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राजस्थान : पीराराम ने पेश की मिसाल, सरकारी नौकरी छोड़ बने वन्यजीव संरक्षक - मानवता की मिसाल

इस दुनिया में सब अपने लिए कुछ खास करते हैं. लेकिन अगर कोई किसी दूसरे के लिए कुछ खास करे, वो भी ऐसे जीवों के लिए. जो बेजुबान हों. तो यह मानवता की मिसाल के साथ काबिलेतारीफ भी है. कुछ ऐसा ही कर दिखाया है राजस्थान के जालोर जिले के देवड़ा गांव निवासी एक शख्स ने. जानिए उनकी पूरी दास्तां...

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अमृता देवी उद्यान

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Published : Jun 2, 2020, 6:22 PM IST

जयपुर : राजस्थान के जालोर जिले के देवड़ा गांव निवासी पीराराम धायल, जिन्होंने सीआरपीएफ की नौकरी छोड़कर वन्य जीवों के उत्थान के लिए काम करने की ठानी और घायल अवस्था में वन्यजीवों के उपचार करने का कार्य शुरू किया.

पीराराम पिछ्ले 7 वर्षों में करीब 900 घायल हिरणों का उपचार कर उन्हें वापस जंगल में छोड़ चुके हैं जबकि 550 हिरण आज भी अमृता देवी उद्यान में मौजूद हैं. इनकी देखभाल इन्हीं के द्वारा की जा रही है.

धायल ने बताया कि साल 1989 में उनकी सरकारी नौकरी लगी थी, जिसमें 5 साल तक रहने के बाद उन्होंने नौकरी छोड़कर वन्यजीवों के लिए कुछ करने की तमन्ना लेकर घायल जीव-जंतुओं की देखभाल करनी शुरू की थी. शुरुआत में टायर पंचर की दुकान के साथ यह कार्य करते थे.

ईटीवी भारत की विशेष रिपोर्ट.

साल 2009 में कुछ ग्रामीणों के साथ मिलकर धमाणा गांव के पास नेशनल हाईवे- 68 के किनारे बंजर पड़ी जमीन पर 6 हजार पौधे लगाकर उद्यान बनाया. 5 साल तक पौधों की सेवा करने के बाद ये पौधे बड़े होकर पेड़ बन गए. उसके बाद उसी जमीन पर 27 अक्टूबर 2013 को घायल हिरणों सहित अन्य जीव-जंतुओं के लिए रेस्क्यू सेंटर की शुरुआत की. अब पिछले 7 साल से इस अमृता देवी उद्यान में घायल वन्यजीवों की सेवा की जा रही है.

सड़क हादसे में घायल हिरण, खरगोश, बंदर, नील गाय और राष्ट्रीय पक्षी मोर में लोग लेकर आते हैं और रेस्क्यू सेंटर में उपचार करके इनको ठीक किया जाता है. धायल बताते हैं कि इन 7 साल में करीबन 900 से ज्यादा घायल हिरणों का उपचार कर वन क्षेत्र में विचरण करने के लिए छोड़ चुके हैं. जबकि 550 हिरण आज भी अमृता देवी उद्यान में मौजूद हैं, जिनकी देखभाल की जा रही है.

24 बीघा जमीन में उद्यान विकसित कर खोला रेस्क्यू सेंटर
धायल ने बताया कि वन्यजीवों के लिए कुछ खास करने की दिल में तमन्ना लेकर सेवा कर रहे थे. इस दौरान धमाणा के पास बंजर पड़ी जमीन पर ग्रामीणों ने पौधरोपण करने की बात रखी तो सभी ने मिलकर बंजर जमीन में पौधरोपण कर उद्यान विकसित कर दिया.

उद्यान विकसित होने के बाद धायल ने इसी जमीन पर घायल हिरणों सहित अन्य वन्यजीवों के लिये रेस्क्यू सेंटर खोलने की पहल की. उसके बाद सभी के सहयोग से रेस्क्यू सेंटर खोलकर वन्यजीवों की देखभाल की जा रही है.

