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तमिलनाडु : उत्सव से भूख अधिक महत्वपूर्ण, मंदिर का फंड राहत कोष में तब्दील - minakshipuram

तमिलनाडु के टी मीनाक्षीपुरम दूसरे गांवों के लिए अब आदर्श बन गया है. यहां मंदिर निधि का उपयोग राहत कोष के तौर पर किया जा रहा है. एक व्यक्ति का कहना है कि सरकार जो सहायता दे रही वह पर्याप्त नहीं है. चावल भी खाने योग्य नहीं है...पढें पूरी खबर..

प्रतीकात्मक तस्वीर.
प्रतीकात्मक तस्वीर.

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Published : Apr 28, 2020, 1:56 PM IST

Updated : Apr 28, 2020, 2:06 PM IST

चेन्नई : महामारी में गरीब दोहरी मार झेल रहा है. एक तो उनके पास पैसा नहीं है और दूसरी तरफ राज्य सरकार जो सहायता लोगों को दे रही है वह पर्याप्त नहीं है. तमिलनाडु के टी मीनाक्षीपुरम के ग्रामीणों को लगता है कि सरकार उनकी आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम नहीं है. इसलिए यहां के रहने वाले लोग, मंदिर के पैसों का इस्तेमाल पेट की भूख मिटाने के लिए कर रहे हैं. एक व्यक्ति को शिकायत है कि सरकार जो चावल उन्हें राहत के तौर पर दे रही है वह खाने योग्य ही नहीं है.

कोरोना महामारी ने लोगों की दिनचर्या को बुरी तरह प्रभावित कर दिया है. शहरी लोगों के पास खुद की सेविंग (बचत) है. हालांकि लॉकडाउन ने उन्हें भी प्रभावित किया है. लेकिन उनकी स्थिति ग्रामिण लोगों से अच्छी है. क्योंकि शहरी व्यक्ति अपने बचाए पैसों का इस्तेमाल महामारी जैसे बुरे वक्त में कर रहे हैं.

सरकार राहत के तौर पर 1000 रूपये गरीबों को प्रदान कर रही है. लेकिन इन लोगों का कहना है कि यहा राशि पर्याप्त नहीं है. इस वित्तीय सहायता से उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं हो रही है.तमिलनाडु के टी मीनाक्षीपुरम के ग्रामीणों को लगता है कि सरकार उनकी जरूरतों को पूरा करने में सक्षम नहीं है.

इसलिए उन्होंने अपनी आजीविका को बचाने के लिए सर्वसम्मति से अपने मंदिर उत्सव के फंड को वितरित करने का फैसला किया है. टी मीनाक्षीपुरम दूसरे गांवों के लिए अब आदर्श बन गया है. यहां मंदिर निधि का उपयोग राहत कोष के तौर पर किया जा रहा है.

यह गांव थिरुमानिक्कम पंचायत में स्थित है जो सैदापट्टी संघ का एक हिस्सा है और मदुरै से लगभग 50 किलोमीटर दूर है.हालांकि, बुनियादी सुविधाओं के संबंध में यह सबसे पिछड़ा गांव है. इसके बावजूद, लोग जातिगत भेदभाव को त्याग कर सब मिलजुल कर रहते हैं.

इस गांव में एक अलिखित नियम है कि, जातिवाद का पालन करने वालों के लिए यहां कोई स्थान नहीं है.इस गांव में तीन मंदिर हैं, अय्यरार मंदिर, मुथलम्मन मंदिर और कालिम्मन मंदिर.हालांकि ये तीनों मंदिर अलग-अलग समुदायों के हैं, लेकिनसभी लोग टी मीनाक्षीपुरम को एक प्रबुद्ध गांव बनाने के लिए मंदिर उत्सव मनाने के लिए एक साथ आते हैं.

हमने मंदिर के धन के आवंटन के बारे में कुछ ग्रामीणों से बात की.एक ग्रामीण ने बताया कि तीनों मंदिरों से जुड़े त्योहारों को मनाना उनकी परंपरा है. हमने सभी लोगों से उन्हें भव्य तरीके से मनाने के लिए धन एकत्रित करत हैं. पलराज नाम के ग्रामीण ने बताया कि, वर्तमान में कोरोना वायरस के संक्रमण के परिणाम स्वरूप सरकार ने पूरे देश में लॉकडाउन लागू कर दिया है.

