हैदराबाद : नेता जी सुभाष चंद्र बोस कोई आम नाम नहीं, बल्कि देश में क्रांति लाने वाले एक महानायक थे. उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के आगे कभी हार नहीं मानी और उन्हें परास्त करने के लिए आजाद हिंद फौज का गठन तक कर डाला. देश के अग्रिम पंक्ति के सेनानियों के साथ उनका नाम भी बड़े आदार के साथ लिया जाता है.
आइए जानते हैं बोस के जीवन संघर्ष के अहम पहलू...
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 123वीं जयंती आज प्रारंभिक जीवन
- नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा में कटक के एक बंगाली परिवार में हुआ था. बोस के पिता का नाम 'जानकीनाथ बोस' था. वह पेशे से एक वकील थे. उनकी मां का नाम 'प्रभावती' था. सुभाष चंद्र बोस के माता-पिता की 14 संतानें थी, जिसमें छह बेटियां और आठ बेटे थे.
- नेता जी की प्रारंभिक शिक्षा कटक के स्थानीय स्कूल में हुई थी.
- उच्च शिक्षा कलकत्ता के प्रेजिडेंसी कॉलेज और स्कॉटिश चर्च कॉलेज से हुई.
- 1920 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में न सिर्फ सफलता मिली, बल्कि उन्होंने चौथा स्थान भी हासिल किया. हालांकि बाद में जलियावाला बाग के नरसंहार से दुखी होकर उन्होंने प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा दिया.
स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका
- 1921 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए. महात्मा गांधी के उदार विचार और सुभाष चंद्र बोस के जोशीले क्रांतिकारी विचार होने के बावजूद उनका मकसद एक ही था.
- 1938 में नेता जी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष निर्वाचित हुए. उन्होंने राष्ट्रीय योजना आयोग का गठन किया.
- 1939 में दोबारा अध्यक्ष चुने गए, हालांकि सीतारमैया गांधीजी की पसंद थे, फिर भी 203 मतों से बोस चुनाव जीत गए.
- 1939 में फॉरवर्ड ब्लाक का गठन किया. नेता जी ने इसी साल अंग्रेजों को देश से निकालने के लिए 'आजाद हिंद फौज' की स्थापना की.
- आस्ट्रिया में बोस ने एमिली शेंकल से विवाह कर लिया. विवाह हिन्दू रीति-रिवाजों के अनुसार हुआ. इनके एक पुत्री भी हुई, जिसका नाम अनीता बोस रखा गया.
पकड़ी क्रांति की राह
- दूसरा विश्व युद्ध छिड़ते ही बोस ने अपने विचारों को फैलाना शुरू कर दिया.
- दूसरा विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ आजाद हिंद फौज का निर्माण किया.
- सुभाष चंद्र के अपना वेश बदलकर अंग्रेजों को खूब चकमा देते थें.
- नेताजी को 11 बार जेल की सजा भुगतनी पड़ी थी.
- ब्रिटिश सरकार ने कोलकाता में नजरबंद कर लिया.
- बोस भागकर अफगानिस्तान और सोवियत संघ होते हुए जर्मनी पहुंचे.
- अंग्रेजों के खिलाफ गोलबंदी करते हुए 1942 में जर्मन तानाशाह हिटलर से मिले.
- 1943 में जर्मनी छोड़ जापान से सिंगापुर पहुंचकर आजाद हिंद फौज की कमान अपने हाथों में ली.
- आजाद हिंद फौज का पुनर्गठन किया और महिलाओं के लिए रानी झांसी रेजिमेंट का गठन किया. लक्ष्मी सहगल कैप्टन बनी.
- नेताजी अपनी आजाद हिंद फौज के साथ 4 जुलाई 1944 को बर्मा पहुंचे. उन्होंने नारा, 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा.'
निधन पर सवाल
- 18 अगस्त 1945 को टोक्यो (जापान) जाते समय ताइवान के पास नेताजी का एक हवाई दुर्घटना में निधन हुआ बताया जाता है, लेकिन कभी भी इसकी पुष्टि नहीं हो सकी और हमेशा सवाल उठते रहे.