हैदराबाद : राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता अभिनेत्री कंगना रनौत को शिवसेना की ओर से मूर्खतापूर्ण ढंग से धमकाने के प्रयासों और उसकी संपत्ति नष्ट करने की उन सभी लोगों को निंदा करनी चाहिए, जो देश में लोकतंत्र में आस्था रखते हैं और कानून का पालन करते हैं. शिवसेना को यह भी बताने का समय है कि मुंबई उसकी नहीं है और कोई भी भारतीय उस शहर के लिए उसे प्रवेश वीजा जारी करने की शक्ति नहीं देगा. मुंबई भारत का है.
अभिनेत्री की पाली हिल क्षेत्र में स्थित संपत्ति को 9 सितंबर को सिर्फ एक दिन के नोटिस के बाद कथित तौर पर नियमों का उल्लंघन के लिए ध्वस्त किया गया था. उसके पहले पार्टी के नेताओं और गुंडों की ओर से बार-बार धमकियां दी गई थीं और उसे हिमाचल प्रदेश स्थित अपने घर से मुंबई लौटने के खिलाफ चेतावनी दी गई थी. इस तरह की धमकी देने वालों में राज्य के गृह मंत्री भी थे. इसके अलावा पार्टी के नेताओं ने उसे गंदी-गंदी गालियां भी दी थी. यदि भारत ने इसे सहन किया तो देश लोकतंत्र को अलविदा कहने के लिए निमंत्रण देगा और खुद को गुंडा राज के हवाले कर देगा.
हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने रनौत की ओर से सही ढंग से हमला बोला है. उन्होंने कहा है कि महाराष्ट्र सरकार का रवैया निंदनीय है और इससे प्रतिशोध की राजनीति की बू आती है. वे कहते हैं कि हिमाचल की बेटी का अपमान असहनीय है.
शिवसेना ने अभिनेत्री को धमकी देने के लिए राज्य की सत्ता और पार्टी के गुंडों को तैनात किया, तो हिमाचल प्रदेश सरकार को केंद्र से आग्रह करना पड़ा कि वह 9 सितंबर को रनौत के मुंबई लौटने पर अपनी 'वाई प्लस' श्रेणी की सुरक्षा मुहैया कराए. इससे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को सचेत होना चाहिए था कि आगे क्या होगा, क्योंकि शिवसैनिकों का दूसरे राज्यों से आने वाले नागरिकों के प्रति इस प्रकार का व्यवहार किसी को भी बर्दाश्त नहीं होगा.
बॉम्बे हाई कोर्ट ने बीएमसी को सीधे तौर पर फटकार लगाई और ध्वस्त करने की कार्रवाई को अपमानजनक बताया. अदालत ने कहा कि नगर निगम की कार्रवाई घोर दुर्भावनापूर्ण है. अदालत ने उल्लेख किया कि निगम ने अनधिकृत निर्माण के बारे में जो भी बताया, वह रातों-रात सामने नहीं आया है. निगम अचानक अपनी नींद से जागा. रनौत को तब नोटिस जारी किया, जब वह शहर से बाहर थीं और सिर्फ 24 घंटे के भीतर उसकी संपत्ति को ध्वस्त कर दिया. इन सभी से संकेत मिलता है कि नगर निगम की कार्रवाई दुर्भावनापूर्ण थी. अदालत ने यह भी कहा कि नगरपालिका के वकील समय पर पेश नहीं हुए और जब नगर निगम आयुक्त से अदालत ने संपर्क करने की कोशिश की, तो उनका सेल फोन लगातार बंद मिला. इस बीच ध्वस्त करने का काम जारी रहा, इसके अलावा अदालत ने यह जानने की उत्सुकता जताई कि क्या नगर निगम अन्य बहुत सारे अनधिकृत निर्माणों के बारे में भी इतनी ही तेजी से काम करेगा.
अदालत ने 9 सितंबर के अपने आदेश में सुनवाई रोकने के लिए और ध्वस्त करने की कार्रवाई को पूरा होने तक याचिका का संज्ञान लेने से रोकने के लिए नगर निगम की ओर से किए गए प्रयासों के बारे में विस्तार से लिखा है. उसमें लिखा है कि यह कार्यपालिका के अहंकार और न्यायपालिका के प्रति अनादर का संकेत है.
शिवसेना को बताना होगा कि वे मुंबई के मालिक नहीं हैं. वे बहुत लंबे समय तक इस भ्रम में रहे हैं, वास्तव में उस समय मराठी भाषी अलग राज्य के निर्माण के लिए आंदोलन खड़ा हो रहा था. गुजरातियों और अन्य लोगों की, मुंबई में ज्यादा हिस्सेदारी थी (जैसा कि तब कहा जाता था) तब मराठी भाषी लोगों ने तत्कालीन मुंबई को केंद्र शासित प्रदेश बनाने के लिए एक मजबूत मामला बनाया था. तब से इस शहर की जनसांख्यिकी पूरी दुनिया को अपना मानने वाली रही है और शिवसेना के मुंबई की राजनीति में तमाम अराजकवादी जहर भरने की कोशिशों के बावजूद शहर ने अपना अंतरराष्ट्रीय भाव गंवाने से इनकार कर दिया.