इससे लोगों की आजीविका बुरी तरह प्रभावित हुई है. इसलिए हमने उत्सव मनाने के बजाय भूख को प्राथिमिकता दी है.

बालासुब्रमण्यम कहते हैं, इस कस्बे में लगभग 250 परिवार हैं. यह सभी कृषि पर निर्भर हैं और दैनिक वेतन भोगी हैं यानी की रोज कमाने खाने वाले हैं. ऐसे में राज्य सरकार की तरफ से दी जाने वाली 1000 रुपये का अनुदान केवल कुछ दिनों के लिए पर्याप्त है.

इसलिए, हमने सामूहिक रूप से लोगों को बचाने के लिए मंदिर का पैसों का इस्तेमाल पेट की भूख मिटाने के लिए कर रहे हैं.

चिन्नासामी और पांडिअम्मल ने कहा, गांव का सामान्य कोष 7 लाख रुपये था. इसको देखते हुए हम लोगों ने तीनों मंदिर के उत्सवों को आयोजित करने का फैसला किया था. लेकिन कर्फ्यू ने पूरी योजना पर पानी फेर दिया. लॉकडाउन में सरकार की तरफ से मात्र एक हजार रुपये दिए गए. इसके अलावा सरकार द्वारा लोगों को दिया गया चावल जैसी राहत वस्तुएं खाने योग्य ही नहीं है.

इसलिए गांव वालों ने जीवन को महत्वपूर्ण बताते हुए एक ठोस निर्णय लिया.हमने फिक्स्ड डिपॉजिट के रूप में 25,000 रुपये अलग रख लिए. इसके बाद हमने गांव में रहने वाले सभी परिवारों को बिना किसी जातिगत भेदभाव के बचे हुए मंदिर उत्सव के फण्ड को समान रूप से वितरित कर दिया. प्र्त्येक परिवार को तीन-तीन हजार रुपये मिले हैं.

हालांकि, यह सोचकर कि सरकार उनकी पर्याप्त मदद नहीं कर पाएगी और मंदिर के त्यौहार के लिए जुटाई गई धनराशि से भुखमरी की समस्या को दूर कर देगी. मीनाक्षीपुरम के लोगों को उम्मीद है कि सरकार को इस पर संज्ञान लेना चाहिए और इस मुद्दे पर विचार करेगी.

एक ग्रामीण ने बताया कि सरकार जो चावल देती है, उसकी गुणवत्ता बिल्कुल भी अच्छी नहीं है. यह खाने के लिए अयोग्य नहीं है. सरकार को इस पर ध्यान देते हुए हमें बेहतर सुविधाएं दी जानी चाहिए.

ग्रामिण इस लॉकडाउन से सबसे अधिक प्रभावित हैं.मालूम हो कि जब से लॉकडाउन घोषित हुआ है, तब से लेकर अब तक लाखों प्रवासी मजदूर शहरों से पलायन कर चुके हैं. या कहें, वह जहां भी कहीं रह रहे थे वहां से पैदल या अन्य किसी साधन की सहायता से घर जा चुके हैं. क्योंकि उनके पास पैसा नहीं है. दिहाड़ी मजदूरों, लकड़ी बेचने वालें और आजिविका के लिए निर्माण उद्योग में काम करने वालें आज इस संक्रमणकाल के दौर में बड़ी मुश्किल से अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं.

लोग यह उम्मीद लगा कर अपने-अपने घरों में बैठे हुए हैं कि जल्द से जल्द लॉकडाउन समाप्त हो जाएगा और वह सभी दोबारा से काम शुरू कर सकेंगे. जिससे उनकी परेशानियों का अंत हो जाएगा.

पलायन करने वालों की सच्चाई यह है कि वे लोग महामारी से नहीं बल्कि भूख, अकाल से घबराए हुए हैं. सरकार को इस दिशा में उचित और एहतियाती कदम उठाने होंगे.

Last Updated : Apr 28, 2020, 2:06 PM IST

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