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चार्ली चैपलिन और गांधी की मुलाकात के गवाह थे देसाई, ऐसी थी उनकी बातचीत

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Published : Oct 6, 2019, 7:00 AM IST

महादेव देसाई 1917 से 1942 तक गांधी के सचिव थे. वह उस समय के एक मात्र पत्रकार थे, जो गांधी और चार्ली चैपलिन की बैठक के गवाह थे. गांधी उस समय (1931) द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए लंदन गए हुए थे. इसी दौरान चैपलिन और गांधी की मुलाकात हुई थी. देसाई ने जो कुछ देखा था, उसे उन्होंने यंग इंडिया के आठ अक्टूबर 1931 वाले अंक में प्रकाशित किया था.

चार्ली चैपलिन और महात्मा गांधी

चार्ली चैपलिन ने अपनी आत्मकथा में इस मुलाकात का जिक्र किया था. उन्होंने लिखा कि गांधी की प्रेरणा लेकर ही वह 'मॉर्डन टाइम्स' जैसी फिल्म बना सके. इसमें उन्होंने मशीनी व्यवस्था का मानव पर क्या प्रभाव पड़ता है, इस पर फिल्म बनाई थी.

विस्तार से जानें, दोनों के बीच क्या हुई थी बातचीत...
शायद इस बात की जानकारी बहुत कम लोगों को होगी कि जब किसी ने बापू को बताया कि आपसे चार्ली चैपलिन मिलना चाहते हैं, इस पर गांधी ने पूछा, आखिर कौन हैं ये महाशय. लंबे समय तक गांधी की दिनचर्या ऐसी रही थी कि जिस काम के लिए वह बने थे, उससे इतर किसी भी अन्य चीजों से वह कोई वास्ता नहीं रखते थे. लेकिन जैसे ही उन्हें बताया गया कि चार्ली चैपलिन ने लाखों लोगों को हंसाया है, वह आपसे मिलने आए हैं, वह तुरंत तैयार हो गए. लंदन में डॉ कटियाल के घर पर उनकी चार्ली चैपलिन से मुलाकात हुई थी.

पर्दे की दुनिया से विपरीत चार्ली चैपलिन बेहद ही जीनियस, सज्जन और बेबाक थे. खुद को छिपाने की उनके कौशल के गांधी कायल हो गए. गांधी भले ही उनके बारे में नहीं जानते थे, लेकिन चार्ली जरूर गांधी के बारे में जानते थे. वे जानते थे कि गांधी चरखा के पक्षधर हैं. शायद यही वजह थी कि सबसे पहले चार्ली ने गांधी से यही सवाल पूछा कि आप मशीन विरोधी क्यों हैं.

इस सवाल से गांधी प्रसन्न हुए. उसके बाद उन्होंने विस्तार से बताया कि उनकी सोच क्या है. गांधी ने बताया कि भारत के किसान किस तरह छह महीने तक बेरोजगार रहते हैं. इसलिए यह उनके लिए महत्वपूर्ण है कि उद्योग उनकी सहायता के लिए हो.

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इसके बाद जब चार्ली चैपलिन ने पूछा कि क्या यह केवल कपडों के संबंध में है. इस पर गांधी ने जवाब दिया, 'बिल्कुल सही, क्योंकि कपड़े और भोजन दोनों के मामलों में हर देश को आत्म निर्भर होना चाहिए. हम पहले आत्मनिर्भर थे. फिर से हम इसे हासिल करना चाहते हैं. अंग्रेजों को बाजार की जरूरत है, क्योंकि उनके पास बड़ी मात्रा में उत्पादन होता है. हम इसे शोषण कहते हैं. और दुनिया के लिए यह खतरा है. अगर भारत ने मशीनरी का उपयोग करना शुरू किया, तो समझिए देश का कितना देहन होगा. क्योंकि तब भारत अपनी आवश्यकता से कई गुना अधिक उत्पादन करेगा.'

चैपलिन का अगला सवाल था तो क्या यह सिर्फ भारत तक सीमित है ? उन्होंने गांधी से कहा कि मान लीजिए भारत में रूस जैसी स्वतंत्रता आ जाए. बेरोजगारों के लिए आप काम पा सकते हैं. धन का समान वितरण सुनिश्चित हो जाएगा. तब क्या आप वहां पर मशीनरी से घृणा नहीं करेंगे. आप काम के घंटे और कम करने और छुट्टी के लिए संघर्ष करेंगे ?

गांधी ने कहा, निश्चित रूप से. गांधी ने कहा कि यह सवाल मैं कई बार विदेशियों से चर्चा कर चुका हूं. लेकिन जिस समझ के साथ चैपलिन ने इसे सामने रखा है, बिल्कुल पूर्वाग्रह से हटकर, वह काबिले तारीफ है.

यह सहानुभूति उस समय सामने आई जब सरोजिनीदेवी ने उन्हें एक अंग्रेजी जेल की याद दिलाई. उन्होंने कहा कि मैं अमीर लोगों की भीड़ का सामना कर सकता हूं, लेकिन इन कैदियों का सामना नहीं कर सकता. लेकिन हमारे और उनके बीच क्या अंतर है. उन सलाखों का ही तो. मैं जेल में सुधार के लिए हूं. अपराधी किसी भी अन्य की तरह एक बीमारी है. और इसका इलाज जेलों में नहीं, बल्कि सुधार के घरों में किया जान चाहिए.

(लेखक- नचिकेता देसाई. वह महादेव देसाई के पोते हैं. महादेव देसाई गांधी के सचिव रह चुके थे)
(आलेख में लिखे विचार लेखक के अपने हैं. इनसे ईटीवी भारत का कोई संबंध नहीं है)

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