जिसकी वजह से निजी शिक्षा प्रणाली 12 करोड़ बच्चों के साथ दुनिया के तीसरे स्थान पर हैं. इस प्रणाली में 70 प्रतिशत माता-पिता प्रति माह 1,000 रुपये से कम मासिक शुल्क का भुगतान करते हैं और 45% माता-पिता पांच सौ रुपये से कम का भुगतान करते हैं. इससे यह धारणा भी गलत साबित होती है कि निजी शिक्षा सिर्फ अमीरों के लिए है.
जिस गति से सरकारी स्कूल खाली हो रहे हैं, उसके आधार पर 130,000 से अधिक निजी स्कूलों की आवश्यकता है. निजी स्कूल के बाहर अभिभावकों की लंबी कतार काफी दुखी करती है. देश में अच्छे निजी स्कूलों की कमी के तीन कारण हैं. एक है लाइसेंस राज. यहां एक ईमानदार व्यक्ति के लिए एक स्कूल शुरू करना बहुत मुश्किल है. राज्य के आधार पर 35 से 125 अनुमतियों की आवश्यकता होती है, और प्रत्येक अनुमति के लिए इधर-उधर भागना और रिश्वत देना आवश्यक होता है. अनिवार्यता प्रमाण पत्र पाने के लिए सबसे महंगी रिश्वत देनी पड़ती है. अनिवार्यता प्रमाण पत्र यह साबित करने के लिए होता है कि उस क्षेत्र में एक स्कूल की जरूरत है. इसके अलावा मान्याता प्राप्त करने और पूरी प्रक्रिया में पांच साल लग जाते हैं.