जयपुर : राजस्थान के नागौर जिले के छोटे से गांव सुखवासी में साल 1975 में पीपल का एक पौधा रोप कर उसे पेड़ बनाने का संकल्प लेने वाले हिम्मताराम भाम्भू के जेहन में महज 19 साल की उम्र में पर्यावरण संरक्षण का एक ऐसा बीज पड़ा, जो आज एक विशाल वटवृक्ष बन चुका है. अपने इस 45 साल के संघर्ष में उन्होंने साढ़े 5 लाख से ज्यादा पौधे लगाए. जिनमें से करीब तीन लाख पेड़ आज भी हरे-भरे हैं.
वन्यजीवों के शिकार की घटनाओं पर रोक लगाने के लिए भी वह हमेशा पहली पंक्ति में खड़े रहे. उनके इसी संघर्ष का नतीजा है कि आज उन्हें 69 साल की उम्र में देश के प्रतिष्ठित सम्मान में से एक पद्मश्री देने की घोषणा की गई है. इन 45 साल में हिम्मताराम भाम्भू ने हर दिन पर्यावरण, पेड़ और जीव रक्षा के लिए जिया है. गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर 25 जनवरी को जब यह घोषणा हुई, तो उन्हें लगा जैसे पेड़, पर्यावरण और जीवों की रक्षा के लिए किए गए उनके 45 साल के संघर्ष को नई दिशा मिल गई है.
छह हेक्टेयर जमीन पर लगाए 11 हजार पौधे
मुद्दा पेड़ लगाने का हो या पेड़ों की रक्षा का, बात पर्यावरण संरक्षण की हो, या जीवों के शिकार के विरोध की. हिम्मताराम हमेशा हिम्मत के साथ आगे ही खड़े दिखे. उन्होंने राष्ट्रीय राजमार्ग 65 पर नागौर से करीब 20 किमी दूर हरिमा गांव में खुद की खरीदी करीब छह हेक्टेयर जमीन पर 11 हजार पौधे लगाए, जो आज हरे भरे पेड़ बन चुके हैं. इसे उन्होंने पर्यावरण प्रशिक्षण केंद्र नाम दिया है. आज यहां एक घना जंगल बन गया है. जहां हजारों पशु पक्षी रहते हैं. आज भी उनके दिन की शुरुआत यहां रहने वाले मूक प्राणियों के लिए दाना-पानी और चारे के इंतजाम करने से ही होती है.