वास्तव में जब अलग मराठी भाषी राज्य के निर्माण के लिए आंदोलन चल रहा था उस समय उसके महानगरीय दृष्टिकोण और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण स्थान को देखते हुए मुंबई को एक केंद्र शासित प्रदेश बनाने के पक्ष में मजबूत तर्क था. गुजरात रिसर्च सोसाइटी के अध्यक्ष ने 1948 में महागुजरात की भाषाई सीमा पर भाषाई प्रांत आयोग को एक ज्ञापन सौंपा था और कहा था कि मराठी भाषी राज्य एक वास्तविकता होनी चाहिए. मुंबई को केंद्र शासित होना चाहिए. इस आयोग को भारत की संविधान सभा की ओर से भाषाई राज्यों की मांग की जांच करने के लिए नियुक्त किया गया था. ज्ञापन में कहा गया है- मुंबई शहर, इसके बंदरगाह और उपनगरों को केंद्र सरकार के अधीन एक अलग आत्मनिर्भर प्रांत बनाया जाना चाहिए. मुंबई एक अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण और एक विशिष्ट गैर-प्रांतीय संस्कृति के साथ एक अखिल भारतीय शहर रहा है, जिसमें भारत के सभी प्रांतों और यहां तक कि विदेश के लोग भी अपनी भूमिका निभाते हैं. इसलिए मुंबई जैसे अंतरराष्ट्रीय बंदरगाह को महाराष्ट्र प्रांत में स्थानांतरित करना अनुचित होगा, जहां एक भाषा के संकीर्ण आधार पर प्रांत बनाने की मांग की जाती है. यह भावना आज भी सही है. मुंबई शिवसेना से जुड़े संकीर्ण और मूढ़ राजनेताओं की नहीं है.
शिवसेना रनौत को एक ऐसी महिला के रूप में चित्रित करने की कोशिश कर रही है जो मुंबई, महाराष्ट्र और मराठी लोगों के प्रति दुर्भावना रखती है. यह बिल्कुल निराधार है. अभिनेत्री रनौत ने इनमें से किसी भी संस्था पर हमला नहीं किया है. उसका हमला शिवसेना और जिस तरह से यह पार्टी गुंडा राज को बढ़ावा दे रही है और भारत के सबसे उदार और समृद्ध शहर मुंबई को नफरत के गढ़ में बदल रही है, उस पर है. भारत के लोगों ने कभी भी मुंबई शहर की चाबी शिवसेना को नहीं दी है. न ही शिवसेना छत्रपति शिवाजी की विरासत का एकमात्र भंडार घर है. दुनिया भर के भारतीय छत्रपति शिवाजी को भारतीय राष्ट्रवाद के प्रतीक और भारत के सबसे बड़े राजाओं में से एक मानते हैं. भारतीय कई शताब्दी पहले भारत की सभ्यता से जुड़े मूल्यों को बनाए रखने के लिए उनकी वीरता और उनके अमूल्य योगदान के लिए उनकी सराहना करते हैं. शिवसेना द्वारा उन्हें हथियाने और मराठी गौरव के प्रतीक का रुतबा कम करने के प्रयासों का विरोध किया जाना चाहिए.
शिवसेना के नेता मुंबई ने सिने और टेलीविजन जगत के अभिनेताओं, निर्देशकों और अन्य सहित विभिन्न पेशेवरों को जो दिया है उसके बारे में भी बात कर रहे हैं. वे भूल जाते हैं कि इन व्यक्तियों ने मुंबई को क्या दिया है. बॉम्बे उर्फ मुंबई आज जो बना है वह इस वजह से कि व्यापार, विनिर्माण, मनोरंजन और आतिथ्य उद्योग की श्रेष्ठ प्रतिभाओं ने इस शहर की ओर रुख किया. इसे अपना घर बनाया, अरबों रुपये का निवेश किया और लाखों लोगों के लिए रोजगार पैदा किया. गुजरात, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, तमिलनाडु, जम्मू और कश्मीर और केरल जैसे विभिन्न राज्यों के लोग इस शहर में पहुंचे और अपने सपनों को पूरा करते हुए मुंबई को आज जैसा है वैसा बना दिया. उदाहरण के लिए, अगर आप गुजरातियों को ले गए, तो मुंबई का व्यवसाय और उद्योग क्या होगा? या बॉलीवुड पंजाबियों के बिना क्या होगा? शिव सैनिकों को वापस लौटकर पुनर्विचार करना होगा. यदि वे अपनी क्षुद्र राजनीति के साथ बने रहते हैं तो वे पूरे देश से दुश्मनी मोल ले लेंगे.
यह वास्तव में दुखद है कि शिवसेना जो अपने फायरब्रांड नेता बालासाहेब ठाकरे के जीवनकाल में भारतीय राष्ट्रवादी कारणों के लिए मजबूती से खड़ी होती थी, अब वह खुद को हास्यास्पद बनाकर अपने को सोनिया सेना तक सीमित कर रही है, अगर यह शांत होने में नाकाम हो जाता है तो कई और राज्य एवं मुख्यमंत्री इसे लेकर चिल्लाएंगे. भारत माता अपने मुकुट के मणि मुंबई को अयोग्य हाथों में पड़ने की अनुमति नहीं देंगी.
(ए. सूर्यप्रकाश- पूर्व अध्यक्ष, प्रसार भारती)