श्रीनगर : पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के नेता नईम अख्तर के खिलाफ जन सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत मामला दर्ज किया गया है. वह अभी हिरासत में हैं.
बता दें कि जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्रियों- उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती की छह महीने की 'ऐहतियातन हिरासत' पूरी होने से महज कुछ घंटे पहले गुरुवार को उनके खिलाफ जन सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत मामला दर्ज किया गया था.
शनिवार को पीडीपी के नेता नईम अख्तर के खिलाफ पीएसए के तहत मामला दर्ज कर लिया गया है. वह अभी हिरासत में हैं.
इससे पहले दिन में नेशनल कॉन्फ्रेंस के महासचिव तथा पूर्व मंत्री अली मोहम्मद सागर और पीडीपी के वरिष्ठ नेता सरताज मदनी पर भी पीएसए लगाया गया.
शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के शासनकाल में लगा कानून
गौरतलब है कि उमर अब्दुल्ला के दादा तथा पूर्व मुख्यमंत्री शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के शासनकाल में 1978 में लकड़ी की तस्करी को रोकने के लिए यह कानून लाया गया था.
जन सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत दो प्रावधान हैं-लोक व्यवस्था और राज्य की सुरक्षा को खतरा. पहले प्रावधान के तहत किसी व्यक्ति को बिना मुकदमे के छह महीने तक और दूसरे प्रावधान के तहत किसी व्यक्ति को बिना मुकदमे के दो साल तक हिरासत में रखा जा सकता है.
साल 2000 में तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी मंत्रिमंडल में विदेश राज्य मंत्री तथा वाणिज्य मंत्री रहे उमर को तीन पन्नों का एक डॉजियर सौंपा गया है, जिसमें उन पर अतीत में व्यवस्था के खिलाफ बयान देने का आरोप है.
पढ़ें-जम्मू कश्मीर : एनआईए कोर्ट ने देविंदर सिंह को 15 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा
उमर 2009 से 2014 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे
उमर के पिता फारूक अब्दुल्ला के खिलाफ भी पिछले साल सितंबर में पीएसए के तहत मामला दर्ज किया था, जिसकी बीते दिसंबर में समीक्षा की गई थी.
ज्ञातव्य है कि एक पुलिस अधिकारी के साथ एक मजिस्ट्रेट यहां हरि निवास पहुंचे, जहां 49 वर्षीय उमर पांच अगस्त से नजरबंद थे. इसी दिन केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से विशेष दर्जा वापस लेकर उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों लद्दाख और जम्मू-कश्मीर में विभाजित कर दिया था.
इसी प्रकार, मजिस्ट्रेट और एक पुलिस अधिकारी ने महबूबा मुफ्ती के सरकारी आवास पर जाकर उन्हें 2010 में दिये गए बयानों को लेकर डॉजियर सौंपा, जिसमें उन भाषणों को उन्हें हिरासत में रखने का कारण बताया.
महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी 2014 से भाजपा की सहयोगी पार्टी थी. दोनों ने मिलकर 2018 तक जम्मू-कश्मीर में सरकार चलाई. भाजपा ने अचानक सरकार से समर्थन वापस ले लिया, जिसके बाद वहां राज्यपाल शासन लगा दिया गया था.