देहरादून :देशभर में महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं. इन्हीं महिला अपराधों में एसिड अटैक अपराध भी शामिल है. जिसके तमाम मामले देखने को मिलते हैं. भले ही केंद्र और राज्य सरकारें एसिड अटैक पीड़ितों के लिए समय-समय पर तमाम तरह की सहूलियत देने की बातें करती हैं, मगर इसकी जमीनी हकीकत कुछ और ही है.
मामला उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में रहने वाली एक एसिड अटैक सर्वाइवर का है, जिसे उत्तराखंड सरकार ने नौकरी देने का आश्वासन दिया था. जिसके बाद उन्हें इसी साल फरवरी महीने से नौकरी मिल भी गई. मगर फिर भी यह एसिड अटैक सर्वाइवर दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर है.
बता दें कि देहरादून के ब्रह्मपुरी में रहने वाली एसिड अटैक सर्वाइवर रेखा को राज्यमंत्री रेखा आर्य ने आउटसोर्सिंग के माध्यम से महिला सशक्तिकरण विभाग में इसी साल फरवरी में नौकरी दी थी. मगर नौकरी के मात्र साढ़े सात महीने बाद ही उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया, जिसके बाद से ही यह एसिड अटैक सर्वाइवर मदद के लिए लगातार राज्यमंत्री रेखा आर्य से मदद की गुहार लगा रही हैं.
साल 2007 में हुआ था रेखा पर एसिड अटैक
रेखा पर साल 2007 में उसके ही ससुराल वालों ने एसिड फेंक दिया था. रेखा ने बताया कि उनका ससुराल उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में है. एसिड अटैक की घटना भी सहारनपुर में ही हुई थी. यह मामला होने के बाद वह अपने मायके ब्रह्मपुरी आ गईं, वह अपने बेटे को भी अपने साथ ले आई थीं.
इसके बाद रेखा को तत्कालीन हरीश रावत की सरकार में मुआवजा दिए जाने की भी घोषणा की गई थी, लेकिन मुआवजा नहीं मिल पाया था. इसके बाद भाजपा के शासनकाल में इसी साल फरवरी महीने से रेखा को 181 हेल्पलाइन में नौकरी दे दी गई, जो अब वापस भी ले ली गई है.
नौकरी ने दिया था रेखा को सहारा
ईटीवी भारत से खास बातचीत में एसिड अटैक सर्वाइवर रेखा ने बताया कि 30 जनवरी को उनकी ज्वॉइनिंग हुई थी. उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी कि राज्य सरकार ने उन्हें जो नौकरी देने का आश्वासन और वादा किया था, वह आउटसोर्सिंग के माध्यम पूरी की जाएगी.
साथ ही रेखा कहती हैं कि वह कैसे भी करके नौकरी के सहारे अपना जीवन बसर कर रही थीं, मगर अब नौकरी छिन जाने से उनकी आर्थिक स्थिति और भी खराब हो गई है.
नौकरी भी गई और तनख्वाह भी नहीं मिली
वहीं, अपना दर्द बयां करते हुए रेखा ने बताया कि ज्वॉइनिंग के मात्र दो महीने तक ही उन्हें तनख्वाह दी गई. इसके बाद से 15 सितंबर तक कोई तनख्वाह उन्हें नहीं मिली है. लंबे समय से वह रुकी हुईं, तनख्वाह का इंतजार कर रही हैं.
रेखा ने बताया कि वह एक छोटे से किराए के मकान में रहती हैं, जहां उनके साथ उनका बेटा भी रहता है. उनका बेटा 12वीं क्लास में पढ़ता है. ऐसे में लगातार बढ़ रहे खर्चे के चलते पिछले तीन महीने से वह कमरे का किराया भी नहीं दे पाई हैं और न ही बच्चे की फीस जमा कर पाई हैं.