इस दौरान कई बार मुश्किलें भी आईं. उद्यान के जमीन को अतिक्रमण बताकर ग्रामीणों ने शिकायत कर दी. प्रशासन ने कार्रवाई करके जमीन खाली करने का अल्टीमेटम दिया. काफी विवाद हुआ तो वन्यजीवों सहित उद्यान को प्रशासनिक अधिकारियों के हवाले सुपुर्द कर दिया गया.

5 दिन तक हिरणों सहित अन्य वन्यजीवों की देखभाल करने के बाद प्रशासन ने वापस इन्हीं को सुपुर्द कर दिया. हालांकि विवाद के बाद साल 2017 में वन विभाग ने इस उद्यान को अपने कब्जे में ले लिया और वन्यजीवों की देखरेख करने के लिए 8 कार्मिक नियुक्त कर दिए. लेकिन चारे पानी की जिम्मेदारी आज भी पीराराम धायल की संस्था के जिम्मे है.

अर्थ हीरो के अवार्ड से सम्मानित हो चुके हैं धायल
पूरे प्रदेश में इस प्रकार उद्यान विकसित करने रेस्क्यू सेंटर खोलने का पहला मामला है. धमाणा के अमृता देवी उद्यान को विकसित करने और वन्य जीवों के संरक्षण को देखकर उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू पीराराम धायल को आरबीएस अंतराष्ट्रीय अर्थ हीरो अवार्ड देकर साल 2018 में सम्मानित कर चुके हैं. इसके अलावा पीराराम धायल को वाइल्ड लाइफ कंजर्वेशन अवार्ड 2018-2019 दोनों मिल चुके हैं.

कृष्ण मृग की प्रजाति ही खत्म हो गई
जालोर और बाड़मेर जिले के धोरों में हजारों की तादाद में पहले हिरण हुआ करते थे. उसमें यहां सबसे ज्यादा कृष्ण मृग हुआ करते थे, लेकिन साल 1997 में आए तूफान के कारण ज्यादातर कृष्ण मर्ग हिरणों की मौत हो गई और बाद में बचे कुछ हिरणों को शिकारियों ने मार दिया. इस कारण कृष्ण मर्ग की प्रजाति ही इस क्षेत्र से खत्म हो गई. अब चिंकारा हिरण इस क्षेत्र में हैं, लेकिन सरकार द्वारा संरक्षण नहीं करने के कारण शिकारी इन्हें अपना शिकार बनाते हैं.

लॉकडाउन में यहां पर भी हुआ चारे का संकट
अमृता देवी उद्यान में हिरण सहित अन्य वन्यजीवों की देखरेख करने वाले पीराराम धायल और सुजानाराम ने बताया कि यहां लॉकडाउन में चारे पानी का संकट खड़ा हो गया है. चारा उद्यान में लोगों से आए चंदे से लेकर आते थे, लेकिन कोरोना के कारण लोगों के पास चंदे के लिए जा नहीं सके. ऐसे में उधार से वन्यजीवों के लिए चारे की व्यवस्था करनी पड़ रही है. लॉकडाउन खुलने के बाद व्यापारियों से जनसहयोग लेकर वापस चारे की व्यवस्था सुचारू की जाएगी.

क्षेत्र में काफी वन्यजीव हैं, लेकिन वन विभाग का कोई रेस्क्यू सेंटर नहीं है. तकरीबन 300 किमी दूर जोधपुर के अलावा कहीं पर रेस्क्यू सेंटर नहीं होने के कारण वन्यजीवों के सड़क हादसे में घायल हो जाने के बाद तड़पकर मर जाते थे. ऐसे हादसों को देखकर यह रेस्क्यू सेंटर खोला गया है.

एक आवाज पर आ जाते हैं 500 हिरण
हिरण प्रजाति बहुत शर्मीली होती है. यह इंसान के नजदीक आते ही भाग जाते हैं, लेकिन उद्यान में ऐसा नहीं है. अर्थ हीरो अवार्ड से सम्मानित पीराराम धायल के एक आवाज पर 500 से ज्यादा हिरण उनके आसपास आ जाते हैं और उनके हाथ से चारा खाने के बाद वापस चले जाते हैं.

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